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सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के मामले में Supreme Court का बड़ा फैसला

Supreme court : आम आदमी के बजाय सरकारी कर्मचारी  पर केस दर्ज कराने के नियम कुछ अलग हैं। सरकारी कर्मचारियों (govt employees) पर मुकदमा चलाने के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बड़ा फैसला (SC decision for employees) सुनाया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले की सभी कर्मचारियों के बीच चर्चाएं हो रही हैं। आइये जानते हैं क्या कहा है सुप्रीम कोर्ट ने। 

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सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के मामले में Supreme Court  का बड़ा फैसला

HR Breaking News - (SC big decision)। सरकारी महकमों में भी कई बार कर्मचारियों और अधिकारियों की ओर से ऐसे कदम उठा लिए जाते हैं जो गैरकानूनी होते हैं। ऐसे में उन पर केस (govt employee FIR rules) दर्ज कराकर मुकदमा चलाए जाने की बातें भी सामने आती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सरकारी कर्मचारी से जुड़े एक मामले में बड़ा निर्णय सुनाया है। यह हर सरकारी कर्मचारी (govt employees news) और अधिकारी के लिए जानना जरूरी है।


कानून में यह है प्रावधान -


सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी के मामले में किसी व्यक्ति या कर्मचारी पर मुकदमा (FIR rules for govt employees) दर्ज कराने में देरी नहीं की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों पर केस (case on govt employee) चलाने की अनुमति सक्षम प्राधिकार को चार माह के अंदर जरूरी देनी चाहिए। ऐसा संवैधानिक प्रावधान भी है। 


देरी के लिए कौन होगा जिम्मेदार - 


सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने एक मामले में अहम फैसला देते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार, रिश्वत व अन्य आपराधिक मामले में केस दर्ज कराने में चार माह से अधिक देरी की गई तो इसके लिए सक्षम प्राधिकार जिम्मेदार होगा। इसके बाद उस प्राधिकार या प्राधिकारी पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) की तरफ से सीवीसी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। 

कानून की साख का रखें ध्यान-


सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के दो जजों वाली पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी के आरोपी कर्मचारियों पर केस चलाने की अनुमति में देने करने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में अपील की जा सकती है। इस अपील से कुछ समय मिल सकता है लेकिन इस अपील को सरकारी कर्मियों के विरुद्ध आपराधिक मामला निलंबित करने का आधार नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने न्यायपालिका की गरिमा का उदाहरण देते हुए कहा कि लोग कानून में विश्वास रखते हैं, इसलिए ऐसे मामलों में देरी न करें, क्योंकि देरी करने से कानून की साख दांव पर लगती है। 

कानूनी जांच होती है प्रभावित -


किसी कर्मचारी के रिश्वत व भ्रष्टाचार (bribery and corruption cases) जैसे आपराधिक मामले में संलिप्त होने के अंदेशे के बावजूद उस पर केस दर्ज कराने में देरी करने से कानूनी जांच भी प्रभावित होती है। यह देरी आरोप तय करने की प्रक्रिया में भी बाधा बनती है।

सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने कहा कि ऐसे कर्मचारी पर केस चलाने की अनुमति (Permission for FIR in crime case) में देरी करने वाला सक्षम प्राधिकार कानूनी जांच को भी अनुपयोगी बनाता है। ऐसे मामलों में देरी करने से ऐसे लोगों को दंडित नहीं किए जाने की संस्कृति पनपती है। ऐसे मामलों में देरी से भावी पीढ़ी पर भी असर पड़ता है और वह भी भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख हो सकती है।


हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध की थी अपील-


सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने एक सरकारी अधिकारी की अपील पर  सुनवाई करते हुए निर्णय सुनाया है। यह अपील मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के विरुद्ध थी। बता दें कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम (Prevention of Corruption Act) की धारा 97 के अनुसार सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामलों में आरोपी बनाने के लिए सीबीआई व दूसरी जांच एजेंसियों को तीन माह का समय दिया जाता है। 

एक माह का समय है इस कार्य के लिए-


इसमें एक माह का विस्तार कानूनी सलाह लेने के लिए किया है। यानी कुल चार माह के अंदर किसी आपराधिक मामले में आरोपी पाए जाने पर सरकारी कर्मचारी पर केस दर्ज कराना होगा। दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 197 में इसे लेकर प्रावधान किया गया है।