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UP में 30 साल में पहली बार ऐसा मौसम, जानिये अगले हफ्ते का हाल

बताया जा रहा है कि इस महीने सबसे ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ आए। जिसके कारण कई इलाकों में अच्छी बारिश हुई। मौसम विभाग ने बारिश को लेकर भविष्वाणी की है। मौसम विभाग की माने तो आने वाली 28 तारीख को बारिश की संभवाना जताई जा रही है। 

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UP  में 30 साल में पहली बार ऐसा मौसम, जानिये अगले हफ्ते का हाल

HR Breaking News (नई दिल्ली)। पूर्वांचल में आधी रात के बाद मौसम बदल गया है। गोरखपुर समेत आसपास के इलाकों में तेज हवाओं के बाद सुबह से हल्‍की बारिश हो रही है। बादलों ने लखनऊ में भी असर दिखाना शुरू कर दिया है। लोगों को चिलचिलाती धूप और गर्मी से राहत मिल सकती है। 

तीन दशक में पहली बार मई गरजा और बरसा है। इस महीने सबसे ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ आए और आगे भी संभावित हैं। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक ताजा विक्षोभ की शुरुआत मंगलवार रात से हो गई है जिसका असर 28 मई तक जारी रहेगा। आंकड़ों के मुताबिक 30 साल में मई में कभी बादल नहीं गरजे। जून में जरूर इसका औसत 3.3 दिन प्रति वर्ष-प्रति माह रहा है। 

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 1991 से लेकर 2020 तक मौसम से जुड़ी एक्सट्रीम कंडीशन (चरम स्थिति) के आंकड़े जारी किए हैं। इसके अनुसार मई में औसत (माध्य-मीन) तापमान इन तीन दशकों में 40.3 और न्यूनतम 25.4 डिग्री सेल्सियस रहा है। मई में माध्य यानी मीन बारिश के दिवसों की संख्या मात्र 1.4 है। तीन दशकों में मई में बारिश का औसत मात्र 10.3 मिमी रहा है।

कभी नहीं रही गरज-चमक

रिकॉर्ड की बात करें तो 30 साल में मई में गरज-चमक ज्यादा नहीं रही है। आईएमडी ने इसका माध्य मात्र 1.6 निकाला है। इसका अर्थ यह है केवल अपवाद के तौर पर ही गरज-चमक रही है। ओलावृष्टि, कोहरा और तूफान कभी नहीं रहा। पर यह बातें वर्ष 2020 तक की हैं। 2023 में मई महीने में ओलावृष्टि भी हुई और तूफानी हवाएं और बारिश का सामना भी करना पड़ा।

सबसे ज्यादा गरज-चमक अगस्त में

आईएमडी के अनुसार कानपुर में पिछले तीन दशकों की बात करें तो सर्वाधिक गरज-चमक अगस्त में होती है। इस माह औसतन (माध्य) 9.4 दिन बादल गरजते हैं। जून में अपेक्षाकृत गरज-चमक के दिवस अधिक रहे हैं इनका माध्य 4.4 रहा है। यह माध्य जुलाई में 5.8, सितंबर में 6.4, अक्तूबर में 0.8, नवंबर में 08 और दिसंबर में 0.8 रहता है। 1971 के बाद की बात करें तो इस साल मई में सर्वाधिक 63.4 मिमी वर्षा रिकॉर्ड की जा चुकी है। सीएसए के मौसम विज्ञानी डॉ. एसएन सुनील पांडेय के मुताबिक पिछले पांच दशकों में भी मई का ऐसा नेचर नहीं रहा है। खूब पश्चिमी विक्षोभ आ रहे हैं। मंगलवार से नए पश्चिमी विक्षोभ का असर भी दिखने लगेगा जो 28 मई तक खिंच सकता है।

तापमान में उतार-चढ़ाव से गिरने-फटने लगे फल

मई में तापमान के उतार-चढ़ाव और बेमौसम बारिश का असर फलों पर भी पड़ा है। कुछ फल ज्यादा प्रभावित हुए हैं। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक जब मौसम में अनिश्चितता हो जाती है तो किसान सिंचाई नहीं करते। इससे फल फटने और गिरने लगे हैं। छोटे भी होने लगे हैं। विशेषकर लीची, नींबू और आम की फसल ज्यादा प्रभावित हुई है।

इस महीने बारिश से तापमान सामान्य से कम बना रहा। अब तक केवल चार बार तापमान 40 या इसके ऊपर गया। इसका असर मौसमी फलों पर पड़ा। कुछ फल टूटकर गिर गए तो कुछ फट गए या रंगत बदल गई। कुछ में मिठास कम हो गई। स्वाद में भी मामूली परिवर्तन होने लगा। लीची की मिठास कम हो गई। तरबूज और खरबूजा जो देसी है वह फीका पड़ गया। हाईब्रिड पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

हॉर्टिकल्चर सीएसए के प्रोफेसर और हेड डॉ.विवेक त्रिपाठी ने बताया कि किसानों ने मई में मौसम में उतार-चढ़ाव के कारण सिंचाई नहीं की। इससे फलों का छोटा होना, गिरने लगना और टूटने लगना स्वाभाविक है। मिठास और स्वाद दोनों में अंतर पड़ता है। यह दिखने भी लगा है।

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सीएसए के मौसम विज्ञानी डॉ.एसएन सुनील द्विवेदी ने बताया कि मई का औसत तापमान कम हो जाने का असर फलों की फसलों पर पड़ना तय है। लीची जो शहर की है वह छोटी हो गई है। तरबूज और खरबूजा जो देसी होता है उस पर असर पड़ा है। खीरा, ककड़ी का उत्पादन प्रभावित हुआ है।