home page

Supreme court : शादीशुदा महिला गैर मर्द से बनाती है संबंध तो जानिये उसपर केस चलेगा या नहीं

158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार कोई पुरूष यह जानते हुए कि महिला किसी अन्य पुरूष की पत्नी है, उसके साथ यौन संबंध स्थापित करता है तो वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा। 

 | 
Supreme court : शादीशुदा महिला गैर मर्द से बनाती है संबंध तो जानिये उसपर केस चलेगा या नहीं 

HR Breaking News (नई दिल्ली)। उच्चतम न्यायालय ने व्यभिचार के अपराध से संबंधित कानूनी प्रावधान की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार (5 जनवरी, 2017) को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दी। इस कानूनी प्रावधान के अंतर्गत किसी अन्य विवाहिता से विवाहेत्तर यौन संबंधों के लिए सिर्फ पुरूष को ही दंडित किया जा सकता है।

ये भी पढ़ें : UP में बड़ा शहर बसाने का प्लान, 8 जिले होंगे शामिल

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यामयूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ का पहली नजर में यह मानना था कि हालांकि आपराधिक न्याय व्यवस्था ‘लैंगक निरपक्षता’ की अवधारणा पर आधारित है लेकिन व्यभिचार के अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में इसका अभाव है। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया।

दरअसल 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार कोई पुरूष यह जानते हुए कि महिला किसी अन्य पुरूष की पत्नी है, उसके साथ यौन संबंध स्थापित करता है तो वह व्यभिचार के अपराध का दोषी होगा। इस अपराध के लिए पांच साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है। ऐसी स्थिति में पत्नी को इसके लिए प्रेरित करने के लिए सजा नहीं होगी। शीर्ष अदालत ने चार सदस्यीय पीठ का अपना 1954 का फैसला भी संविधान पीठ के पास भेज दिया है जिसने धारा 497 को वैध ठहराते हुए कहा था कि यह समता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है।

ये भी पढ़ें : RBI Guidelines : 500 और 1000 के नोटों को लेकर RBI ने दी बड़ी जानकारी


पीठ ने सामाजिक परिवर्तन और ‘लैंगिक समानता’ तथा ‘लैंगिक संवेदनशीलता’ को भी संविधान पीठ को भेज दिया और कहा कि महिलाओं को सकारात्मक अधिकार देने होंगे और पहले के फैसलों पर वृहद संविधान पीठ को विचार करने की आवश्यकता है। पीठ ने इसके बाद इटली में रहने वाले भारतीय जोसेफ शाइन की जनहित याचिका संविधान पीठ के पास भेज दी जिसका गठन प्रधान न्यायाधीश अपने प्रशासिनक अधिकार के अंतर्गत करेंगे।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर नोटिस जारी किया था। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने पर व्यभिचार सिर्फ विवाहित पुरूष के लिए ही दण्डनीय अपराध है। उसने यह भी कहा था कि यदि पति अपनी पत्नी और दूसरे पुरूष के बीच यौन संबंध की सहमति देता है तो यह व्यभिचार के अपराध को शून्य कर देता है और यह लैंगिक न्याय तथा संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार के सिद्धांत के खिलाफ है।


पीठ ने यह भी कहा था कि जब समाज प्रगित कर रहा है और अधिकार प्रदान किए गए हैं तो नए विचार अंकुरित होते हैं और इसीलिए हम इस पर नोटिस जारी कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा था कि वह इस बिन्दु की विवेचना करना चाहता है कि विवाहित पुरूष के साथ व्यभिचार के अपराध में यदि महिला समान भागीदार है तो उसे भी ऐसे व्यक्ति के साथ दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए।