Supreme Court Judges Appointment : कैसे होती है सुप्रीम के जजों की नियुक्ति, चीफ जस्टिस ने बताया कलीजियम का सीक्रेट
HR Breaking News (नई दिल्ली)। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जजों की नियुक्ति करने वाले कलीजियम सिस्टम (Collegium System for Judges Appointment) के एक सीक्रेट का खुलासा किया है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Jude appointment process) में जज की हर एक पोस्ट लिए 5 सदस्यों वाली कलीजियम हाई कोर्ट के 50 सबसे वरिष्ठ जजों का मूल्यांकन करती है। उनके न्यायिक फैसलों की गुणवत्ता पर विचार करती है। उनके व्यक्तिगत पहलुओं पर गौर करती है। सीजेआई ने रामजेठमलानी मेमोरियल लेक्चर में यह बात कही। कलीजियम सिस्टम (Collegium System news) की अक्सर उसकी अपारदर्शिता को लेकर काफी आलोचनाएं होती हैं।
पर्याप्त डेटा के बिना नियुक्ति के आरोप को किया खारिज
चौथे राम जेठमलानी मेमोरियल लेक्चर में सीजेआई चंद्रचूड़ जाने-माने सीनियर ऐडवोकेट फली एस नरीमन की उस आलोचना को खारिज करते दिखे कि कलीजियम संभावित कैंडिडेट के बारे में पर्याप्त जानकारी के बिना ही नियुक्ति करती है। नरीमन ने कुछ समय पहले कहा था कि कलीजियम सुप्रीम कोर्ट के जजों का चुनाव करते वक्त जिन नामों पर विचार करती है, उनके बारे में पर्याप्त जानकारी के बिना ही नियुक्ति करती है। नरीमन ने ही 1993 के मशहूर और बहुचर्चित 'द सेकंड जजेज' को जीता था जिसके बाद जजों की नियुक्ति के लिए कलीजियम सिस्टम लाया गया।
सुप्रीम कोर्ट जज की एक पोस्ट के लिए हाई कोर्ट के 50 सीनियर जजों पर करते हैं विचार : सीजेआई
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जब कलीजियम के सदस्य सुप्रीम कोर्ट में किसी वैकेंसी को भरने का फैसला करते हैं तो हाई कोर्ट के 50 सबसे सीनियर जजों की प्रमाणिकताओं पर विचार करते हैं, उनके फैसलों और व्यक्तिगत डीटेल के देखते हैं।' इस तरह उन्होंने इस मिथक पर विराम लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए सिर्फ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और 20 सबसे सीनियर जजों के नामों पर विचार किया जाता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जब मैं कहता हूं कि हाई कोर्ट के 50 टॉप जजों के नाम पर विचार किया जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि 51वें, 52वें या 53वें पर विचार नहीं होगा। अगर उनमें उत्कृष्ट योग्यता है तो उन पर भी विचार किया जाता है।'
उत्कृष्ट योग्यता है तो जूनियर जजों पर भी करते हैं विचार
सीजेआई ने उस मिथक पर विराम लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए सिर्फ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और 20 सबसे सीनियर जजों के नामों पर विचार किया जाता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जब मैं कहता हूं कि हाई कोर्ट के 50 टॉप जजों के नाम पर विचार किया जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि 51वें, 52वें या 53वें पर विचार नहीं होगा। अगर उनमें उत्कृष्ट योग्यता है तो उन पर भी विचार किया जाता है।'
सीजेआई को सुनने वालों में खुद नरीमन भी थे, कानून मंत्री भी थे मौजूद
चयन प्रक्रिया के बारे में और खुलासा करते हुए सीजेआई ने दर्शकों से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सेंटर फॉर रिसर्च ऐंड प्लानिंग के पास अपने रिसर्चरों की टीम है जो विचार किए जाने वाले हाई कोर्ट जजों के फैसलों समेत तमाम डेटा जुटाते हैं। फिर सारी जानकारियों को सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष 5 जजों को भेजा जाता है। उसके बाद कलीजियम की बैठक में इन डेटा का विस्तृत विश्लेषण होता है। कार्यक्रम में खुद फली एस नरीमन, श्याम दीवान, महेश जेठमलानी जैसे कई सीनियर ऐडवोकेट मौजूद थे। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी कार्यक्रम में शामिल थे।
सीजेआई ने अबतक के अपने 10 महीने के कार्यकाल पर कही बड़ी बात
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'मैं आलोचनाओं को सनक के तौर पर नहीं लेता। दिग्गजों की तरफ से हो रही आलोचना को मैं सुधार शुरू करने के एक अवसर के तौर पर लेता हूं।' उन्होंने कहा, 'सीजेआई के तौर पर मेरा पहला उद्देश्य अदालतों को इंस्टिट्यूशनलाइज करना और कामकाज के एड-हॉक मॉडल से हटना था। कोर्ट्स के इंस्टिट्यूशनलाइजेशन का सबसे महत्वपूर्ण असर ये हुआ कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी। संस्थानीकरण के ये महत्वपूर्ण असर तो हैं हीं लेकिन हमें इसके मानवीय पक्ष को देखना नहीं भूलना चाहिए। सीजेआई के तौर पर मेरे अबतक के 10 महीने के कार्यकाल में मैंने महसूस किया कि इंस्टिट्यूशनलाइजेशन से पारदर्शिता तो बढ़ी ही, कार्यस्थल भी मानवीय हुआ।'
सीजेआई चंद्रचूड़ ने गिनाईं अपनी प्राथमिकताएं
सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस दौरान अपनी प्राथमिकताएं भी गिनाईं। उन्होंने कहा, 'मेरा फोकस अदालतों तक पहुंच के रास्ते में आने वाली बाधाओं को खत्म करने पर भी है। मेरा फोकस केस फाइल करने की प्रक्रिया और अदालतों के सामने बहस की प्रक्रिया को आसान करने पर है। मेरा फोकस वकीलों में लिंगानुपात में सुधार करने पर है। मेरा फोकस यह सुनिश्चित करने पर है कि वकीलों और वादियों को कोर्ट में जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हों। इस तरह के समग्र दृष्टिकोण से ही जस्टिस डिलिवरी की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।