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Cheque Bounce : चेक बाउंस होने पर नहीं किया ये काम तो हो जाएगी सजा

भले ही आज फोन पे और गूगल पे का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। अधिकतर लोग आज भी चेक से ही पेमेंट करना सेफ मानते हैं। लेकिन कई बार किसी वजह से चेक बाउंस हो जाता है। ऐसे में ज्यादातर लोगों को यह जानकारी नहीं होती है कि चेक बाउंस (Cheque Bounce) होने के बाद क्या होना होता है। जिसके चलते वह बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं। अगर आप भी चेक से पेमेंट करते हैं तो इससे जुड़े नियमों के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। आइए नीचे खबर में जानते हैं- 
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HR Breaking News (ब्यूरो)। चेक बाउंस (Cheque Bounce) होना एक तरह का अपराध है और चेक काटने से पहले  अपना बैंक अकाउंट जरूर चेक कर लें। अगर आपके खाते में चेक पर डाली गई रकम से कम पैसा है तो आपका चेक बाउंस हो जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो उसके लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है। आइए जानें इनके अलावा कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से चेक बाउंस हो जाता है? अगर किसी ने आपको बाउंस चेक दिया है तो उस पर क्या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?  अगर आपका दिया गया चेक डिसऑनर हो गया है तो सजा से कैसे बचेंगे?

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अगर चेक बाउंस हो जाता है, तो सबसे पहले एक महीने के अंदर चेक जारी करने वाले को लीगल नोटिस भेजना होता है। इस नोटिस में कहा जाता है कि उसने जो चेक दिया था वह बाउंस हो गया है अब वह 15 दिन के अंदर चेक की राशि उसको दे दे। इसके बाद 15 दिन तक इंतजार करना होता है यदि चेक देने वाला उस पैसे का भुगतान 15 दिन में कर देता है तो मामला यहीं सुलझ जाता है।


सिविल न्यायालय में दायर करें मुकदमा

अगर चेक जारी करने वाला पैसा देने से इनकार कर देता है या लीगल नोटिस का जवाब नहीं देता है, तो आप निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस फाइल कर सकते हैं। इसके तहत आरोपी को 2 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। जुर्माने की राशि चेक की राशि का दोगुना हो सकती है।

केस दायर करने के बाद आप कोर्ट से अपील कर सकते हैं कि वह चेक जारी करने वाले से चेक की राशि का कुछ हिस्सा शुरुआत में ही दिलवा दे। इसके बाद कोर्ट आमतौर पर चेक की राशि का 20 से 30 प्रतिशत पैसा शुरुआत में दिलवा देता है।

अगर आप जीत जाते हैं, तो कोर्ट चेक जारी करने वाले से पैसा दिला देता है साथ ही जो अमाउंट आपको शुरुआत में मिला हुआ है, वह भी आपके पास ही रहता है। यदि आप केस हार जाते हैं, तो जो पैसा आपको केस के शुरुआत में मिला है, उसको ब्याज के साथ वापस करना पड़ता है।

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एचडीएफसी बैंक की वेबसाइट पर डिसऑनर चेक के बारे में दी गई जानकारी के मुताबिक एक चेक कई कारणों से डिसऑनर या बाउंस हो सकता है। 

चेक जारी करने वाले के खाते में पर्याप्त राशि नहीं थी या चेक पर साइन बिल्कुल मेल नहीं खाने पर चेक बाउंस हो सकता है। 
कई बार खाता संख्या मिलान न होने पर चेक डिसऑनर हो जाते हैं। कटे-फटे चेक भी बैंक द्वारा डिसऑनर किए जा सकते हैं।
 यदि कोई चेक एक्सपायर हो गया है या उसे जारी करने की तारीख में कोई समस्या है तो चेक बाउंस हो सकता है। 
कभी-कभी, चेक जारी करने वाले द्वारा पेमेंट रोकने की वजह से भी चेक को डिसऑनर माना जाता है। 

अगर चेक बाउंस हो जाए तो क्या होगा


 
डिसऑनर या बाउंस की स्थित में चेक जारी करने वाले पर जुर्माना लगता है। यह चेक बाउंस होने के कारण पर निर्भर करता है। अगर चेक से पेमेंट करने वाले के खाते में अपर्याप्त धनराशि होने के कारण चेक बाउंस हो जाता है तो निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत एक अपराध है। अपर्याप्त धनराशि वाले खाते के लिए चेक जारी करने के लिए भुगतानकर्ता पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इसके अलावा बैंक चेक बाउंस होने पर जुर्माना भी वसूलते हैं। यह अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग होता है। अलग-अलग राशि के लिए डिसऑनर चेक जारी करने पर बैंकों के अलग-अलग पेनाल्टी स्लैब हो सकते हैं।

कितने साल की होती है सजा

जिस व्यक्ति को चेक जारी किया गया है, वह चेक जारी करने वाले पर मुकदमा चलाने का विकल्प चुन सकता है या भुगतानकर्ता को तीन महीने के भीतर चेक को फिर से जारी करने की अनुमति दे सकता है। डिसऑनर चेक जारी करने के लिए भुगतानकर्ता को दो साल तक की जेल हो सकती है। हालांकि, सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है। साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अंतर्गत परिवादी को कंपनसेशन दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है। कंपनसेशन की यह रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है।