Home Loan EMI : होम लोन की कितनी किस्त नहीं भरने पर बैंक कर देगा डिफॉल्टर घोषित, जान लें नियम
Bank Rules for loan : हर किसी का सपना होता है कि उसका खुद का एक घर हो। लेकिन आज प्रॉपर्टी कीमतें आसमान पर जा पहुंची है ऐसे में हर किसी को घर खरीदने के लिए होम लोन (Home Loan) की जरूरत पड़ती है। कई बार लोग आर्थिक तंगी के चलते समय पर किस्त नहीं भर पाते हैं और ऐसे में बैंक डिफॉल्टर घोषित कर देता है। अगर आप होम लोन लेने की सोच रहे हैं तो यह जरूर जान लें कि होम लोन की कितनी EMI नहीं भरने पर आप Defaulter की कैटेगरी में आ जाएंगे।
HR Breaking News - (ब्यूरो)। आज के समय में हर किसी को होम लोन, पर्सनल लोन (Personal Loan) या किसी अन्य लोन की आवश्कता जरूर पड़ती है। और जाहिर सी बात है यदि आपने बैंक से कोई भी लोन लिया है तो उसका भुगतान जरूर करना पड़ेगा और वह भी इंटरेस्ट के साथ। हां, अगर आप समय पर किस्त भरते हैं और आपका सिबिल स्कोर (CIBIL Score) अच्छा है तो ब्याज में राहत मिल सकती है। जिससे आप इसे हर महीने आसानी से किस्तों में चुका सकते हैं। लेकिन यदि आर्थिक तंगी के चलते EMI बाउंस हो जाती है तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं। लंबी अवधि का होम लोन (Home Loan) होने के कारण किस्त बाउंस होने का खतरा ज्यादा रहता है।
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इस बात से सभी वाकिफ हैं कि होम लोन (Home Loan) लंबी अवधि का कर्ज होता है। होम लोन लेने के बाद अगर कर्जदार जॉब से हाथ धो बैठता है या दूसरे कर्ज में डूबने या अचानक मेडिकल इमरजेंसी आने कि स्थिति में EMI बाउंस होने का खतरा अधिक हो जाता है। यदि आपने भी होम लोन लिया है या लेने की सोच रहे हैं तो ऐसे में आपको पता होना चाहिए कि अगर किस्त बाउंस हो जाती है तो बैंक क्या करता है और कर्जदार को कब डिफॉल्टर (Loan Defaulter) सूची में डाला जाता है।
बैंक कर्जदार को कब घोषित करता है डिफॉल्टर -
यदि कर्जदार से पहली किस्त बाउंस होती है तो इसे बैंक ज्यादा सिरियस नहीं लेता है। क्योंकि बैंक इसे चूक मान लेता है। जब कर्जदार की लगातार दो किस्त बाउंस (Home loan installment bounce) होती है, तब बैंक उसपर गौर करता है और ऐसे में बैंक ग्राहकों को किस्त का भुगतान करने के लिए नोटिस भेजता है। जैसे ही ग्राहक तीसरी किस्त को भी मिस करता है तो बैंक ग्राहक को एक कानूनी नोटिस भेजता है। अगर कानूनी नोटिस मिलने के बाद भी कर्जदार EMI नहीं चुकाता है तो बैंक एक्शन (bank rules for property auction) में आता है और कर्जदार को डिफॉल्टर की कैटेगरी में डाल देता है।
नीलामी से पहले मिलते हैं लोन चुकाने के मौके -
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI Loan Rule) के नियमों के अनुसार अगर कोई कर्जदार अगर बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक नहीं चुकता है तो उसे NPA (Non-Performing Asset) माना जाता है। ऐसे में आखिरी ऑप्शन नीलामी ही बचता है। हालांकि ऐसा नहीं होता है कि एनपीए (Bank Rules for NPA) घोषित होते ही प्रॉपर्टी को नीलाम कर दिया जाता है। एनपीए की भी तीन सूची होती है- सबस्टैंडर्ड असेट्स, डाउटफुल असेट्स और लॉस असेट्स।
जब कोई कर्जदार एक साल तक लोन नहीं चुकता है तो उस खाते को सबस्टैंडर्ड असेट्स की श्रेणी में रहता है, इसके बाद डाउटफुल असेट्स (Doubtful Assets) बनता है इसमें ग्राहक को एक साल से अधिक समय मिलता है और जब लोन वापसी की कोई उम्मीद नहीं रह जाती है तो उसे ‘लॉस असेट्स’ (loss assets) मान लिया जाता है। इसके बाद बैंक नीलामी की प्रक्रिया को शुरू करता है।
नीलामी से पहले बैंक जारी करता है नोटिस-
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जब कर्जदार से लोन (Loan News) वसूली की उम्मीद नहीं रहती है तो बैंक प्रॉपर्टी नीलमी का रास्ता चुनता है। नीलामी से पहले बैंक को पब्लिक नोटिस जारी करना होता है। इस नोटिस में संपत्ति की सही कीमत (property rates), रिजर्व रेट, डेट और नीलामी के वक्त के बारे में विस्तार से लिखा होता है। यदि बॉरोअर यानी कर्जदार को लगता है कि उसकी संपत्ति की कीमत कम रखी गई है तो ऐसे में वह इस नीलामी को चुनौती दे सकता है और उचित रेट की मांग कर सकता है।
