Cheque Bounce : चेक बाउंस होने के इन मामलों में नहीं दर्ज होगा केस, चेक से लेनदेन करने वाले जान लें नियम
Cheque bounce case : अब तक आप यही सुनते और पढ़ते आए होंगे कि चेक बाउंस होने पर सजा का प्रावधान है। किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया चेक अगर बाउंस (Cheque bounce) हो जाता है तो उसके पसीने छूटने लगते हैं। अब लोगों के लिए राहत भरी खबर आई है। आइये जानते हैं इस खास अपडेट के बारे में विस्तार से इस खबर के माध्यम से।
HR Breaking News - (Cheque Bounce news)। चेक बाउंस के नियमों के बारे में बहुत से लोग अनजान हैं। अक्सर खाताधारक किसी को अपनी चेक बुक से कई बार चेक तो इश्यू कर देते हैं लेकिन बाद में वह किन्हीं कारणों से बाउंस (Cheque bounce) भी हो जाता है। ऐसे में चेक इश्यू करने वाले खाताधारक को कई तरह की परेशानी होती है और उसे कानूनी पचड़ों में भी फंसना पड़ता है। यहां तक कि कई बार चेक बाउंस के मामलों में सजा तक की नौबत आ जाती है। आपको खबर में इसी परेशानी से बचने के बारे में बता रहे हैं। हर चेक बाउंस (Reasons of Cheque bounce) के मामले में यह नौबत नहीं आती।
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चेक बाउंस होने के होते हैं कई कारण-
चेक बाउंस के मामलों के लिए नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881)बनाया गया है। चेक बाउंस होने के कई कारण हैं, केवल खाते में पैसे न होना ही चेक बाउंस होने का कारण नहीं है। जिस तरह से चेक रद (Cheque cancel kab hota hai) होने के कई कारण हो सकते हैं ठीक उसी तरह से इसके बाउंस होने के भी कई रीजन होते हैं।
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 के सेक्शन 138 के अनुसार कोई स्वीकार्य देनदारी भुगतान के लिए जारी चेक अगर बाउंस होता है तो ही खाताधारक पर कार्रवाई की जा सकती है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि जरूरी नहीं है कि चेक बाउंस होने के हर कारण पर ही सजा होगी। आपको किसी के रुपये देने हैं या कोई भुगतान करना स्वीकार किया है और Cheque बाउंस हो जाता है तो ऐसी स्थिति में जरूरी नहीं कि केस दर्ज होगा।
इस कारण से बाउंस हुआ चेक तो होगा केस-
विशेषज्ञों के अनुसार दो पक्षों के बीच लेन-देन या कारोबार जब चेक के माध्यम से होता है और वह बाउंस हो जाता है तो उसके बाउंस (Cheque bounce rules) होने पर कानून के अनुसार सेक्शन 138 के तहत कार्रवाई होगी। किसी ने अगर अपने दोस्त की संकट के समय आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए उसे पैसा दिया और वह दोस्त उस पैसे को वापस करने के लिए अपना चेक देता है और वह बाउंस हो जाता है तो इस मामले में केस (Cheque bounce case) दर्ज नहीं हो सकता। इसका एक बड़ा कारण यह है कि इस तरह दिया गया पैसा लोन, कर्ज या उधार की श्रेणी में आता है। इसलिए केस दर्ज नहीं हो सकता।
किसी के पास सिक्योरिटी के लिए रखा चेक-
कई बार ये भी देखा गया है कि कुछ लोग कारोबार करने के लिए किसी व्यक्ति से सामान लेते हैं और सुरक्षा (सिक्योरिटी) के तौर पर सामान लेने वाले के पास कुछ रख देते हैं। इस तरह सुरक्षा के लिए रखा गया चेक अगर बाउंस होता है तो सजा तो दूर केस ही नहीं होगा। क्योंकि सिक्योरिटी के लिए दिए चेक को दूसरी पार्टी कैश कराती है तो इसके बाउंस (Cheque bounce) होने पर सजा या केस का कोई प्रावधान नहीं है।
कार्रवाई के दायरे बाहर हैं चेक बाउंस के ये मामले-
- एडवांस के तौर पर दिए गए चेक बाउंस होने पर नहीं होगी कार्रवाई।
-सिक्योरिटी के लिए दिया गया चेक बाउंस होने पर नहीं होगा केस।
-चेक में नंबर व शब्दों में लिखे गए रुपये अलग हैं तो नहीं होगा केस।
-अगर चेक किसी चैरिटेबल संस्था को गिफ्ट या डोनेशन के तौर पर दिया गया है तो भी केस नहीं बनता।
-अगर चेक कटी-फटी अवस्था में मिलता है तो यह कार्रवाई के दायरे से बाहर होगा।
आपके साथ ऐसा हो तो यह करें-
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अगर आपके साथ ऐसा हो जाए कि कोई चेक (Cheque bounce ki jankari) किसी से लिया हुआ हो और वह भुगतान के समय बाउंस हो जाए तो चेक बाउंस होने के 30 दिन के अंदर चेक प्रदाता को कानूनी नोटिस भेजें। इस नोटिस के जरिये आपको चेक बाउंस होने की सूचना चेक प्रदाता तक पहुंचानी होगी और ब्याज सहित रकम वापसी की मांग करें।
यह लीगल नोटिस (Cheque bounce notice) भी रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजना होगा, क्योंकि आपको इस मामले में कोर्ट को रिसीविंग के बारे में भी बताना होगा। जिसने चेक दिया था वह नोटिस मिलने पर 15 दिनों में आपको पैसे नहीं लौटाता है तो आप इसके बाद 30 दिन में कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं और चेक बाउंस की शिकायत (Cheque bounce ki sikayat kaha kre) दर्ज कराकर अपनी बात रख सकते हैं। इसके बाद आगे की कार्रवाई की जाती है।