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Tenant landlord Dispute Case : किराएदार और मकान मालिक के विवाद में हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 15 लाख का ठोका जुर्माना

Tenant landlord Dispute Case : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में किराएदार के कब्जे वाले मकान के विवाद का निपटारा किया है. यह फैसला मकान मालिकों के लिए एक बड़ी राहत है जो लंबे समय से किरायेदारों द्वारा अपनी संपत्ति खाली न करने की समस्या से जूझ रहे हैं-

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Tenant landlord Dispute Case : किराएदार और मकान मालिक के विवाद में हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 15 लाख का ठोका जुर्माना

HR Breaking News, Digital Desk- (Tenant landlord Dispute Case) इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 40 साल से किराएदार के कब्जे वाले मकान के विवाद का निपटारा किया है. किराएदार मकान मालिक के बार-बार कहने पर भी संपत्ति खाली नहीं कर रहा था, जिसके बाद यह मामला कोर्ट (Court) पहुंचा. कोर्ट ने किराएदार (tenants) पर 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. यह फैसला मकान मालिकों के लिए एक बड़ी राहत है जो लंबे समय से किरायेदारों द्वारा अपनी संपत्ति खाली न करने की समस्या से जूझ रहे हैं. (Allahabad High Court Decision)

यह मामला 1979 का है, जब से किरायेदार बोहरा ब्रदर्स ने मकान मालिक कस्तूरी देवी को किराया देना बंद कर दिया था. 1981 में कस्तूरी देवी ने उन्हें घर खाली करने को कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उनकी अपील 1992 में संबंधित प्राधिकारी द्वारा खारिज कर दी गई, जब मासिक किराया मात्र ₹187.50 था. कस्तूरी देवी ने निचली अदालत में अपील की, जहां 1995 में उनके पक्ष में फैसला आया. किरायेदार ने हाईकोर्ट (High court) में इस फैसले को चुनौती दी और अब, दशकों बाद, हाईकोर्ट ने कस्तूरी देवी के पक्ष में फैसला सुनाया है, जिससे यह लंबा किरायेदारी विवाद समाप्त हो गया है.

हाईकोर्ट का दूरगामी फैसला-
हाईकोर्ट का यह फैसला काफी दूरगामी है. यह किरायेदार और मकानमालिकों के बीच विवाद (Disputes between tenants and landlords) में मील का पत्थर साबित हो सकता है. अदालत ने अपने फैसले में सख्त टिप्पणी की कि बोहरा ब्रदर्स ने कस्तूरी देवी के परिवार की एक पूरी पीढ़ी को उनके अधिकारों से वंचित रखा. लेकिन, यह फैसला आपके लिए क्यों अहम है. अपने देश का किरायेदार कानून इस बारे में क्या कहता है. अगर आप भी अपने घर में कोई किरायेदार रखते हैं तो आपको क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए.

देश के कानून-
देश में किराएदारी को नियंत्रित करने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जैसे कि रेंट कंट्रोल एक्ट (rent control act) और मॉडल टेनेंसी एक्ट 2021. ये कानून मकान मालिक और किराएदार दोनों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. किराएदार के कुछ मुख्य अधिकार और नियम इस प्रकार हैं:

किराया समझौता (रेंट एग्रीमेंट): किराएदार और मकान मालिक के बीच एक लिखित समझौता होना चाहिए. इसमें किराए की राशि, भुगतान का तरीका, समय सीमा और मरम्मत की जिम्मेदारी जैसी बातें साफ लिखी जानी चाहिए. यह समझौता दोनों पक्षों के लिए कानूनी सुरक्षा देता है.

नोटिस का अधिकार: मकान मालिक किराएदार को बिना वजह और बिना नोटिस (notice) दिए मकान से नहीं निकाल सकता. आमतौर पर कम से कम एक महीने का नोटिस देना जरूरी होता है. अगर मकान मालिक को मकान की जरूरत है या किराएदार नियम तोड़ रहा है, तभी वह कानूनी तरीके से मकान खाली करवा सकता है.

निजता का हक: किराएदार को अपने निजी जीवन की गोपनीयता का अधिकार है. मकान मालिक बिना अनुमति या बिना सूचना के किराएदार के घर में नहीं घुस सकता.

सुरक्षा राशि (सिक्योरिटी डिपॉजिट): किराएदार को मकान छोड़ने के बाद उसकी जमा राशि वापस लेने का हक है. मकान मालिक को यह राशि एक महीने के अंदर लौटानी चाहिए, बशर्ते किराएदार ने मकान को नुकसान न पहुंचाया हो.

मरम्मत का अधिकार: अगर मकान में कोई जरूरी मरम्मत की जरूरत है और मकान मालिक इसे ठीक नहीं कर रहा, तो किराएदार इसे खुद करवा सकता है और खर्च को किराए से काट सकता है. लेकिन इसके लिए मकान मालिक को पहले सूचित करना जरूरी है.

क्या किरायेदार मकान पर कब्जा कर सकता है?
यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि क्या कोई किराएदार लंबे समय तक मकान में रहने के बाद उस पर कब्जा कर सकता है. इसका जवाब हां और ना दोनों हो सकता है, जो स्थिति पर निर्भर करता है. इसे समझने के लिए हमें भारतीय कानून में “विपरीत कब्जे” (Adverse Possession) के नियम को देखना होगा.

विपरीत कब्जा क्या है?
यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर 12 साल तक बिना किसी बाधा के रहता है और मकान मालिक विरोध नहीं करता, तो वह कानूनी रूप से उस पर मालिकाना हक (ownerships rights) का दावा कर सकता है. इसकी कुछ शर्तें हैं: कब्ज़ा खुला, स्पष्ट और मकान मालिक की अनुमति के बिना होना चाहिए. किराएदार को 12 साल के निरंतर कब्ज़े का प्रमाण देना होगा (जैसे बिल या गवाहों के बयान), और मकान मालिक ने इस दौरान कोई कानूनी कार्रवाई न की हो.

किरायेदार के लिए यह लागू नहीं होता-
किरायेदार आमतौर पर संपत्ति पर कब्ज़ा (possession of property) नहीं कर सकता, क्योंकि वे मकान मालिक की अनुमति से रहते हैं. किराया समझौता और किराए का नियमित भुगतान इस बात का प्रमाण है कि वे केवल किरायेदार हैं, मालिक नहीं. यदि मकान मालिक नियमित रूप से किराया समझौता नवीनीकृत करता रहता है, तो किरायेदार द्वारा संपत्ति पर दावा करने की कोई संभावना नहीं रहती.