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Real Gold Identification : ग्राहकों को 22 कैरेट का कहकर बेचा सोना, लैब में जांच करवा ली तो खुली पोल

Real Gold Identification : 22 कैरेट की जगह 18 कैरेट का सोना देना एक ज्वेलर्स को महंगा पड़ गया। दरअसल ये मामला ये है कि एक दुकानदार ने ग्राहक को 22 कैरेट का कहकर सोना बेच दिया। लैब में जांच करवाई तो उसकी पोल खुली। आइए नीचे खबर में जानते है आखिर पूरा मामला क्या है। 

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Real Gold Identification : ग्राहकों को 22 कैरेट का कहकर बेचा सोना, लैब में जांच करवा ली तो खुली पोल

HR Breaking News, Digital Desk- 22 कैरेट की जगह 18 कैरेट का सोना देना एक ज्वेलर्स को महंगा पड़ गया। जिला उपभोक्ता प्रतितोषण आयोग ने ज्वेलर्स को आदेश दिया है कि परिवादी से 22 कैरेट गहने के सोने के रुपये लिए गए, लेकिन वह 18 कैरेट के निकले। 60 हजार रुपये अतिरिक्त लिए हैं, इसे आठ प्रतिशत ब्याज के साथ परिवाद प्रस्तुती दिनांक से वापस किए जाएं।

साथ ही परिवादी को जो मानसिक पीड़ा पहुंचाई है, इसके बदले में 10 हजार रुपये क्षतिपूर्ति अलग भी जाएं। तीन हजार रुपये केस लड़ने का खर्च अलग से देना होगा। ज्वेलर्स को यह रुपया 45 दिन के भीतर देना होगा। विंडसर हिल निवासी दिनेश अग्रवाल 18 मार्च 2021 को अग्रवाल ज्वेलर्स मोती माल दौलतगंज में आभूषण खरीदने पहुंचे।

ज्वेलर्स ने उन्हें 22 कैरेटे सोने के आभूषण 4520 रुपये प्रतिग्राम व 200 रुपये मेकिंग चार्ज अलग से बताया। दिनेश ने तीन लाख 58 हजार 320 रुपये के सोने का मंगलसूत्र, सोने की चेन, कंगन, सोने की बाली व चूड़ियां खरीदीं। इसके बाद इन आभूषण को अन्य सुनार के यहां दिखाया तो वह 18 कैरेट के थे। ज्वेलर्स ने भाव भी अलग बताया। जो आभूषण खरीदे उसमें 72 हजार रुपये अतिरिक्त लिए।


इसको लेकर फोरम में परिवाद दायर किया। परिवादी के अधिवक्ता अवधेश सिंह तोमर व संदीप निरंकारी ने तर्क दिया कि आभूषणों को लैब में भी टेस्ट कराया, वहां भी 18 कैरेट के निकले। ज्वेलर्स की ओर से परिवाद का विरोध किया गया। उसने बताया उसके यहां से एक लाख 22 हजार 300 रुपये के आभूषण खरीदे थे, जिसका बिल भी दिया था। सोने के भाव प्रतिघंटे बदलते रहते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद इसे गलते व्यापार माना है और रुपये लौटाने का आदेश दिया।


फोरम में सबसे अधिक बीमा कंपनियों के केस-


वर्तमान में उपभोक्ता फोरम में जो केस दायर हो रहे हैं, उनमें सबसे ज्यादा विवाद बीमा कंपनियों के खिलाफ है। OXकरते हुए बीमा कंपनियों से पालिसी ली, लेकिन जब बीमार हो गए तो कंपनी ने क्लेम नहीं दिया। फोरम में परिवाद दायर कर लोगों ने क्लेम लिए हैं। हालांकि 23 फीसद केस बीमा कंपनियों के खिलाफ लंबित हैं। दूसरे नंबर बिजली कंपनी के खिलाफ केस हैं, ये केस बिल से संबंधित हैं। वर्तमान में 1200 से अधिक केस फोरम में लंबित हैं। कोविड-19 की वजह से केस लंबित होने की संख्या बढ़ गई।

किस सेक्टर के कितने केस-


सेक्टर केस फीसद में-

- बीमा 23 प्रतिशत

- बिजली 4.41 प्रतिशत

- बैकिंग 2.40 प्रतिशत

- इलेक्ट्रानिक्स 1.92 प्रतिशत

- हाउसिंग 1.63 प्रतिशत