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EMI नहीं भरने वाले हो जाएं सावधान, Supreme Court ने दिया अहम फैसला

Loan EMI : लोन लेने के बाद हर माह इसकी ईएमआई (loan EMI rules) भी भरनी होती है। लोन लेकर ईएमआई न भरना अब आपको भारी पड़ेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हर लोनधारक को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि उसे भी लोन (loan repayment rules) की ईएमआई हर माह भरनी होती है और कब चूक जाए, यह कहा नहीं जा सकता। तो आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले (Supreme Court Decision ) के बारे में।

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EMI नहीं भरने वाले हो जाएं सावधान, Supreme Court ने दिया अहम फैसला

HR Breaking News - (Supreme Court) । बैंकों और फाइनेंस कंपनियों की ओर से कई तरह के लोन प्रोवाइड कराए जाते हैं। हर तरह के लोन की ईएमआई (EMI new rules) ग्राहक को हर माह भरनी होती है। कार लोन (car loan) के मामले में भी ऐसा ही होता है।

ईएमआई मिस होने पर बैंकों (bank news) और फाइनेंस कंपनियों की ओर से कई कदम उठाए जाते हैं और ग्राहक की परेशानियां बढ़ जाती हैं। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले में क्लियर कर दिया है कि लोन की ईएमआई (Car Loan EMI) न भरना किस तरह से भारी पड़ सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लोनधारकों के बीच सुर्खियों में है।


यह था पूरा मामला-


अम्बेडकर नगर निवासी राजेश नामक युवक ने कुछ साल पहले एक गाड़ी फाइनेंस (car finance rules) पर खरीदी थी। इस गाड़ी के लिए उसने 1 लाख रुपये भरकर बाकी राशि का लोन कराया था। इस लोन की राजेश की ओर से 7 महीने EMI (car loan rules) भरी गई। इसके बाद कोई किस्त नहीं दी, तो  5 महीने तक फाइनेंसिंग कंपनी ने राजेश का इंतजार किया कि किस्त भर दे। इसके बावजूद किस्त नहीं भरी गई तो फाइनेंसर कंपनी ने कार को कब्जे में ले लिया था।


निचली कोर्ट ने लगाया था फाइनेंसर पर जुर्माना-


कंज्यूमर कोर्ट ने (Consumer Court) में लोन लेने वाले ने फाइनेंसर की शिकायत करते हुए मामला दर्ज कराया। अदालत ने इस मामले में फाइनेंसर पर 2 लाख से अधिक का जुर्माना लगाया। कंज्यूमर कोर्ट का इस मामले में कहना था कि फाइनेंसर ने नोटिस (bank notice on loan ) दिए बगैर ग्राहक की गाड़ी अपने कब्जे में ली है। ग्राहक को किस्त भरने के लिए फाइनेंसर की ओर से समय देकर अवसर भी नहीं दिया गया।


सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंसर के हक में दिया फैसला -


फाइनेंसर की ओर से ही सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) में इस मामले में अपील की गई थी। इस मामले में यह भी सामने आया कि गाड़ी खरीदने वाला खुद ही डिफॉल्टर (loan defaulter) था। इस बात को लोन लेने वाले ने स्वीकार किया था कि उसने 7 किस्त चुकाने के बाद अगली किस्तें नहीं चुकाईं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को स्पष्ट करते हुए कहा कि फाइनेंसर ने लोनधारक को समय दिया है, क्योंकि फाइनेंसर ने तो 12 महीने बाद गाड़ी को कब्जे में लिया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (National Consumer Commission) की ओर से फाइनेंसर पर लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया। लेकिन फाइनेंसर पर 15000 रुपये का जुर्माना लगा दिया क्योंकि उसने ग्राहक को नोटिस नहीं दिया था। 


सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी-


लोन डिफॉल्ट (loan default case) के मामले में 2 हाई कोर्ट के निर्णय पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करना लोनधारक को ब्लैकलिस्ट करने के समान है। इससे संबंधित व्यक्ति के सिबिल स्कोर (CIBIL Score) पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।

प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले ही लोन अकाउंट या लोन लेनदार को फ्रॉड घोषित करने जैसा कदम उठाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने लोन डिफॉल्ट (loan default rules) के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि लोनधारक को बिना पक्ष रखने का मौका दिए बैंक सीधा अकाउंट को फ्रॉड नहीं घोषित कर सकते।