1 Rupee Coin : 1 रूपए का सिक्का है अर्थ व्यवस्था के लिए जरूरी, क्या आप जानते हैं एक रूपए के सिक्के को बनाने में कितने रूपए खर्च होते हैं
क्या आप जानते हैं के एक रूपए का जो सिक्का हम हर रोज़ इस्तेमाल करते हैं, उस एक सिक्के को बनाने में कितने रूपए खर्च होते हैं, और क्या सच में जरूरी है एक रूपए के सिक्के को बनाना ,आइये जानते हैं।

HR Breaking News, New Delhi : 1 रुपए का सिक्का... वैल्यू के हिसाब से बहुत छोटा लगता है. लेकिन, यही अपने देश की अर्थव्यवस्था की रीड़ है. वैल्यू भले ही छोटी है, लेकिन असली करेंसी यही है. ये एक रुपए का सिक्का बड़े काम का है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इसकी ढलाई के लिए सरकार को इसकी वैल्यू से भी ज्यादा खर्च करना पड़ता है. यकीनन ये सुनने में थोड़ा अजीब है. लेकिन सच्चाई यही है कि 1 रुपए की वैल्यू वाले इस सिक्के की ढलाई इससे ज्यादा की होती है. फिर भी सरकार इसे बनवाती है. आखिर क्यों? आइये समझते हैं क्या है इसके पीछे की वजह
कितना खर्चिला है 1 रुपए का सिक्का बनाना?
ये तो हम सभी जानते हैं कि नोटों की छपाई और सिक्कों की ढलाई में सरकार को जेब से खर्च करना होता है. अगर आपसे कहा जाए कि 100 रुपए की चीज खरीदने के लिए 110 रुपए खर्च करने होंगे, तो शायद ही आप करेंगे. लेकिन, हमारी सरकार ऐसा करती हैं. एक रुपए के सिक्के की बनाई (Cost of making 1 Rupee Coin) के लिए सरकार ज्यादा पैसे खर्च करती है. 1 रुपए के सिक्के (One Rupee Coin) को बनाने में 1.11 रुपए से 1.25 रुपए तक खर्च होता है. मतलब सिक्के की वैल्यू है 1 रुपए और खर्च 11 पैसे से लेकर 25 पैसे ज्यादा होता है. फिर भी सरकार हर साल दो से ढाई करोड़ के सिक्के बनवाती है. कुल मिलाकर ये नुकसान का सौदा है.
नुकसान के बाद भी क्यों इतने सिक्के बनवाती है सरकार?
यूं तो बाजार या आम आदमी को खर्च के लिए सरकार नोटों की छपाई (Currency notes printing) करती है. लेकिन, इसके बाद भी बड़े पैमाने पर सिक्कों की ढलाई होती है. दरअसल, नोटों की छपाई में काफी तामझाम होता है. बहुत सारे सिक्योरिटी फीचर्स का इस्तेमाल करके एक नोट को तैयार किया जाता है. कुछ खास सिक्योरिटी फीचर्स भी होते हैं, ताकि कोई नोट की कॉपी न कर सकें. नोटों की छपाई में महात्मा गांधी की फोटो, सिक्योरिटी थ्रेड, RBI गवर्नर के सिग्नेचर जैसे 15-17 फीचर्स होते हैं. लेकिन, नोटों की लाइफ बहुत लंबी नहीं होती. क्योंकि, इन्हें कागज से बनाया जाता है. हालांकि, इनकी शेल्फ लाइफ को ध्यान में रखते हुए RBI कॉटन पेपर का इस्तेमाल करता है, जिससे नोट थोड़ा लंबा चल सकते हैं. नोटों की छपाई और इनकी लाइफ को ध्यान में रखते हुए सिक्कों का कोई तोड़ नहीं है. क्योंकि, इनकी लाइफ काफी लंबी होती है. इसलिए सिक्के बनाना बहुत जरूरी होता है.
महंगाई नहीं बढ़ने देता 1 रुपया?
1 रुपए की सबसे बड़ी खासियत है कि ये महंगाई को कंट्रोल करता है. अब सवाल ये है कैसे.. दरअसल, छोटी वैल्यू वाली करेंसी न तो बंद की जा सकती है. न ही उसे रोककर बड़ी वैल्यू करेंसी को लॉन्च किया जा सकता है. सोचिए अगर 1 रुपए का सिक्का (1 Rupee Coin) या नोट न हो तो आप जरूरत की चीजें सीधे 2 रुपए महंगी होंगी. अगर दूध की कीमतों को उदाहरण मान लिया जाए तो कंपनियां अक्सर ऑड फॉर्म में इसके दाम बढ़ाती हैं. कभी 1 रुपए कभी 3 रुपए. ऐसे में एक रुपए का न होना महंगाई को बढ़ावा दे सकता है. फिर चीजें 1 रुपए नहीं सीधे 2,4 और 6 रुपए महंगी होंगी. मतलब 1 लीटर दूध 50 से 51 रुपए नहीं बल्कि सीधे 52 रुपए का हो जाएगा. यही वजह है कि सरकार को छोटी वैल्यू करेंसी सर्कुलेशन में रखनी होती हैं.
कहां होती है भारत में सिक्कों की ढलाई?
देश में चार मिंट (टकसाल) हैं, जिनके पास सिक्के बनाने का अधिकार है. मुंबई मिंट, कलकत्ता मिंट, हैदराबाद मिंट और नोएडा मिंट. यहीं से निकलकर सिक्के मार्केट में आते हैं. देश के सबसे पुराने मिंट में कलकत्ता और मुंबई मिंट हैं. दोनों को साल 1859 में अंग्रेजी हुकूमत ने स्थापित किया था. टकसाल (Mint) उस कारखाने को कहते हैं जहां देश की सरकार या उसके दिए अधिकार से मुद्राओं (करेंसी) का निर्माण होता है.