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Property Rights : महिला की मौत के बाद किसे मिलेगी प्रोपर्टी, जान लें कानून

हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के सेक्शन 14, 15 और 16 में इसका उल्लेख है. ये बताते हैं कि किसी विवाहित महिला की प्रॉपर्टी उसके वारिसों को कैसे सुपुर्द होगी. आइए जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी।
 
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Property Rights : महिला की मौत के बाद किसे मिलेगी प्रोपर्टी, जान लें कानून

HR BREAKING NEWS (ब्यूरो)।  प्रॉपर्टी पर महिला के अधिकार अलग-अलग होते हैं. यह धर्म, संस्कृति, सामाजिक दर्जे जैसी बातों पर निर्भर करता है. यहां हम बता रहे हैं कि बगैर वसीयत बनाए अगर किसी महिला की मौत हो जाती है तो उसकी प्रॉपर्टी पर किसका हक होगा.

 हिंदू महिला
विवाहित होने पर
हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के सेक्शन 14, 15 और 16 में इसका उल्लेख है. ये बताते हैं कि किसी विवाहित महिला की प्रॉपर्टी उसके वारिसों को कैसे सुपुर्द होगी.

सेक्शन 14 बताता है कि एक महिला की प्रॉपर्टी में क्या शामिल होता है. यह विरासत और खुद खरीदी गई प्रॉपर्टी में अंतर नहीं करता है.

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सेक्शन 15, सब-सेक्शन 1


यह बताता है कि महिला की प्रॉपर्टी उत्तराधिकारियों के बीच में कैसे बंटेगी और उनमें वरीयता का क्रम क्या रहेगा:

  •  पहली वरीयता बेटे और बेटी को मिलेगी.
  •  पति के उत्तराधिकारी
  •  पिता और माता
  • पिता के उत्तराधिकारी
  •  मां के उत्तराधिकारी

सेक्शन 15, सब-सेक्शन 2


इसमें प्रॉपर्टी के बंटवारे के बारे में बताया गया है कि महिला को प्रॉपर्टी माता-पिता, पति या सास-ससुर, इनमें से किससे मिली है.

 मुस्लिम महिला


मुस्लिक कानून के तहत खुद खरीदी गई या विरासत में मिली प्रॉपर्टी के बीच अंतर नहीं है. कानूनी वारिसों को दो कैटेगरी में बांटा गया है. इनमें शेयरर्स और रेजिडुएरी शामिल है. शेयरर्स को अपना हिस्सा पहले मिलता है. बाकी हिस्सा रेजिडुएरी को जाता है.

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मुस्लिम महिला को अपने किसी भी संबंध (पति, बेटा, पिता, मां) से प्रॉपर्टी मिलने पर वह अपने हिस्से की पूरी मालकिन होती है. वे जैसे चाहें अपनी प्रॉपर्टी को दूसरे को दे सकती हैं. अगर कोई मुस्लिम महिला वसीयत बनाना चाहती है तो वह अपनी प्रॉपर्टी का एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा नहीं दे सकती है. अगर पति इसमें एकमात्र उत्तराधिकारी है तो वह अपनी इच्छा से दो-तिहाई प्रॉपर्टी दे सकती हैं.

 अन्य धर्म


हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और मुस्लिमों के अलावा महिला की संपत्ति का बंटवारा भारतीय उत्तराधिकार कानून, 1925 के तहत होता है.