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Success Story : नौकरी छोड़ शुरू की ये खेती, अब हर साल कमा रही 20 लाख

देशभर में बहुत से किसान धान, गेहूं, दलहन, तिलहन या सब्जियों की खेती की जगह नई तकनीक से खेती करने में जुटे हैं. इससे किसानों को काफी कमाई भी हो रही है. आइए जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी।
 
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Success Story : नौकरी छोड़ शुरू की ये खेती, अब हर साल कमा रही 20 लाख

HR Breaking News (ब्यूरो) : अगर बात ओडिशा की एक महिला किसान की करें तो नौकरी छोड़कर उन्होंने एग्रीकल्चर फील्ड में अपनी रुचि दिखाई और पर्यावरण को सुरक्षित रखने का नया रास्ता चुना. ओडिशा के बरघाट की महिला किसान जयंती प्रधान ने फसल काटने के बाद बेकार जाने वाली पराली का इस तरह उपयोग किया है जिससे कि किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकें.


जयंती प्रधान अनुपयोगी पराली से मशरूम की खेती करती हैं जिससे उन्हें शानदार मुनाफा होता है. जयंती ने एमबीए की डिग्री ली है लेकिन उन्होंने इसके बाद भी नौकरी छोड़कर खेती किसानी करने में दिलचस्पी दिखाई और पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की है.

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पराली की मदद से मशरूम की खेती करने वाली जयंती प्रधान करीब 40 साल की है. उन्होंने 50 से अधिक लोगों को रोजगार दिया हुआ है. साल में जयंती मशरूम की खेती से 20 लाख रुपए से अधिक कमा रही हैं.


प्रधान ने कहा कि एमबीए की डिग्री हाथ में आते ही उन्हें लाखों के जॉब मिलने लगे थे, लेकिन वह किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के एसी दफ्तर में बैठकर काम करने की जगह जमीन से जुड़कर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना चाहती थी.

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जयंती प्रधान ने साल 2003 में एमबीए करने के बाद नौकरी का ऑफर छोड़ने के बाद खेती करने का फैसला किया. वह गेहूं और धान की पराली का इस्तेमाल मशरूम उगाने और वर्मी कंपोस्ट तैयार करने में करती है. इसे खेती का एकीकृत मॉडल कहा जाता है. जयंती के खेतों को गोपाल बायोटेक एग्रो फार्म के नाम से जाना जाता है.


जयंती मशरूम उगाना चाहती थी लेकिन इसकी खेती के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था. इसके बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया. अब जयंती मशरूम की खेती की पहचान बन चुकी है. ओडिशा की मशरूम विमेन के नाम से मशहूर जयंती प्रधान के जिले में धान की खेती होती है, ऐसे में पराली पर्याप्त रूप से उपलब्ध है.

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अधिकतर किसान पराली जला देते हैं लेकिन जयंती अब उनसे पराली खरीदने लगी है. जयंती पराली के बेड बनाकर उनमें मशरूम उगाती है, इसे पैरा मशरूम कहते हैं. यह मशरूम सब्जी के काम आती है. स्थानीय स्तर पर इसकी काफी डिमांड है.


मशरूम की प्रोसेसिंग के बाद जयंती अचार, पापड़ जैसे एक दर्जन प्रोडक्ट तैयार करती हैं. जयंती के पति ने साल 2013 में नौकरी छोड़कर जयंती की मदद करने का फैसला किया. फिलहाल जयंती और उनके पति दो इलाके में काम कर रहे हैं जहां उनका मशरूम फार्म, ट्रेनिंग सेंटर, वर्मी कंपोस्ट यूनिट और पौधों की नर्सरी का सेटअप है. इन्होंने 5 एकड़ जमीन पर तालाब बनाया हुआ है जिसमें मछली पालन करते हैं. इसके साथ ही मुर्गी पालन, बत्तख पालन और बकरी पालन का भी काम किया जाता है.