Supreme Court : सरकारी कर्मचारियों को तगड़ा झटका, प्रमोशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
HR Breaking News : (promotion rules)। अपनी नौकरी के दौरान हर कोई वेतन बढ़ौतरी के साथ साथ पद की बढ़ौतरी भी चाहता है। कुछ साल बाद अनुभव व सीनियरिटी के हिसाब से हर कर्मचारी प्रमोशन की उम्मीद भी करता है। हर कर्मचारी के लिए प्रमोशन (promotion rules) बहुत मायने भी रखता है।
इस उम्मीद करने वाले कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले से झकझोर दिया है। उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब नौकरी (govt service rules) करने वाले हर कर्मचारी की जुबान पर है। कोर्ट ने इस मामले में अपना स्पष्ट जवाब भी दिया। यह फैसला देशभर के कर्मचारियों के लिए जानना बेहद जरूरी है। आइये जानते हैं क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन के मामले में।
जज के चयन का था मामला -
गुजरात राज्य के जिला जज के चयन से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision on promotion) में विचाराधीन था। इसी मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए प्रमोशन को लेकर तस्वीर क्लियर की है। कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में तो केवल राज्य और केंद्र सरकार ही नियम या कोई कानून बना सकती हैं। कोर्ट ने इसे लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान होने को लेकर स्पष्ट इनकार किया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (Chief justice of india) की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने यह निर्णय सुनाया है।
कर्मचारी नहीं कर सकता यह दावा-
कोई भी कर्मचारी प्रमोशन के अधिकार को लेकर दावा नहीं कर सकता। कोर्ट ने इसे अपने फैसले में क्लियर भी कर दिया है। कोर्ट ने बताया कि कानून में प्रमोशन (constition on promotion) को लेकर उल्लेख नहीं है। इसलिए कर्मचारी इसके लिए दावा भी नहीं कर सकता। सरकार इस बारे में पोस्ट व काम को ध्यान में रखते हुए नियम बना सकती है। कर्मचारी अपने प्रमोशन के लिए कानूनन दावा नहीं कर सकता है। इसको लेकर संविधान में कोई क्राइटेरिया (govt job promotion criteria) भी नहीं बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी सुनाए हैं फैसले-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले भी प्रमोशन के मामलों में फैसले सुनाए हैं। अब फिर से कहा है कि नौकरी में प्रमोशन किसी कर्मचारी का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसको लेकर तो सरकार ही नियम बना सकती है। सीनियॉरिटी और मेरिट को कहा कि संविधान में प्रमोशन का कोई क्राइटेरिया लिखा नहीं है। सरकार इस मामले में नियम (promotion on merit) बनाने के लिए स्वतंत्र अधिकार रखती है।
सरकार के ऊपर यह है निर्भर -
प्रमोशन का मामला पूरी तरह से सरकार (govt rules for promotion) पर निर्भर है। सरकार ही तय करती है कि किस से क्या काम कैसे कराना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकार अपने अनुसार नौकरियों व इनमें प्रमोशन को लेकर कानून बनाने का अधिकार रखती है। यह सब सरकार का काम है और उसी के अधीन आता है। प्रमोशन (govt job rules) का क्राइटेरिया तय करना भी सरकार का काम है, इसमें न्यायपालिका दखलंदाजी नहीं करेगी।
इस अधिकार के बारे में यह कहा कोर्ट ने-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान (propmotion rules in law) के अनुच्छेद 16 में समानता के अधिकार तय किए गए हैं। कोर्ट इस पर जरूर विचार कर सकती है कि नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए। लेकिन प्रमोशन के मामलों में कोर्ट समीक्षा नहीं करेगी न ही नियमों (govt job promotion rules) को लेकर टिप्पणी करेगी। ये नियम बनाना व लागू करना सरकार का काम है। कोर्ट समानता के अधिकार का उल्लंघन न हो यह देख सकती है।
कैसे मिलता है प्रमोशन-
प्रमोशन के लिए दो तरह के क्राइटेरिया (promotion Criteria) बनाए गए हैं। एक तो सीनियॉरिटी कम मेरिट के आधार पर पदोन्नति मिलती है और दूसरे तरीके से टेस्ट के आधार पर मेरिट पाने व सीनियॉरिटी अनुसार पदोन्नति मिलती है। सीनियॉरिटी से प्रमोशन (promotion on merit and seniority) होने का कारण है कि संबंधित कर्मचारी के पास अनुभव ज्यादा होता है। इसके अलावा मेरिट का क्राइटेरिया किसी टेस्ट या काम के आधार पर मेरिट पाने वाले को प्रमोशन (Decision on promotion) दिया जाता है। हालांकि विभागों के अनुसार ये नियम भिन्न भी हो सकते हैं।
