Tenant landlord Dispute : क्या 12 साल बाद किराएदार का हो जाएगा मकान, मकान मालिक जरूर जान लें कानून
Tenant landlord Dispute : भारत में प्रॉपर्टी किराए पर देने के कुछ कानूनी नियम हैं. 12 साल तक लगातार किराएदार रहने पर कुछ विशेष परिस्थितियों में वो संपत्ति (Property) का मालिक बन सकता है, ऐसे में मकान मालिकों के लिए जरूरी है इस कानून के बारे में जान लेना-
HR Breaking News, Digital Desk- (Tenant landlord Dispute) भारत में प्रॉपर्टी किराए पर देने के कुछ कानूनी नियम हैं. 12 साल तक लगातार किराएदार रहने पर कुछ विशेष परिस्थितियों में वो संपत्ति (Property) का मालिक बन सकता है, हालांकि यह मुश्किल है पर असंभव नहीं. इसलिए, किराए पर देने से पहले किराया समझौता (रेंट एग्रीमेंट) बनाना अनिवार्य है.
इसमें किराए की अवधि, किराया राशि, रखरखाव की जिम्मेदारी और बेदखली की शर्तें स्पष्ट रूप से लिखी होनी चाहिए. पंजीकरण अधिनियम (Registration Act), 1908 के तहत, 11 महीने से अधिक के किराये समझौतों का पंजीकरण अनिवार्य है. इससे भविष्य में होने वाले विवादों से बचा जा सकता है.
इसके साथ ही आपको बताएंगे कि कैसे आप अपनी प्रॉपर्टी को किराएदार के कब्जा (tenant possession) करने से बचा सकते हैं. इसके लिए आपको प्रॉपर्टी किराए पर देने से पहले कौन-कौन सी कागजी कार्रवाई पूरी करा लेनी चाहिए.
किराए पर देने के सामान्य नियम-
मकान मालिक और किराएदार के बीच एक लिखित किरायेदारी अनुबंध होना ज़रूरी है. इसमें किराया, भुगतान विधि, अवधि, और मरम्मत की ज़िम्मेदारियों जैसी सभी जानकारी स्पष्ट रूप से लिखी होनी चाहिए. किराएदार को संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार मिलता है, लेकिन उसे मकान मालिक के अधिकारों का उल्लंघन (violation of the rights of the landlord) नहीं करना चाहिए. मकान मालिक राज्य के नियमों के अनुसार समय-समय पर किराया बढ़ा सकता है.
कैसे किराएदार बन सकता है मालिक?
भारतीय कानून के तहत, अगर किराएदार ने किसी संपत्ति को एक निश्चित समय तक कब्जे में रखा है और मकान मालिक ने इसे नहीं छीनने की कोशिश की, तो कुछ राज्यों में किराएदार को इस संपत्ति का मालिक बनने का अधिकार मिल सकता है. यह प्रक्रिया “Adverse Possession” (विपरीत कब्जा) के तहत होती है, जिसे भारतीय कानून में दी गई कुछ विशेष स्थितियों के तहत मान्यता प्राप्त है.
Adverse Possession नियम-
अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर अनधिकृत रूप से कब्जा करता है और यह कब्जा कुछ सालों तक चलता रहता है, तो वह व्यक्ति मालिक के अधिकार का दावा कर सकता है. यह प्रक्रिया सामान्यत: 12 साल तक की अवधि में पूरी होती है, अगर मकान मालिक ने संपत्ति पर कब्जा करने का कोई प्रयास नहीं किया है और किराएदार का कब्जा लगातार बना रहा है.
नियम की क्या-क्या हैं शर्त?
कब्जे की स्थिति सार्वजनिक, स्पष्ट और स्पष्ट रूप से रखी जानी चाहिए. यह कब्जा निजी और बिना किसी बाधा के होना चाहिए. यह समय सीमा 12 वर्ष (या कभी-कभी 30 वर्ष, निर्भर राज्य कानून पर) तक हो सकती है. हालांकि, यह नियम सभी मामलों में लागू नहीं होते, और अगर मकान मालिक ने पहले ही कोर्ट में संपत्ति पर अपना दावा किया हो या कानूनी कार्रवाई की हो, तो इस सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
किरायेदारी से संबंधित कानूनी विवाद-
अगर किरायेदार और मकान मालिक के बीच कोई विवाद हो, तो इसे न्यायालय में समाधान किया जा सकता है. इसके लिए, किरायेदार को पहले कोर्ट से एक अधिकार प्राप्त करना होगा. कुछ राज्यों में रेंट कंट्रोल एक्ट (rent control act) लागू हैं, जो किरायेदार और मकान मालिक के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं और ऐसे मामलों में अनुशासन भी लाते हैं. ये अधिनियम विवादों को निपटाने में मदद करते हैं और दोनों पक्षों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं.
