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Pricing at 99 : अधिकत्तर चीजों के रेट में क्यों होता है 99, जानिये अंदर की बात

Pricing at 99: अक्सर फिक्स्ड रेट की दुकानों में रखे सामान की कीमत 99 पर ही खत्म होती है. यह 99, 199, 999 या फिर और भी कोई संख्या हो सकती है. लेकिन इन सब में एक चीज समान होगी कि यह कीमत 99 पर ही खत्म होगी.आइए जानते है पूरी कहानी।

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Pricing at 99 : अधिकत्तर चीजों के रेट में क्यों होता है 99, जानिये अंदर की बात

HR Breaking News (नई दिल्ली)। मॉल में या फिर मार्ट में अक्सर चीजों की कीमत 99 रुपये से ही अंत होती है. जैसे कि 199, 299, 999, 1999 और इसी तरह आगे रकम बढ़ती जाती है. लेकिन कीमत बहुत कम ही 100, 200 या 1000 की फिगर में होती है. इस पर आमतौर पर लोग काफी चर्चा भी कर चुके हैं और चर्चाओं से अक्सर यही निकलकर आता है कि कंपनियां इससे किसी तरह का टैक्स वगैरह बचाती हैं. लेकिन यह सही नहीं है. कंपनियों द्वारा कीमतों को 99 पर खत्म करने का मकसद कोई टैक्स बचाना नहीं बल्कि लोगों को प्रोडक्ट की तरफ आकर्षित करना है.

यहां कंपनियां मनोविज्ञान का सहारा लेती हैं और खरीदार के दिमाग के साथ चाल चलती हैं. मनोविज्ञान का एक बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत है प्लेसिबो इफेक्ट जिसका इस्तेमाल कंपनियां करती हैं. मान लीजिए कि कोई व्यक्ति किसी बेहद खराब परिस्थिति में है लेकिन उसे यह एहसास दिला दिया जाए कि उनकी हालत बेहतर होगी और वह अब भी उतनी खराब स्थिति में नहीं हैं जितना उन्हें लग रहा है, तो बेशक वह शख्स कुछ शांत और खुश हो जाएगा. जबकि परिस्थिति अब भी खराब ही है और आगे वह ठीक भी नहीं होने वाली, लेकिन वह शख्स अब पहले से कम डरा हुआ है. यही प्लेसिबो इफेक्ट होता है. प्लेसिबो इफेक्ट परेशानी के समय आपको अच्छा महसूस कराता है लेकिन स्थिति खराब ही होती है.

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99 प्राइसिंग में कैसे काम करता है प्लेसिबो


कंपनियां जब किसी वस्तु की कीमत 99 रखती हैं तो ग्राहक के मन में पहला ख्याल यही आता है कि उन्हें वह प्रोडक्ट 100 रुपये से कम में मिल गया. जबकि वह शख्स उस तीज की कीमत प्रभावी रूप से 100 रुपये ही दे रहा है. 1 रुपये कम होने से उसका खर्च कम नहीं हुआ है. ऐसे 199 की चीज को वह 200 की ना मानकर 100 की लाइन में गिन लेता है. जाहिर तौर पर कुछ ही समय में उसे यह बात समझ आ जाती है लेकिन अब भी ग्राहक का दिमाग उसे 100 की लाइन में ही देख रहा होता है और उसे लगता है कि यह समान तो सस्ता है.

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पहली संख्या पर ध्यान केंद्रित


सामान खरीदते वक्त हमारा ध्यान शुरुआती संख्या पर अधिक केंद्रित होता है. अगर कोई प्रोडक्ट 1000 रुपये का बेचना है तो कंपनियां उससे 999 रुपये पर प्राइस कर देंगी. हमें 1000 रुपये अधिक लगेंगे जबकि 999 रुपये कम क्योंकि 1000 की शुरुआत 10 से है जबकि 999 में पहली संख्या 9 है. हमारा दिमाग उसे 900 से ज्यादा करीब मान लेगा जबकि वास्तव में वह 1000 से बस एक रुपया कम है. इसलिए कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स को 99, 999, 1999 पर प्राइस करती हैं.