Supreme Court : किराएदार और मकान मालिक के विवाद में सुप्रीम कोर्ट का क्लासिक फैसला
Supreme Court : मकान मालिक और किरायेदारों के बीच झगड़े होना आम बात है, जो अक्सर अक्सर कोर्ट तक पहुंच जाते हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अनोखा मामला आया जिसे खुद कोर्ट ने 'क्लासिक' कहा। इस मामले की विशिष्टता ने इसे सामान्य विवादों से अलग कर दिया...आइए नीचे खबर में जानें इस मामले के बारे में विस्तार से-

HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऐसा 'क्लासिक' मामला आया जिसने न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को उजागर किया. मकान मालिक और किरायेदारों के बीच का यह सामान्य विवाद जब बढ़ा तो कोर्ट में पहुंचा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने इस केस को इसलिए 'क्लासिक' कहा क्योंकि इसमें न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल किया गया था. यह मामला दिखाता है कि कैसे कानूनी दांवपेचों का इस्तेमाल न्याय को बाधित करने के लिए किया जा सकता है. (tenant and landlord rights)
किरायेदार भरे जुर्माना भी और 11 साल का किराया भी-
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे किरायेदार के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसने तीन दशकों तक मकान मालिक को उसकी संपत्ति से वंचित रखा. न्यायालय ने किरायेदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना (fine) लगाया और उसे पिछले 11 वर्षों का बाजार दर पर किराया चुकाने का आदेश दिया.
मकान मालिक-किरायेदार का क्लासिक केस-
मकान मालिक-किरायेदार का क्लासिक केस (The classic case of landlord-tenant) बेंच के जस्टिस किशन कौल और आर सुभाष रेड्डी ने कहा कि किसी के हक को लूटने के लिए कोई कैसे न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर सकता है, ये केस इसका 'क्लासिक' उदाहरण है. ये मामला पश्चिम बंगाल के अलीपुर में एक दुकान को लेकर है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बेंच ने आदेश दिया कि दुकान को कोर्ट के आदेश के 15 दिन के अंदर मकान मालिक को सौंप दिया जाए.
बाजार रेट पर अबतक का किराया भी देना होगा -
कोर्ट ने किराएदार को आदेश दिया कि मार्च, 2010 से अबतक बाजार रेट पर जो भी किराया बनता है, तीन महीने के अंदर मकान मालिक को चुकाए. इसके अलावा न्यायिक समय की बर्बादी और मकान मालिक (landlord) को कोर्ट की कार्यवाही में घसीटने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.
क्या था पूरा मामला?
1967 में लबन्या प्रवा दत्ता ने अलीपुर में अपनी दुकान 21 साल के लिए किराए पर दी. 1988 में लीज खत्म होने पर मकान मालिक ने दुकान खाली करने को कहा, लेकिन किरायेदार ने नहीं किया. परिणामस्वरूप, 1993 में मकान मालिक ने किरायेदार को निकालने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसका फैसला 2005 में मकान मालिक के हक में आया.
इसके बाद 2009 में केस फिर दाखिल हुआ और 12 साल तक खिंचा. ये केस देबाशीष सिन्हा नाम के व्यक्ति ने दाखिल किया था जो कि किरायेदार का भतीजा था. देबाशीष का दावा था कि वो किरायेदार का बिजनेस पार्टनर भी है. लेकिन कोर्ट ने देबाशीष की याचिका को खारिज कर दिया और उसे मार्च 2020 से मार्केट रेट पर किराया देने के लिए भी कहा.