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High Court : पत्नी ने पति पर दर्ज करवाया केस, सुनवाई के दौरान जज साहब को भी आ गई हंसी

High Court Decision - पत्नी पत्नी का रिश्ता प्यार और विश्वास पर टिका होता है। लेकिन शादी के बाद पति पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ाई-झगड़ा होना आम बात है। वहीं, कुछ ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं जहां पत्नी पत्नी के बीच विवाद इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि बात तलाक तक आ जाती है। कोर्ट में एक ऐसा ही मामला सामने आया है। एक महिला ने अपने पति के खिलाफ कोर्ट में याचिका दर्ज करवाई थी। जिसपर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसलते दिया है। 

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HR Breaking News (ब्यूरो)। दरअसल, जस्टिस जसमीत दिल्ली की एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। महिला ने कड़कड़डूमा कोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी थी। इसमें उसे घरेलू हिंसा के आरोप में समन जारी किया गया था।

सबसे पहले जानते हैं केस क्या है?

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फरवरी 2008 में सान्या की शादी राहुल से हुई। 14 साल बाद सान्या और राहुल के बीच अनबन होने लगी, जो धीरे-धीरे मारपीट तक पहुंच गई। 24 अगस्त 2022 को राहुल ने पत्नी से तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दायर की। इसके साथ ही राहुल ने घरेलू हिंसा कानून की धारा 18, 20, 21 के तहत सान्या के खिलाफ केस भी दर्ज करवाया था।


राहुल ने अपनी शिकायत में बताया कि उसकी पत्नी दबंग प्रकृति की है। उसके 52 व्यक्तियों के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर हैं। इनमें से दो प्रेमियों के नाम भी इस केस में भी शामिल हैं। राहुल ने घरेलू हिंसा कानून 2005 की धारा 22 के तहत पत्नी से 36 लाख मुआवजे की मांग की।

सान्या ने भी 19 अक्टूबर 2022 को पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया कि उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों ने मौखिक, शारीरिक और भावनात्मक तौर पर उसका शोषण किया है। साथ ही सान्या ने मुआवजे के तौर पर 2 करोड़ रुपए की मांग की थी।

इस मामले में दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने सान्या के खिलाफ समन जारी कर दिया। जिसे उसने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसी मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून में महिला को आरोपी नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी है।

घरेलू हिंसा कानून 2005 क्या है?

सरकार ने साल 2005 में घरेलू हिंसा को रोकने के लिए एक कानून बनाया था, जिसे घरेलू हिंसा कानून 2005 या घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 कहते हैं। इस कानून के मुताबिक घरेलू हिंसा का मतलब सिर्फ पति का पत्नी को पीटना और जलील करना नहीं है, बल्कि किसी महिला को पति या उसके परिवार की ओर से फिजिकल, मेंटल, सेक्शुअल या फिर फाइनेंशियल यातना देना भी घरेलू हिंसा है। यह पुरुष दादा, पिता, चाचा, ताऊ, भाई, पति या फिर बेटा हो सकता है।


घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत महिला आरोपी क्यों नहीं बनाई जा सकती है?

इस कानून के तहत मां, बहन, बेटी, पत्नी या फिर लिविंग पार्टनर आदि में से कोई भी घरेलू हिंसा की शिकार होने पर मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है। कानून की धारा 2(A) में महिला को सिर्फ पीड़ित माना गया है। ऐसे में वह आरोपी नहीं हो सकती है।

घरेलू हिंसा कानून 2005 के आधार पर हर जिले में ‘सेफ हाउस’ बनाने और प्रोटेक्शन ऑफिसर नियुक्त करने की व्यवस्था भी की गई है। कानून में कहा गया है कि किसी भी हाल में पीड़िता को परिवार वाले घर से नहीं निकाल सकते हैं।

इस कानून की सबसे खास बात ये है कि इसके तहत एक बच्चा भी अपने पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकता है। अगर बच्चे को लगता है कि उसका पिता उसकी मां के साथ मारपीट कर रहा है या प्रताड़ित कर रहा है तो उसके बयान के आधार पर शिकायत दर्ज की जा सकती है।


अगर पुरुषों के साथ घरेलू हिंसा होती है तो किस कानून के तहत केस करा सकते हैं?


सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि अगर पुरुषों के साथ पत्नी घरेलू हिंसा करती हैं तो उनके पास दो विकल्प हैं...

1. वह तलाक के लिए कोर्ट में केस दायर कर सकते हैं।

2. अगर पत्नी किसी और के साथ मिलकर पति से मारपीट करती है, चोट पहुंचाती है, मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है, या जानबूझकर समाज में पति की प्रतिष्ठा को कम करती है। ऐसे में पति IPC की अलग-अलग धाराओं में पत्नी के खिलाफ केस दर्ज करवा सकता है। जैसे..

जान से मारने की धमकी देने पर: IPC की धारा 506
मारपीट करने पर: IPC की धारा 323
गाली-गलौज करने पर: IPC की धारा 294

क्या घरेलू हिंसा कानून 2005 पुरुष विरोधी है?

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एडवोकेट विराग गुप्ता का कहना है कि जब कोई कानून समाज के एक वर्ग की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है तो दूसरे वर्ग को लगता है कि ये कानून उसके खिलाफ है। हालांकि ये बात सही नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि घरेलू हिंसा कानून 2005 महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है न कि पुरुषों के खिलाफ भेदभाव या आक्रामकता को बढ़ाने के लिए है। जैसे- समाज में SC/ST से होने वाले भेदभाव को कम करने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम है। उसी तरह से महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए ये कानून है।

वहीं, एक अन्य वकील अंशिमा मंडला ने एक इंटरव्यू में कहा है कि यह कानून सिर्फ महिलाओं के लिए है। इस कानून के तहत कानूनी सुरक्षा पूरी तरह से महिलाओं के लिए सीमित रखी गई है। इसके अलावा IPC की धारा 498A भी केवल महिलाओं को ही पीड़ित मानती है, जबकि आरोपी महिला या पुरुष कोई भी हो सकता है। अंशिमा का कहना है कि इस कानून को कई बार अलग-अलग कोर्ट में पुरुष विरोधी बताकर चुनौती दी गई है। हालांकि इस तरह के तर्क में कुछ खास दम नहीं है।

घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत कितने साल की सजा हो सकती है?

घरेलू हिंसा का कानून क्रिमिनल ऑफेंस नहीं बल्कि सिविल ऑफेंस है। ऐसे में इस कानून के सेक्शन- 31 के तहत कोर्ट दोषी को एक साल की जेल और जुर्माने की सजा सुना सकता है।

इस मामले में कानूनी कार्रवाई और सजा का प्रावधान CrPC 1973 के तहत होता है। इस कानून के तहत बिना तलाक लिए भी महिला अपने पति से गुजारा भत्ता ले सकती है। इस कानून में IPC की कुछ धाराएं जुड़ती हैं। इनमें से एक 498A है, जिसके तहत एक साल से 3 साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

पहले भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है इस तरह का मामला

18 अप्रैल 2017 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक शख्स को उसकी पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत करने की इजाजत दे दी थी। इस मामले में जस्टिस आनंद ब्यारेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले को आधार बनाकर कहा था कि कोई भी पुरुष घरेलू हिंसा कानून के प्रावधानों को अपनी तरफ से लागू कर सकते हैं यानी महिला भी घरेलू हिंसा में आरोपी बनाई जा सकती है।

हालांकि, कुछ दिनों बाद ही अपने नौकरी के आखिरी दिन जस्टिस बायरारेड्डी ने अपने ही आदेश को ‘स्पष्ट रूप से गलत’ बताते हुए उसे वापस ले लिया था। इसके बाद 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने और कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था।