home page

High Court Decision : इस स्थिति में पति का दूसरी महिला के साथ रहना गलत नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

पति पत्नी का रिश्ता प्यार और विश्वास पर टिका होता है। हां, कई बार शादीशुदा जिंदगी में छोटी छोटी बातों को लेकर लड़ाई-झगड़े तो होते ही रहते हैं। लेकिन कई बार ये झगड़े इतने बढ़ जाते हैं कि रिश्ते में दूरियां बढ़ जाती है। बात यहां तक पहुंच जाती है कि पति पत्नी एक दूसरे से अलग होने का फैसला तक ले लेते हैं। एक ऐसा ही मामला सामने आया है। जहां एक महिला ने अपने पति पर दूसरी के साथ रिलेशनशिप में रहने का आरोप लगाया। दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। आइए जानते हैं - 

 | 

HR Breaking News (ब्यूरो)। भारतीय समाज में शादी को सबसे पवित्र रिश्ता माना गया है। शादी के बाद पति पत्नी के बीच सात जन्मों तक का रिश्ता होता है। लेकिन कई बार वाद विवाद इतने ज्यादा बढ़ जाते हैं कि दोनों अलग होने का फैसला ले लेते हैं। ज्यादातर मामलों में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर (extra marital affair) की वजह से रिश्ते में दरार आ जाती है। 


आमतौर पर किसी भी शादी में तनाव होने पर पत्नी या पति का किसी दूसरे साथी के साथ रहना कानून के मुताबिक सही नहीं माना जाता है। लेकिन इसी तरह के एक केस में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने पति को सही ठहराया और इसे पत्नी के खिलाफ क्रूरता भी नहीं माना है। हालांकि, अदालत ने इसमें मानवीय पहलू को देखते हुए फैसला सुनाया है।


दरअसल आईपीसी की धारा 494 में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत किसी भी भी पुरुष या महिला का अपने जीवनसाथी के जीवित रहते हुए  (अगर तलाक नहीं हुआ है) दूसरी शादी करना अपराध है भले ही पति या पत्नी ने इसकी इजाजत दी हो। 

Aadhaar Update : 17 जून तक निपटा लें आधार कार्ड से जुड़े काम, बाद में लगेंगे पैसे

जानिये क्या है पूरा मामला- 

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ केस कर आरोप लगाया कि उसका पति किसी दूसरी महिला के साथ रहता है। महिला की शादी साल 2003 में हुई थी लेकिन दोनों 2005 में अलग-अलग रहने लगे थे। वहीं, पति ने ये आरोप लगाया कि पत्नी ने उसके साथ क्रूरता की है और अपने भाई और रिश्तेदारों से उसकी पिटाई भी करवाई है।

इस मामले में केस करने वाली पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि उसके घरवालों ने उनकी शादी भव्य तरीके से की थी। इसके बावजूद पति ने उसके परिवार से कई तरह की डिमांड की। उसने आरोप में ये भी कहा कि उसकी सास ने उसे कुछ दवाइयां इस आश्वासन से दी थीं कि लड़का पैदा होगा, लेकिन उनका मकसद उसका गर्भपात कराना था। हालांकि इस जोड़े के दो बेटे हैं।

अदालत ने क्यों सुनाया ऐसा फैसला?


केस की सुनवाई के दौरान ये तथ्य सामने आया कि दोनों कई सालों से अलग-अलग रह रहे हैं। इस दौरान पति किसी दूसरी महिला के साथ रहने लगा है। ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने फैसला सुनाया कि यदि कोई जोड़ा लंबे समय तक एक-दूसरे के साथ नहीं रहता है और उन दोनों के फिर मिलने की कोई संभावना नहीं है। इन हालात के बीच पति को किसी अन्य महिला के साथ सुकून और शांति से रहने लगा है तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।

न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा, "भले ही यह स्वीकार कर लिया जाए कि तलाक की याचिका लंबित होने के दौरान प्रतिवादी-पति ने दूसरी महिला के साथ रहना शुरू कर दिया है और उनके दो बेटे हैं, इसे अपने आप में, इस मामले की विशिष्ट परिस्थितियों में क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। जब दोनों पक्ष 2005 से साथ नहीं रहे हैं और अलगाव के इतने लंबे वर्षों के बाद पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं है और प्रतिवादी पति को किसी अन्य महिला के साथ रहकर  शांति और सकून मिलता है तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।

साथ ही इस मामले में ये भी कहा गया कि इस तरह के संबंध का परिणाम प्रतिवादी पति, संबंधित महिला और उसके बच्चों को भुगतान देना होगा। अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की याचिका खारिज कर दी।

अदालत ने महिला को ही माना क्रूर


साथ ही अदालत ने ये भी कहा कि भले ही पत्नी ने दावा किया था कि उसे दहेज के लिए उत्पीड़न और क्रूरता का शिकार होना पड़ा है, लेकिन वो अपने दावे को साबित नहीं कर पाई और यह क्रूरता का कृत्य है।

अदालत ने ये भी आदेश दिया कि महिला ने शादी के बाद दो बेटों को जन्म दिया, लेकिन महिला ने पति की दूसरी शादी का न तो कोई विवरण दिया, न ही कोई सबूत अदालत में पेश किया और न ही पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। हाईकोर्ट ने महिला की अपील खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट के तलाक देने के आदेश को जारी रखा है। बता दें इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ में हो रही थी।

दूसरी शादी पर क्या कहता है कानून?


भारत में विवाह का मामला पर्सनल लॉ से जुड़ा हुआ है। पर्सनल लॉ ऐसा कानून है जो लोगों के व्यक्तिगत मामलों में लागू होता है। इस कानून के अंतर्गत धर्म या समुदाय आते हैं।

कानून के तहत एक पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करना भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 494 के अंतर्गत दंडनीय अपराध माना जाता है। इस धारा के अंतर्गत दूसरा विवाह करने पर 7 साल की जेल की सजा हो सकती है।

भारत में विवाह दो प्रकार से होते हैं। एक विवाह पर्सनल लॉ के अंतर्गत होता है और दूसरा विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत, 1956 के अंतर्गत। दोनों ही कानूनों में पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरे विवाह को दंडनीय अपराध माना जाता है। जैसे कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 17 दूसरा विवाह करने पर सजा का उल्लेख करती है।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये अधिनियम धर्म और प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए लागू होता है। जैसे हिंदू समाज में दूसरा विवाह मान्य नहीं है तो इस कानून के तहत ऐसी शादी करने वाले व्यक्ति को सजा का प्रावधान है, लेकिन वहीं मुसलिम समाज में दूसरा विवाह गलत नहीं माना जाता। ऐसे में इस कानून के तहत वहां सजा का प्रावधान नहीं है।

इस शिकायत पर पुलिस नहीं कर सकती गिरफ्तारी

7th pay commission : 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनर्स के लिए काम की खबर, जानिये CGHS या ECHS में से कौन से कार्ड में मिलती हैं ज्यादा सुविधाएं


भले ही इस अपराध के तहत सजा का प्रावधान है, लेकिन इसे असंज्ञेय अपराध माना जाता है। जिसके तहत पुलिस संबंधित व्यक्ति की शिकायत दर्ज कर व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती। इस अपराध को शिकायकर्ता परिवाद के तौर पर प्रस्तुत कर सकता है। अगर पति या पत्नी दूसरी शादी कर लेते हैं तो ऐसे मामले में पति या पत्नी ही शिकायत कर सकते हैं। उनके परिवार का कोई अन्य सदस्य इस तरह की शिकायत करने का हकदार नहीं होता।

दूसरे विवाह को मिलती है कानूनी मान्यता?


भारत के संविधान के तहत दूसरे विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती। हालांकि संविधान ने ऐसे मामलों में पत्नी के प्रति उदारता बरतते हुए दूसरी पत्नी को भी भरण-पोषण का अधिकारी माना है।कानून के तहत ऐसे मामलों में दूसरी पत्नी और उसके बच्चे भी भरण-पोषण का अधिकार रखते हैं और अपने पिता की संपत्ति में भी अधिकार रखते हैं।

वहीं किसी पति या पत्नी को अपने साथी की दूसरे विवाह की शिकायत करनी हो तो ऐसे मामलों में कोई निश्चित अवधि नहीं होती। 10 साल बाद भी वह व्यक्ति अपने साथी की दूसरे विवाह की शिकायत कर सकता है। ऐसे मामलों में आरोपी पाए जाने पर न्यायलय द्वारा उसे सजा दी जाती है। हालांकि अदालत मौजूदा सबूतों और गवाहों के आधार पर मामले में फैसला सुनाती है।