Success Story: स्कूल में रिक्शा वाले का बेटा कहकर मिलते थे ताने, पहले ही अटेम्प्ट में कमाल कर बनें आईएएस, पढ़िए इनकी कहानी
HR Breaking News, Digital Desk- कुछ कर गुजरने की इच्छा और कड़ी मेहनत व संघर्ष से व्यक्ति बड़े से बड़े मुकाम को हासिल कर सकता है। बनारस की तंग गलियों में रहने वाले गोविंद जायसवाल (Govind Jaiswal) की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसने गरीबी और अभावों के बावजूद अपने अदम्य इच्छाशक्ति व संघर्ष के दम पर भारत की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा यानी सिविल सेवा सर्विसेज एग्जाम को क्वालीफाई कर आईएएस बनने का सपना पूरा किया।
उन्होंने साल 2006 में 22 साल की उम्र में यूपीएससी की परीक्षा क्वालीफाई किया और 48वीं रैंक प्राप्त किया था। आपको शायद ही पता होगा कि गोविंद ने अपनी पढ़ाई हिंदी मीडियम से की है, हिंदी मीडियम से परीक्षा देने वालों में गोविंद ऑल इंडिया टॉपर रहे थे। गोविंद की इस सफलता के पीछे जो मेहनत व संघर्ष छिपा है, वो लाखों छात्रों के लिए प्रेरणा है।
गोविंद ने अपना सपना पूरा करने के लिए जितनी मेहनत की, उतनी ही संघर्ष उनके पिता नारायण ने भी किया। जी हां इसके लिए गोविंद के पिता ने रिक्शा मालिक से रिक्शा चालक बनना स्वीकार किया। गोविंद एक इंटरव्यू के दौरान, अपने संघर्ष की कहानी बताते हुए काफी भावुक हो उठे थे। उन्होंने बताया कि उनके पिता के पास 1995 में 35 रिक्शे हुआ करते थे, लेकिन मां का का इलाज कराने के लिए एक के बाद एक रिक्शा बिकता गया, धीरे धीरे 20 रिक्शे बिक गए।
हालांकि उनका परिवार गोविंद की माता को नहीं बचा पाया और उनका निधन हो गया। इस दौरान गोविंद के घर गरीबी का आलम इस कदर था कि, किसी-किसी दिन परिवार को दोनों टाइम सूखी रोटी खाकर बिताना पड़ता था। लेकिन उनके पिता ने हार नहीं मानी, वह दिन में रिक्शा चलाया करते थे और रात में नौकरी करते थे।
रिक्शे वाले का बेटा कहकर मिलते थे ताने-
पिता नारायण गोविंद को रिक्शे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने जाया करते थे, कई बार बच्चे गोविंद को देखकर रिक्शे वाले का बेटा कहकर ताने दिया करते थे। एक समय ऐसा आया कि, आस पड़ोस के लोगों ने अपने बच्चों को गोविंद के साथ खलने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि गोविंद एक रिक्शे वाले का बच्चा था। इसी ताने ने गोविंद को आईएएस बनने के लिए मजबूर कर दिया। गोविंद ने बताया कि, यह उनके लिए सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
पहले ही अटेम्प्ट में कर दिखाया कमाल-
गोविंद हरीशचंद्र विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद 2006 में यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली रवाना हो गए। गोविंद की आंखों में सिर्फ आईएएस का ख्वाब था, दिल्ली पहुंचकर उन्होंने पार्ट टाइम जॉब करना शुरू कर दिया, समय मिलने पर वह कोचिंग लिया करते थे। साल 2006 में उन्होंने पहला अटेम्प्ट दिया और पहले ही अटेम्प्ट में 48वीं रैंक हासिल कर कमाल कर दिखाया।
दोपहर का लंच कर दिया था बंद-
गोविंद बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे। मां के देहांत के बाद भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी। गोविंद की बहन ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि, गोविंद के दिल्ली जाने के बाद पिता बड़ी मुश्किल से खर्च भेज पाते थे। उन्होंने बताया कि, घर के हालात देखकर गोविंद ने चाय और एक टाइम का लंच बंद करवा दिया था।