supreme court decision : भूमि अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 23 साल बाद जमीन मालिकों को बड़ी राहत
HR Breaking News - (SC decision) सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। भू मालिकों के लिए कई साल बाद आया यह फैसला उनके अधिकारों को स्पष्ट कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट (SC decision on land acquisition) ने अपना निर्णय सुनाते हुए हाईकोर्ट का फैसला भी खारिज किया है और साथ ही अहम टिप्पणी भी की है। भूमि अधिग्रहण (land acquisition) के इस मामले में फैसला आने का भू मालिकों को काफी अर्से से इंतजार था।
यह कहा है सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुआवजा दिए बिना जायदाद से किसी भू मालिक (property owner's rights) को बेदखल नहीं किया जा सकता। इस मामले में भू मालिकों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है।
उन्हें बिना मुआवजा दिए भूमि से बेदखल किया गया और वे लंबे समय तक उचित मुआवजे (land compensation rules) का भी इंतजार करते रहे। इसमें सरकार व अधिकारियों का ढीला रवैया रहा है, जिस कारण भू मालिकों को लंबा इंतजार मुआवजे के लिए करना पड़ा है। कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) का फैसला रद्द कर दिया है।
नई मुआवजा राशि तय कर दो माह में दी जाए-
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 के तहत यह फैसला सुनाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट (High Court decision on land acquisition) का फैसला खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में भू मालिकों की उस मांग को खारिज कर दिया था जो बाजार रेट के अनुसार मुआवजा देने के लिए की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब विशेष भूमि अधिकारी को बाजार मूल्य के हिसाब से भूमि मालिकों के लिए नया मुआवजा पारित करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मुआवजा (land compensation rules in law) दो माह के भीतर दिए जाने की बात भी कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने की यह टिप्पणी -
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अफसरों के ढीले रवैये के कारण 22 साल से मुआवजा राशि अटकी रही। संपत्ति का अधिकार (property rights) मानवाधिकार में शामिल है।
भूमि का अधिकार संवैधानिक अधिकार माना गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भू मालिक को मुआवजा (land compensation rules) दिए बिना उसकी संपत्ति से बेदखल करने का कदम उठाना नियमों व कानून के विरुद्ध है।
यह था पूरा मामला-
भू अधिग्रहण का यह मामला साल 2003 का है। कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (Karnataka Industrial Area Development Board)ने अधिसूचना जारी करने के बाद भू मालिकों की भूमि पर 2005 में कब्जा तो कर लिया था, पर मुआवजा नहीं दिया था। अपीलकर्ता भू मालिकों ने हाई कोर्ट (high court decision) में मार्केट रेट अनुसार मुआवजे की मांग की थी। इसे हाई कोर्ट ने नहीं माना तो भू मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अब सुप्रीम कोर्ट ने भूमि मालिकों को 2019 के मार्केट रेट के हिसाब से मूल्य नई मुआवजा (land acquisition compensation) राशि तय करके दो माह में देने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
सरकार के प्राधिकरण की आलोचना की-
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) के प्राधिकरण की सुस्त कार्यप्रणाली व ढीले रवैये की आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि भू मालिक अपीलकर्ताओं की भूमि पर कब्जा (property possession rules) लेकर अथॉरिटी ने इसे कंपनी को तो सौंप दिया, पर तत्काल कोई मुआवजा उनके लिए पारित नहीं किया गया।
मामले के अनुसार बंगलूरू-मैसूर (Bangalore-Mysore project) को जोड़ने वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था।
अपीलकर्ताओं ने की थी यह मांग-
सुप्रीम कोर्ट (SC decision on land acquisition) ने कहा कि मुआवजा निर्धारण की तारीख को नहीं बदला जाता तो काननू का मजाक ही उड़ता। 2003 से लेकर 2019 तक के लंबे समय तक सरकार व प्रशासन भू मालिकों को मुआवजा देने के लिए नहीं जागा। बाद में अवमानना नोटिस (court contempt notice) जारी होने के बाद ही कार्रवाई की गई।
सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) ने कहा कि अपीलकर्ताओं को 2003 में ही मुआवजा राशि मिल जाती तो ही बेहतर होता। अब समय बीतने पर नए बाजार रेट पर मुआवजा (property compensation rules) दिया जाना चाहिए। अपीलकर्ताओं के अनुसार समय के अनुसार महंगाई बढ़ जाती है, इसलिए बीते वर्षों के बजाय उन्हें अब के समय की महंगाई अनुसार नए बाजार रेट पर मुआवजा मिलना चाहिए।
