Property rights : बच्चों की प्रॉपर्टी में माता-पिता का कितना अधिकार, जान लें क्या कहता है कानून
Property rights for parents : आए दिन कोर्ट कचहरी में संपत्ति से जुड़े कई विवाद सामने आते हैं। इनमें से कुछ मामले बच्चों और माता-पिता के बीच प्रोपर्टी के होते हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि बेटा-बेटी अपने माता-पिता की संपत्ति में अपने अधिकार के लिए जूझते हैं। इसके विपरीत माता-पिता (Parents property rights) भी अपने बच्चों की संपत्ति में अधिकार पा सकते हैं। कानून में इसे लेकर विशेष प्रावधान है। खबर में जानिये इस बारे में क्या कहता है कानून।
HR Breaking News : (Property knowledge) अक्सर लोग मां-बाप की संपत्ति में बच्चों के अधिकारों के बारे में तो जानते हैं, लेकिन जब बात बच्चों की संपत्ति में माता पिता के अधिकारों की आती है तो अधिकतर लोग इस बात को लेकर कनफ्यूज हो जाते हैं कि माता-पिता का संतान की संपत्ति में कितना अधिकार होता है।
जानकारी के लिए बात दें कि कानून (Provision for property rights) में बच्चों की प्रोपर्टी में माता-पिता के अधिकारों के बारे में भी विस्तारित रूप से बताया गया है। इन अधिकारों का उलंघन्न होने पर माता पिता कोर्ट में केस भी फाइल कर सकते हैं। खबर में जान लेते हैं बच्चों की प्रॉपर्टी में माता-पिता का कितना अधिकार होता है।
भारतीय कानून में है ये प्रावधान-
भारतीय कानून के मुताबिक सामान्य परिस्थितियों में माता-पिता को अपने बच्चों की संपत्ति पर दावा (property rights in law) करने का कोई भी अधिकार नहीं दिया जाता है। माता पिता कुछ विशेष परिस्थितियों में ही बच्चों की संपत्ति पर दावा कर सकते हैं।
इसे लेकर सरकार ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में संशोधन भी किया था। इसी अधिनियम की धारा 8 में बच्चों की संपत्ति पर माता-पिता के अधिकारों को भी परिभाषित किया गया है। इसमें बताया गया है कि कब पैरेंट्स अपने बच्चों की संपत्ति पर दावा ठोक सकते हैं।
माता-पिता को कब मिलेगा प्रोपर्टी में हक -
अगर किसी बच्चे का अचानक दुर्घटना या बीमारी से निधन हो जाता है, या फिर वह बड़ा होकर बिना शादी किए और बिना वसीयत छोड़े चला जाता है, तो इसके बाद उसके माता-पिता को उसकी संपत्ति पर हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत अधिकार (Property rights in Hindu Succession Act) मिल सकता है।
हालांकि, माता-पिता दोनों को बराबरी से पूरा अधिकार नहीं मिलता है। हर एक का अपनी हिस्सेदारी का अधिकार अलग-अलग होगा। इस स्थिति में दोनों को अलग-अलग तरीके से संपत्ति पर हक प्राप्त होता है और हर एक को अपनी स्थिति के अनुसार हिस्सा मिलता है।
माता-पिता में से कौन है पहला वारिस -
इस कानून के तहत, बच्चे की संपत्ति पर मां को पहले अधिकार (Parents rights on children's property) मिलता है। अगर मां नहीं होती है तो पिता को संपत्ति पर अधिकार मिलता है। हालांकि, पिता के साथ अन्य रिश्तेदार भी अधिकार का दावा कर सकते हैं।
ऐसी स्थिति में पिता के साथ उन रिश्तेदारों को भी बराबरी का हिस्सा मिलेगा। इसलिए, अगर मां जीवित नहीं है, तो पिता को संपत्ति पर कब्जा (property possession rules) करने का अधिकार होगा, लेकिन दूसरे वारिसों का हिस्सा भी उसी तरह तय किया जाएगा, जैसे पिता का हिस्सा होता है।
बेटा और बेटी के लिए हैं विभिन्न प्रावधान -
हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, संतान की संपत्ति पर माता-पिता का अधिकार संतान के जेंडर पर निर्भर करता है। यदि संतान लड़का (Parents rights on son's property) है तो उसकी संपत्ति पहले मां को और फिर पिता को मिलेगी। यदि मां नहीं है, तो पिता और अन्य रिश्तेदारों के बीच संपत्ति बांटी जाएगी। यदि लड़का शादीशुदा है और वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उसकी पत्नी को संपत्ति का पहला अधिकार होगा।
अगर संतान लड़की (Parents rights on daughter's property) है, तो संपत्ति पहले उसके बच्चों को दी जाएगी, फिर पति को। यदि बच्चे नहीं हैं, तो पति को संपत्ति मिलेगी और अंत में माता-पिता को। इसका मतलब यह है कि लड़की के मामले में माता-पिता को संपत्ति पर दावा करने का अधिकार सबसे बाद में मिलेगा।
