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Poppy Cultivation : इन राज्यों में होती है अफीम की खेती, सरकार देती है लाइसेंस

आज दुनिया भर में अफीम का इस्तेमाल होता है और और आज बहुत सारी दवाइयों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है, देश के कई इलाकों में इसके ऊपर बैन लगा है पर कुछ जगहें ऐसी है जहाँ इसकी खेती खुलेआम होती है और सरकार इसके लिए लाइसेंस भी देती है |

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इन राज्यों में होती है अफीम की खेती, सरकार देती है लाइसेंस

HR Breaking News, New Delhi :  मध्य प्रदेश में अफीम की खेती करने वाले किसानों अच्छी खबर है. इससे फायदा मंदसौर के किसानों को होगा, क्योंकि सरकार ने अफीम पोस्तो से जुड़े किसानों को लाइसेंस देने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है. 1 अक्टूबर, 2021 से 30 सितंबर 2022 तक अफीम फसल वर्ष के दौरान अफीम पोस्त की खेती (Opium farming) के लिए लाइसेंसों की मंजूरी का नोटिफिकेशन जारी किया है.  

केंद्र की इस मंजूरी से अफीम पोस्त की खेती करने वाले किसानों को फायदा मिलेगा. नोटिफिकेशन में यह भी लिखा गया कि ऐसा किसान भी अफीम पोस्त की खेती का लाइसेंस पा सकता है, जो इससे पहले कभी इस पेशे में न रहा हो, हां शर्त यह है कि उसके नाम की अनुशंसा अफीम की खेती करने वाले किसान ने की हो.

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क्या है अफीम?
अफीम एक लोकप्रिय मादक पदार्थ के रूप में प्रसिद्ध है. आमतौर पर इसे लोग हैरोइन का सोर्स मानते हैं. लेकिन देश में अफीम का उपयोग वैध ड्रग व्यापार के लिए होता है. इसके बीजों से प्राप्त मार्फिन, लेटेक्स, कोडेन और पनैनथ्रिन शक्तिशाली एल्कालोड्स का सोर्स होता है. इसके बीजों में अनेक रासायनिक तत्व पाए जाते हैं. जोकि नशीले होते हैं. फसल की गुणवत्ता के अनुसार अफीम की कीमत 8,000 से 1,00,000 प्रति किलो तक होती है.

कैसा होता है अफीम का पौधा?
आमतौर पर अफीम पौधे की लंबाई 3-4 फुट होती है. यह हरे रेशों और चिकने कांडवाला पौधा होता है. अफीम के पत्ते लम्बे, डंठल विहीन और गुड़हल के पत्तों जैसे होते हैं. वहीं इसके फूल सफ़ेद और नीले रंग और कटोरीनुमा होते हैं. जबकि अफीम का रंग काला होता है. इसका स्वाद बेहद कड़वा होता है. इसे हिंदी में अफीम, सस्कृत में अहिफेन (Ahifen), मराठी आफूा (Afooa) और अंग्रेजी ओपियुम (Opium) और पोपी कहा जाता है. 

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लाइसेंस पाने की क्या है पात्रता?
- केंद्र सरकार द्वारा जारी लाइसेंस नोटिफिकेशन में ऐसे किसानों को लाइसेंस पहले दिया जाएगा तो जिन्होंने फसल वर्ष 2018-19 , 2019-20 और 2020-21 के दौरान खेती की हो. साथ कुल क्षेत्रों का 50 फीसदी से अधिक मात्रा में जुताई कर दी. 
- वर्ष 2020-21 के दौरान अफीम पोस्त की खेती करने वाले किसान पात्र होंगे. शर्त यह है कि उनके मार्फीन की औसत उपज 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम न रही हो.
- नेशनल नारकोटिक्स ब्यूरो (National Narcotics Bureau) की देखरेख में फसल वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान अपनी संपूर्ण पोस्त की फसल की जुताई करने वाले किसान, लेकिन शर्त यह है कि वे किसान वर्ष 2017-18 के दौरान अपनी सम्पूर्ण पोस्त फसल की जुताई नहीं थी.
- नई शर्तों में ऐसे किसानों को भी लासइेंस मिल सकता है जिन्हें लाइसेंस मंजूर न करने के खिलाफ अपील को फसल वर्ष 2020-21 में निपटान की अंतिम तारीख के बाद अनुमति दे दी गई हो.
- ऐसे किसान जिन्होंने फसल वर्ष 2020-21 या किसी अगले वर्ष में पोस्त की खेती की हो और जो अनुवर्ती वर्ष में लाइसेंस के लिए पात्र थे, किन्तु किसी कारणवश स्वेच्छा से लाइसेंस प्राप्त न किया हो अथवा, जिन्होंने अनुवर्ती फसल वर्ष में लाइसेंस प्राप्त करने के बाद किसी कारणवश अफीम पोस्त की खेती वास्तव में न की हो.
- अंतिम और खास शर्त यह है कि ऐसे किसानों को लाइसेंस मिल सकता है जिन्हें किसी दिवंगत पात्र किसान (Farmer) ने फसल वर्ष 2020-21 के लिए कॉलम 11 में नामित किया हो.

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क्या हैं शर्तें?
केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में किसी भी किसान का लाइसेंस तब तक मंजूर नहीं होगा, जब तक कि वह इन शर्तों को पूरा न करता हो. 
पहली शर्त- उस किसान ने फसल वर्ष 2020-21 के दौरान पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसशुदा वास्तविक क्षेत्र से 5 फीसदी क्षम्य क्षेत्र से अधिक क्षेत्र में खेती न की हो. 
दूसरी शर्त- उस किसान ने कभी भी अफीम पोस्त की अवैध खेती न की हो. 
तीसरी शर्त- उस किसान पर नारकोटिक औषधि व मनःप्रभावी द्रव्य पदार्थ अधिनियम 1985 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अंतर्गत किसी अपराध (Crime) के लिए किसी सक्षम न्यायालय में आरोप नहीं सिद्ध किया गया हो.

देश में कितने हेक्टेयर में होती है अफीम की खेती
अफीम की खेती के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स द्वारा किसानों को लाइसेंस दिए जाते हैं. वैधानिक रूप से सिर्फ तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में ही अफीम की खेती के लिए हजारों लाइसेंस दिए गए हैं. वर्तमान में मध्यप्रदेश के मंदसौर व नीमच, राजस्थान के कोटा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा व प्रतापगढ़ और उत्तर प्रदेश के लखनऊ व बाराबंकी में साढ़े पांच हजार हेक्टेयर में अफीम की खेती का रकवा तय है. केंद्र सरकार ने साल वर्ष 2020-21 के लिए अफीम नीति जारी कर दी है. जिसके तहत अफीम करने क्षेत्रों में किसानों को अफीम के पट्टे जारी कर दिए गए हैं. वहीं अफीम की खेती करने वाले किसानों को सरकार ने कुछ सौगातें भी दी है. इस साल अफीम खेती के लिए आवश्यक न्यूनतम मार्फिन का मानक 4.2 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखा गया है. बता दें कि पिछले साल देश के 39 हजार किसानों ने अफीम की खेती की थी.

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मंदसौर है दुनियाभर में फेमस
मंदसौर में यूं तो कई तरह की खेती होती है, लेकिन अफीम की खेती के लिए ये दुनियाभर में मशहूर है. यहां दुनिया में सबसे ज्यादा अफीम की खेती होती है. इसके अलावा, स्लेट-पैंसिल उद्योग जिले का महत्वपूर्ण उद्योग है. मंदसौर की अफीम दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

अफीम के सौदागरों को मृत्युदंड
दुनिया के अलग-अलग देशों में अफीम से तैयार की जाने वाली स्मैक, हैरोइन, ब्राउन शुगर जैसे ड्रग्स बेचने या उनका इस्तेमाल करने पर मौत की सजा दी जाती है. इसमें सबसे ज्यादा कठोर कानून अरब देशों में है, जहां सीधे ही तस्करों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. इसके अलावा नॉर्थ कोरिया, फिलीपींस, मलेशिया जैसे देशों में भी यही कानून है. चीन, वियतनाम, थाईलैंड सरीखे देशों में तस्करों व ड्रग एडिक्ट को रीहेबिलिटेशन सेंटर या जेल में लंबे समय के लिए डाल दिया जाता है. जबकि हमारे देश में ड्रग्स के केस में एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत अलग-अलग सजा के प्रावधान हैं. इसमें धारा 15 के तहत एक साल, धारा 24 के तहत 10 की सजा व एक लाख से दो लाख रुपए तक का जुर्माना और धारा 31ए के तहत मृत्युदंड तक का प्रावधान है.

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