Fitment factor hike : इस बार एक समान होगा फिटमेंट फैक्टर, हर कर्मचारी की बढ़ेगी इतनी सैलरी

HR Breaking News - (fitment factor) हर बार जब भी नया वेतन आयोग लागू होता है तो फिटमेंट फैक्टर पर सबकी नजर होती है। इसी के आधार पर कर्मचारियों के वेतन में बढ़ौतरी (salary hike) की जाती है। पिछले वेतन आयोगों में अलग-अलग श्रेणी के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए अलग-अलग फिटमेंट फैक्टर लागू किया जाता रहा है।
इस कारण कर्मचारियों के न्यूनतम वेतन (minimum basic salary) और अधिकतम वेतन में काफी अंतर बढ़ गया है। इस बार 8वें वेतन आयोग में इसे समान रूप से लागू किए जाने का विचार है, जिस कारण हर कर्मचारी की वेतन बढ़ौतरी समान होगी और अच्छी बढ़ौतरी भी देखने को मिलेगी।
10 साल में बढ़ जाती है इतनी महंगाई-
अब तक कर्मचारियों के वेतन में संशोधन के लिए सरकार की ओर से हर नया वेतन आयोग दस साल के अंतराल पर लागू किया जाता रहा है। कुछ कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि यह अपने आप में एक लंबी अवधि है और इतने समय में महंगाई काफी अधिक बढ़ जाती है। जिस हिसाब से शुरुआती लेवल के कर्मचारियों के लिए फिटमेंट फैक्टर (fitment factor kitna hoga) लागू किया जाता है, उस हिसाब से उन्हें महंगाई से लड़ने में मुश्किल होती है।
उनके वेतन संशोधन के लिए अधिकारियों के बजाय कम फिटमेंट फैक्टर रखा जाता है। इससे उनके न्यूनतम और अधिकतम वेतन का अंतर भी बढ़ जाता है। इसलिए फिटमेंट फैक्टर को भी समान रखा जाना चाहिए। हालांकि कई कर्मचारियों को उम्मीद है कि इस बार सरकार की ओर से 8वें वेतन आयोग (8th pay commission) में समान फिटमेंट फैक्टर रखा जाएगा। खासकर समान फिटमेंट रखे जाने की मांग NC-JCM की ओर से की जा रही है।
फिटमेंट फैक्टर एक समान ही हो-
नेशनल काउंसिल ऑफ जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (National Council for Joint Consultative Machinery) की स्टैंडिंग कमेटी के स्टाफ साइड के सचिव शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि हर लेवल के कर्मचारी का समान रूप से वेतन संशोधित होना चाहिए। यानी सभी सैलरी बैंडों में फिटमेंट फैक्टर एक ही होना चाहिए। मिश्रा का मानना है कि इस बार सभी कर्मचारियों के लिए वेतन संशोधन के लिए समान फिटमेंट फैक्टर (8th CPC me fitment factor) का इस्तेमाल होगा, यही आयोग से उनकी मांग भी रहेगी।
उम्मीद है इसी आधार पर सैलरी बढ़ेगी और वेतन संशोधन के लिए वे इस मुद्दे पर बातचीत जारी रखेंगे। यह भी जान लें कि NC-JCM नौकरशाहों और श्रमिक संघ के नेताओं का आधिकारिक संगठन है, जो सरकार और कर्मचारियों के बीच किसी भी असहमति को बातचीत से सुलझाने का कार्य करता है।
रेशनलाइजेशन इंडेक्स की भूमिका -
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार सातवें वेतन आयोग (7th pay commission) के तहत जब सैलरी में संशोधन किया गया तो लेवल अनुसार कर्मचारियों और अधिकारियों की सैलरी में बढ़ौतरी के लिए अलग-अलग फिटमेंट फैक्टर का उपयोग किया गया। इससे हर लेवल के कर्मचारियों के न्यूनतम और अधिकतम सैलरी (minimum maximum salary) में काफी अंतर आ गया। अब इस अंतर को पाटने की जरूरत है।
हालांकि इस पर अंतिम फैसला तो सरकार को ही लेना है। सातवें वेतन आयोग में सैलरी बैंड 1 के कर्मचारियों के वेतन संशोधन के लिए 2.57 फिटमेंट फैक्टर, सैलरी बैंड 2 के कर्मचारियों लिए फिटमेंट फैक्टर 2.62, सैलरी बैंड 3 के लिए 2.67 और सैलरी बैंड 4 के लिए 2.72 का फिटमेंट फैक्टर लागू किया गया। इसमें रेशनलाइजेशन इंडेक्स (rationalization index) का यूज किया गया जिस कारण हर सैलरी बैंड के कर्मचारियों के न्यूनतम और अधिकतम वेतन में काफी ज्यादा अंतर आ गया।
अधिकतम व न्यूनतम सैलरी में कम हो अंतर-
7वें वेतन आयोग (7th CPC update) ने वेतन बढ़ौतरी के लिए रेशनलाइजेशन इंडेक्स के आधार पर अधिकारियों के यानी टॉप लेवल के वेतन संशोधन के लिए अलग से हाई फिटमेंट फैक्टर रखने का सुझाव दिया है। आमतौर पर बड़े पदों वाले कर्मचारियों का अधिक वेतन बढ़ाया जाता है। इससे कर्मचारियों के अधिकतम और न्यूनतम वेतन के बीच के बड़ा अंतर आ जाता है। इसे कम करना चाहिए, इसलिए समान फिटमेंट फैक्टर (fitment factor rules) लागू करने की धारणा को अपनाना चाहिए।
चौथे वेतन आयोग में हुआ था यह तय-
चौथे वेतन आयोग का जब गठन किया गया था तो आयोग ने सुझाव दिया था कि कर्मचारियों के न्यूनतम और अधिकतम वेतन के बीच अधिक अंतर है, इसे कम करने की जरूरत है। लेकिन उसके बाद यह कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। यह बात अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी महासंघ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा (Shiv Gopal Mishra) ने कही। उनके अनुसार अब समय आ गया है कि कम से कम अब नए लागू होने वाले आठवें वेतन आयोग में इस समस्या को समान फिटमेंट फैक्टर लागू करके खत्म कर देना चाहिए। इसकी सिफारिश वेतन आयोग (recommendations of 8th CPC) को करनी ही चाहिए ताकि अधिकतम व न्यूनतम वेतन की खाई को कम किया जा सके।
बैठक में रखी जा चुकी यह मांग-
जब भी फिटमेंट फैक्टर अलग-अलग होता है तो कुछ लेवल (levelwise salary of employees) के कर्मचारियों की सैलरी कम बढ़ती है और कुछ लेवल के कर्मचारी अधिक वेतन बढ़ौतरी पा लेते हैं। इस कारण लगातार न्यूनतम व अधिकतम सैलरी का अंतर बढ़ता चला जाता है। कुछ समय पहले कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training) के साथ इस मुद्दे पर बैठक भी हुई थी। इसमें एनसी-जेसीएम स्टाफ पक्ष की ओर से यह कहा गया था कि जो वेतनमान अव्यावहारिक हैं, उनका मर्ज कर देना चाहिए। शिव गोपाल मिश्रा ने इस बात पर भी जोर दिया कि अलग-अलग फिटमेंट फैक्टर से कई कर्मचारियों की सैलरी में ठहराव आ जाता है। इससे एमएसीपी (MACP) पर भी प्रभाव पड़ता है।
कर्मचारी लगातार उठा रहे इस मांग को-
कुछ कर्मचारी यूनियनों का मानना है कि रेशनलाइजेशन इंडेक्स (rationalization index kya hai) के कारण ही अधिकतम व न्यूनतम सैलरी में अंतर अधिक हो रहा है। 7वें वेतन आयोग के तहत वेतन संशोधन के लिए फिटमेंट फैक्टर अलग-अलग रखा गया। इससे यह अंतर और बढ़ गया। शुरुआती लेवल के कर्मचारियों के लिए 2.57 और उच्चतम लेवल के अधिकारियों के लिए 2.81 फिटमेंट फैक्टर रखा गया।
यह रेशनलाइजेशन इंडेक्स के कारण हुआ, नहीं तो सामान्य फिटमेंट फैक्टर 2.57 और 2.81 के बीच रखा जा सकता था। रेशनलाइजेशन इंडेक्स को वेतन संशोधन का आधार बनाने के बजाय समान फिटमेंट फैक्टर लागू करने की मांग लगातार कर्मचारियों (update for govt employees) की ओर से की जा रही है।