Success Story - सिम बेचते-बेचते मिला आइडिया, 23 साल की उम्र में बन गया करोड़पति

Success Story in Hindi आज हम आपको अपनी सक्सेस स्टोरी में एक ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसमें एक शख्स को सिम बेचते-बेचते आइडिया (idea) मिला था और महज 23 साल की उम्र वह शख्स करोड़पति (crorepati) बन गया। आइए खबर में जानते है इनकी सफलता की पूरी कहानी।  

 

HR Breaking News, Digital Desk-  Success Story in Hindi अगर हौसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई ताकत आपको कामयाब होने से नहीं रोक सकती. कुछ ऐसा ही काम 17 साल की उम्र में इंजीनियरिंग छोड़कर रितेश अग्रवाल ने कंपनी शुरू कर किया है. बिना किसी की मदद के शुरू किए कारोबार को महज 6 साल में उन्‍होंने 6000 करोड़ रुपए की नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है. आज हम आपको ओयो रूम के फाउंडर रितेश अग्रवाल के सफर की कहानी बता रहे हैं.

 

 


ओडिशा के बिस्सम कटक गांव में जन्मे रितेश अग्रवाल ने अपनी स्कूली शिक्षा रायगड़ा के सेक्रेट हार्ट स्कूल से की है. मिजाज से घुमक्कड़ रितेश छोटी उम्र से ही बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग से बहुत प्रेरित रहे हैं और वेदांता के अनिल अग्रवाल को अपना आदर्श मानते हैं.


सिर्फ दो दिन में ही छोड़ दिया कॉलेज-


 आम युवाओं की तरह रितेश भी स्कूल पूरा करने के बाद आईआईटी में इंजीनियरिंग की सीट हासिल करना चाहता थे. इसके लिए उन्होंने कोचिंग इंस्टीट्यूट (coaching institute) भी ज्वाइन किया, लेकिन सफल न हो सके. फिर यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में दाखिला ले लिया. एक इंटरव्यू में रितेश ने कहा था कि वह सिर्फ दो दिन ही लंदन यूनिवर्सिटी के दिल्ली कैंपस गए. हालांकि, इस फैसले से माता-पिता शुरू में बिल्कुल खुश नहीं थे, लेकिन जब उन्हें रितेश का पूरा आइडिया समझ में आया तो उन्होंने उनका पूरा साथ दिया और उन्हें प्रेरित भी किया.

शुरुआत में बेचते थे सिम कार्ड-


 रितेश अग्रवाल पर कारोबारी बनने का जुनून इतना सवार था कि शुरुआती दिनों में उन्होंने मोबाइल सिम कार्ड भी बेचे.


ऐसे आया बिजनेस का आइडिया-


 रितेश को घूमने का काफी शौक था. सन 2009 में उन्हें देहरादून और मसूरी जाने का मौका मिला. यहां उन्हें महसूस हुआ कि कई ऐसी खूबसूरत जगहें हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. ऐसे ही अनुभवों ने रितेश को प्रेरित किया और उसने एक ऑनलाइन सोशल कम्युनिटी बनाने के बारे में सोचा, जहां एक ही प्लेटफॉर्म पर प्रॉपर्टी के मालिकों और सर्विस प्रोवाइडर्स की सहायता से पर्यटकों को बेड एंड ब्रेकफास्ट के साथ रहने की किफायती सुविधा मुहैया करवाई जा सके.


...और शुरू हो गई कंपनी- 


वर्ष 2011 में रितेश ने ओरावेल की शुरुआत की. रितेश के आइडिया से प्रभावित होकर गुड़गांव के मनीष सिन्हा ने ओरावेल में निवेश किया और को-फाउंडर बन गए. फिर 2012 में ओरावेल को आर्थिक मजबूती मिली, जब देश के पहले एंजल आधारित स्टार्ट-अप एक्सलेरेटर वेंचर नर्सरी एंजल से बुनियादी पूंजी प्राप्त हुई. हालांकि, वेंचर को खड़ा करने में रितेश को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिनमें प्रमुख थीं- फंडिंग, मार्केटिंग और प्रॉपर्टी के मालिकों और निवेशकों तक पहुंचना.


बन गई 3000 करोड़ रुपए की कंपनी-


ओयो ने सॉफ्टबैंक सहित मौजूदा इनवेस्टर्स और हीरो एंटरप्राइज से 25 करोड़ डॉलर (1,600 करोड़ रुपए से अधिक) की नई फंडिंग हासिल की है. कंपनी इस फंड का इस्तेमाल भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए करना चाहती है. आपको बता दें कि इस नई फंडिंग के बाद कंपनी की वैल्यूएशन करीब 90 करोड़ डॉलर यानी 6000 करोड़ रुपए पहुंचने की उम्मीद है.


क्या करती है ओयो रूम-


जब रितेश अग्रवाल ने ओरावेल डॉट कॉम की शुरुआत की, तब वह सिर्फ 17 वर्ष के थे. इस वेंचर की शुरुआत के पीछे रितेश का मकसद देश भर के पर्यटकों को किफायती दरों पर रहने की सुविधा मुहैया करवाना था. ओरावेल एक ऐसा मार्केटप्लेस है, जहां अपार्टमेंट्स और रूम्स की 3,500 से भी ज्यादा लिस्टिंग में से आप अपने लिए आरामदायक और अफोर्डेबल रूम्स तलाश सकते हैं और बुक कर सकते हैं, जो उसी क्षेत्र में समान सुविधाएं प्रदान करने वाले होटलों की आधी कीमत में उपलब्ध हैं. यह कंपनी ओयो इन्स (ओयोहोटल्स डॉट कॉम) का संचालन भी करती है, जहां कम कीमत के होटल्स की एक चेन उपलब्ध है.