High Court : पत्नी के नाम खरीदी प्रोपर्टी पर किसका होगा मालिकाना हक, हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
property rights : प्रॉपर्टी चाहे किसी की भी क्यों ना हो। लेकिन, जब बात बंटवारे और मालिकाना हक की आती है तो विवाद शुरू हो जाते हैं। प्रॉपर्टी से जुड़े एक मामले में हाई कोर्ट (High Court Decision) ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट करते हुए बताया है कि पत्नी के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी का असली मालिक कौन होगा। आईये नीचे खबर में जानते हैं -

HR Breaking News (ब्यूरो) : भारतीय ज्यादातर जब भी कोई नई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो इसे अक्सर अपनी पत्नी के नाम पर ही रजिस्ट्री (Property Registry) करवाते हैं। ऐसा करने पर उन्हें लाभ मिलता है दरअसल, महिलाओं के नाम पर प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कराने पर स्टांप ड्यूटी (Stamp Duty) में छूट मिलती है। लेकिन जब आगे चलकर पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती है और वह अगल हो जाते हैं तो इस बीच प्रॉपर्टी (property rights ) पर मालिकाना हक को लेकर विवाद शुरू हो जाता है।
हालांकि, ऐसे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं होती है कि उस प्रॉपर्टी का असली मालिक कौन होगा। प्रॉपर्टी से जुड़े एक ऐसे ही मामले पर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है और यह बताया है कि पत्नी के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक किसका होगा।
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कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने आया के ज्ञात स्त्रोतों से अपनी पत्नी के नाम पर प्रॉपर्टी खरीद सकता है और इस प्रॉपर्टी को बेनामी (Benami Property) नहीं माना जाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ऐसी संपत्ति का असली मालिक वही होगा जिसने अपनी आय से उसे खरीदा है ना कि वह जिसके नाम पर उसके रजिस्ट्र करवाया गया है।
जानिये पूरा मामला
एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के नाम खरीदी गई दो संपत्तियों पर मालिकाना हक को लेकर ट्रायल कोर्ट (Trial Court News) में याचिका दर्ज करवाई थी। ट्रायल कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए व्यक्ति से उन दोनों संपत्तियों पर हक जताने का अधिकार छीन लिया। ऐसे में व्यक्ति ने इंसाफ के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस वाल्मीकि जे. मेहता की बेंच ने एक व्यक्ति की अपील को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की इस व्यक्ति की मांग थी उसे इन दो संपत्तियों (Property News) का मालिकाना हक दिया जाए, जो उसने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से खरीदी। इनमें से एक न्यू मोती नगर और दूसरी गुड़गांव के सेक्टर-56 में बताई गई।
पत्नी के नाम खरीद गई संपत्ति का असली मालिक कौन?
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इन दो संपत्तियों का असली मालिक वह है, न कि उनकी पत्नी जिसके नाम पर उसने यह संपत्ति खरीदी। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने बेनामी ट्रांजैक्शन (प्रोहिबिशन) ऐक्ट (Benami Transaction Act), 1988 के उस प्रावधान के आधार पर याचिकाकर्ता के इस अधिकार को जब्त कर लिया, जिसके तहत संपत्ति रिकवर करने के अधिकार पर प्रतिबंध है।
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के संबंधित आदेश को रद्द करते हुए कहा कि निचली अदालत ने इस व्यक्ति की याचिका को शुरुआत में ही ठुकरा कर गलती कर दी। क्योंकि संबंधित आदेश जब पारित किया गया तब प्रोहिबिशन ऑफ बेनामी प्रॉपर्टी ट्रांजैक्शन ऐक्ट(Prohibition of Benami Property Transaction Act) , 1988 संशोधन के साथ लागू था।
हाईकोर्ट ने कही बड़ी बात
कोर्ट ने कहा कि इस संशोधित कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि कौन से लेनदेन बेनामी है और कौन से नहीं। हाई कोर्ट ने बताया कि मौजूदा मामले में प्रॉपर्टी का पत्नी के नाम पर होना इस कानून के तहत दिए गए अपवाद में आता है।
क्योंकि एक व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अपने जीवनसाथी के नाम पर संपत्ति (Property Ownership Rules) खरीद सकता है। और जिन परिस्थितियों में यहां संपत्ति खरीदी गई, इससे खरीदी गई प्रॉपर्टी बेनामी नहीं है।इस मामले में प्रॉपर्टी पत्नी ने खरीदी है। इसलिए वह दोनों संपत्ति पत्नी की नहीं बल्कि पति की है और वही उनका असली मालिक है। लिहाजा, ट्रायल कोर्ट का आदेश इस संदर्भ में अवैध है।
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हाईकोर्ट (High Court Decision) ने मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट के पास भिजवाते हुए कहा है कि इसपर दोबारा विचार किया जाए और याचिकाकर्ता को संशोधित कानून के तहत छूट मिलने का अधिकार है या नहीं, यह तथ्यों की जांच पर निर्भर करता है जो ट्रायल से ही तय होगा। ऐसे में केस को शुरुआत में ही खारिज नहीं किया जा सकता।