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Ancestral Property - संपत्ति में बेटियों को हिस्सा दिलाने के लिए 28 साल बाद दोबारा की शादी

Ancestral Property - संपत्ति में अपनी बेटियों को हक दिलाने के लिए इस कपल ने 28 साल बाद दुबारा शादी की। सवाल ये उठता है कि क्या फिर इनकी बेटियों को संपत्ति में हिस्सा मिल पाया... आइए जानें नीचे खबर में। 

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Ancestral Property - संपत्ति में बेटियों को हिस्सा दिलाने के लिए 28 साल बाद दोबारा की शादी

HR Breaking News, Digital Desk- इंटरनैशनल विमेंस डे पर एक शादी हुई, जो देशभर में चर्चा का विषय बन गई। यह शादी की एक अभिनेता और वकील ने। उन्होंने साल 1994 में निकाह किया था। तीन बेटियां हैं। शरिया क़ानून के मुताबिक, बेटियों को संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं मिलता।

बेटियों को अपने पिता की संपत्ति का सिर्फ दो-तिहाई हिस्सा ही मिलता है। अपनी बेटियों को अपने परिवार की संपत्ति का पूरा हिस्सा मिले, इसके लिए दंपति ने निकाह के 28 साल बाद दोबारा शादी की, 8 मार्च 2023 को। वह भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत।

दंपति का कहना है कि उत्तराधिकार अधिनियम में विभेद है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटी को पूरा हिस्सा मिलता है। क्रिश्चियन पैरेंट्स की संपत्ति में भी बच्चों को पूरा अधिकार मिला हुआ है। लेकिन, वे मुस्लिम धर्म में विश्वास करते हैं, इसलिए उनकी बेटी के साथ संपत्ति के उत्तराधिकार में भेदभाव है।

उनक कहना है कि मुस्लिम पर्नसल लॉ यानी शरीयत लॉ के तहत मुस्लिम में उत्तराधिकार तय होता है। अदालत डीएच मुल्ला की लिखी किताब पर भरोसा करती है। मुस्लिम लॉ के तहत उनकी बेटियों को उनकी संपत्ति का दो तिहाई ही मिलेगा और बाकी प्रॉपर्टी उनके भाइयों को मिल जाएगी। ऐसे में मुस्लिम उत्तराधिकार नियम में बदलाव की ज़रूरत है। समय-समय पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम में बदलाव हुआ है। उन्होंने यह भी कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के बाद उनका मामला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत आएगा।

अलग-अलग पर्सनल लॉ के तहत उत्तराधिकार अधिनियम क्या कहता है?

सबसे पहले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को देखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2020 को अपने एक अहम फैसले में कहा था कि बेटी को पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर का अधिकार है। हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के वक़्त चाहे बेटी के पिता ज़िंदा रहे हों या नहीं, बेटी को हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (एचयूएफ) में बेटे के बराबर संपत्ति में अधिकार मिलेगा। बेटी के पैदा होते ही उसे जीवनभर बेटे के बराबर का अधिकार मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 की धारा-6 के तहत प्रावधान है कि बेटी पैदा होते ही हमवारिस यानी सहदायिकी हो जाती है। महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिए जाने के लिए संसद ने 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बनाया। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन के लिए लागू है। इन चारों समुदाय पर हिंदू लॉ अप्लाई होता है।

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य जजमेंट में कहा कि अगर हिंदू पुरुष की बिना विल (वसीयत) की मौत हो जाए, तो उस पुरुष की बेटियों को पिता की ख़ुद की अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति पाने का हक है।

अब बात मुस्लिम पर्नसल लॉ के तहत उत्तराधिकार के नियम की।

एडवोकेट सलीम अहमद खान बताते हैं कि मुस्लिम में शरीयत एक्ट 1937 के तहत उत्तराधिकार संबंधित विवाद का निपटारा होता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत प्रावधान है कि अगर ऐसी कोई संपत्ति है, जिसमें नॉमिनी का नाम है, तो नॉमिनी सिर्फ लेनदेन की सहूलियत के लिए होता है। संपत्ति का बंटवारा या पैसे का बंटवारा पर्सनल लॉ के तहत तय उत्तराधिकारियों में होता है।

मसलन, किसी शख़्स की मौत हो जाए, तो उसकी संपत्ति में उनके बेटे, बेटी, विधवा और माता-पिता, सबका हिस्सा तय किया गया है। बेटे से आधी संपत्ति बेटी को देने का प्रावधान है। पति की मौत के बाद विधवा को संपत्ति का छठवां हिस्सा दिया जाता है। माता-पिता के लिए भी हिस्सेदारी तय की गई है। अगर बेटियां ही हैं, तो उनको दो-तिहाई हिस्सा ही मिलेगा। मुस्लिम शख़्स वसीयत में भी अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा ही कर सकता है। बाकी दो तिहाई संपत्ति की वसीयत नहीं कर सकता।

अगर किसी की बिना वसीयत के मौत हुई, उनका वारिस ना हो और शादी भी ना हुई हो, तो मृतक के भाई और बहन को संपत्ति मिलती है। भाई-बहन न होने की स्थिति में उनकी संतानों का हक होता है।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 क्या कहता है?

हाईकोर्ट के एडवोकेट अखिलेश मिश्र का कहना है कि अगर किसी शख़्स की बिना वसीयत किए मौत हो जाती है, तो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उसकी संपत्ति उसके क़ानूनी वारिसों में एक समान वितरित होगी। मृतक अपनी कमाई संपत्ति या पैतृक संपत्ति के उसके हिस्से की संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है। मृतक ने अगर कोई वसीयत की हुई हो, तो उसकी संपत्ति वसीयत के हिसाब से विभाजित होगी। एक्ट के मुताबिक, अगर मृतक के पीछे उनकी विधवा और बच्चे हैं, तो उनमें वह प्रॉपर्टी बंटेगी। अगर विधवा भी नहीं है, तो संपत्ति बच्चों के बीच बंटेगी और अगर बच्चे भी नहीं हैं तो ग्रैंड चिल्ड्रेन के बीच संपत्ति का बंटवारा होगा।

लेकिन, इस शादी से कई क़ानूनी सवाल भी उभरे-

एडवोकेट ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि मीडिया में आए मौजूदा मामले में कुछ सवाल हैं। मसलन, क्या दंपति ने पहले तलाक लिया और फिर स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी की या फिर बिना तलाक के ही शादी कर ली? स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधान के मुताबिक, वही लोग शादी कर सकते हैं, जो शादी के योग्य हैं।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरला मुद्गल केस में व्यवस्था दी थी कि जो पहले की शादी है, उसके दायित्व का निर्वहन आवश्यक है। धर्म बदलकर दूसरी शादी करने से पहले शादी का दायित्व ख़त्म नहीं हो जाता। इसका मतलब कि पहले विवाह के कारण जो राइट क्रिएट हुए हैं और जो दायित्व हैं, उसका निर्वाह करना ज़रूरी है। मौजूदा मामले को भी सरला मुद्गल केस के चश्मे से देखा जा सकता है। मामला जटिल है और कई क़ानूनी सवाल हैं, जिनके जवाब आना बाकी है।