Supreme Court : सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए किसकी इजाजत लेना जरूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया साफ

HR Breaking News, Digital Desk- (Supreme Court) सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें जमीन से जुड़े एक मामले में सरकारी क्लर्क को संरक्षण दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी सरकारी कर्मचारी (government employees) पर कथित आपराधिक कृत्य के लिए मुकदमा चलाने से पहले सक्षम अथॉरिटी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।
जस्टिस एस के कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (code of criminal procedure) की धारा 197 किसी अधिकारी को गैरजरूरी उत्पीड़न से बचाने की बात कहती है जो अपना आधिकारिक दायित्व निभाते समय हुए किसी अपराध का आरोपी हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा (section of CRPC) 197 अदालत को ऐसे अपराध के मामले में, सक्षम अथॉरिटी की पूर्व अनुमति से जुड़े मामले को छोड़कर, संज्ञान लेने से रोकती है।
बेंच ने कहा कि आधिकारिक दायित्व निभाते समय किए गए कथित आपराधिक कृत्य के लिए मुकदमा चलाने के वास्ते धारा 197 के तहत सक्षम अथॉरिटी की पूर्व अनुमति जरूरी है और ‘पूर्व अनुमति वाले मामले को छोड़कर कोई अदालत ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।’
न्यायालय ने कहा कि सरकारी सेवकों को दुर्भावनापूर्ण (Malicious action against government servants) या उत्पीड़न करने संबंधी मुकदमे से बचाने के लिए उन्हें विशेष श्रेणी में रखा गया है। इसने साथ ही कहा कि लेकिन यह व्यवस्था भ्रष्ट अधिकारियों को नहीं बचा सकती।
बेंच ने कहा कि धोखाधड़ी, रिकॉर्ड (record) में छेड़छाड़ या गबन में अधिकारियों की कथित संलिप्तता को ‘आधिकारिक दायित्व निभाते समय किया गया अपराध’ नहीं कहा जा सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह देखने के लिए मानदंडों का अनुपालन किया जाना चाहिए कि ‘किए गए अपराध’ का ‘दायित्व निभाते समय हुए अपराध’ से कोई उचित संबंध है या नहीं।
इसने कहा कि इसलिए असल सवाल यह है कि क्या संबंधित अपराध का आधिकारिक दायित्व से सीधा कोई संबंध है।
न्यायालय ने मामले का जिक्र करते हुए कहा कि भूमि संबंधित प्रकरण (land related issue) में फाइल से जुड़े बड़े अधिकारियों को तो संरक्षण मिल गया, लेकिन क्लर्क को निचली अदालत से संरक्षण नहीं मिला जो प्रतिवादी-2 है जिसने कागजी कार्य किया।
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) राजस्थान निवासी इंद्रा देवी की अपील पर सुनवाई कर रहा है। इंद्रा देवी ने आरोप लगाया है कि कुछ लोगों ने धोखाधड़ी कर उन्हें, उनके कैंसर (cancer) पीड़ित पति और परिवार के अन्य सदस्यों को बेघर कर दिया है। इंद्रा देवी अनुसूचित जाति से हैं।