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भूमि अधिग्रहण के मामले में Supreme Court ने दिया बड़ा फैसला, आम लोगों को बड़ी राहत

Supreme Court : भूमि अधिग्रहण के संविधान के अनुसार कई नियम व प्रावधान हैं। अब भू अधिग्रहण (Land acquisition rules) के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। यह फैसला आम जनता के लिए राहत भरा है। काफी लंबे समय बाद इस मामले में पीड़ितों को न्याय मिल सका है। आइये जानते कोर्ट के इस फैसले के बारे में।

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भूमि अधिग्रहण के मामले में Supreme Court ने दिया बड़ा फैसला, आम लोगों को बड़ी राहत

HR Breaking News - (Land acquisition)। राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाता है। भू अधिग्रहण (SC decision in Land acquisition ) से जुड़े कई मामले कोर्टों में आते रहे हैं। अधिकतर मामलों में भू अधिग्रहण नियमों का उल्लंघन भी पाया जाता है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court News) ने ऐसे ही मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। इस निर्णय की हर तरफ चर्चाएं हो रही हैं। हर प्रोपर्टी मालिक के लिए यह फैसला जानना जरूरी है, आम लोगों के लिए यह फैसला काफी राहतभरा है। यह फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी भी की है।

संपत्ति मालिकों ने दी थी फैसले को चुनौती-

भू अधिग्रहण के एक मामले (Land acquisition case) में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों वाली पीठ ने अहम फैसला सुनाया है। पीठ ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार (property rights) बेशक मौलिक अधिकार न हो, लेकिन मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद-300-A के अनुसार संवैधानिक अधिकार है। इसके अनुसार बिना कानूनी अधिकार लिए किसी संपत्ति मालिक (property ownership) को उससे बेदखल नहीं किया जा सकता। 

जबकि सुप्रीम कोर्ट में आए इस मामले में ऐसा किया गया था, इसीलिए मुआवजे (land compensation rules) के लिए संपत्ति मालिकों को भटकना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण (Land acquisition ) से जुड़े मामले में दिया गया है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 2022 में इस मामले में फैसला सुनाया था, जिसे संपत्ति मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

बिना मुआवजा दिए उठाया गया था यह कदम-

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संपत्ति से बेदखल (property evicted rules) करने से पहले मुआवजा दिया जाना चाहिए था, लेकिन इस मामले में मुआवजा दिए बिना ही संपत्ति से अपीलकर्ताओं को बेदखल किया गया। किसी प्रोजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण करने के लिए कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB case decision) ने  2003 में जनवरी माह में अधिसूचना जारी की थी। 


2 साल बाद नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं की जमीन को अधिग्रहीत कर कब्जा कर लिया गया। ये अपीलकर्ता भू-स्वामी थे और 22 वर्षों के दौरान कई बार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। उनको बिना कोई मुआवजा दिए संपत्ति से बेदखल (evicted from property) करना न्यायसंगत नहीं है।

KIADB  ने बरती यह ढील -

मुआवजा देने में KIADB  (Karnataka Industrial Area Development Board)के अधिकारियों ने सुस्त रवैया अपनाया, इस कारण अपीलकर्ताओं को मुआवजा नहीं मिला। 


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवमानना का नोटिस जारी होने के बाद ही विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (SLAO) ने अधिग्रहीत भूमि का मार्केट वैल्यू अनुसार मुआवजा निर्धारित करने के लिए 2011 में प्रचलित दिशानिर्देशों को आधार बनाया और उसके बाद नए सिरे से मुआवजा राशि (SC decision in property compensation) निर्धारित की गई।

सुप्रीम कोर्ट ने की यह टिप्पणी-

सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने कहा है कि साल 2003 के मार्केट रेट पर मुआवजा देना न्यायोचित नहीं है। वर्तमान मार्केट रेट पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पूर्व समय के अनुसार मुआवजा देना अनुच्छेद-300-A में दिए गए प्राविधानों (property compensation rules) का भी उल्लंघन है। संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अदालत ने एसएलएओ को अप्रैल 2019 में चल रहे मार्केट रेट के अनुसार अपीलकर्ताओं का मुआवजा निर्धारित करके इसे देने के निर्देश दिए।

जल्द से जल्द मुआवजा देने के आदेश-

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो महीने के अंदर मुआवजा राशि दिए जाने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट (supreme court news) ने कहा है कि पक्षकारों को सुनने के बाद विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी नए सिरे से मुआवजा राशि घोषित करेंगे। हालांकि इस घोषणा के बाद भी पक्षकार चाहें तो मुआवजा राशि को चुनौती भी दे सकते हैं।

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