Property Dispute : प्रोपर्टी के मामले में परिवार के ही किसी सदस्य पर करना हो केस, तो सबसे पहले करें ये काम
अगर आपके पुश्तैनी घर के बारे में आपसे पूछा जाए, तो आपका जवाब क्या होगा? हममें से कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें पुश्तैनी घरों में हिस्सा नहीं मिल पाता। हिंदुस्तान की यह बहुत आम समस्या है और इसके कारण ही अदालतों में कई केस भी चल रहे हैं। जहां तक प्रॉपर्टी राइट्स का सवाल है, तो यह हर भारतीय के मुख्य अधिकारों में से एक हैं। समाज में प्रॉपर्टी पर हक जताना एक बात है और प्रॉपर्टी का अधिकार मिलना अलग।आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.

HR Breaking News (नई दिल्ली)। हर व्यक्ति का प्रॉपर्टी पर अलग तरह का अधिकार हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रॉपर्टी है किसकी और अधिकार जताने वाले का रिश्ता क्या है।
भारत में किस तरह के प्रॉपर्टी राइट्स हैं यह समझने के लिए हमने पीएस लॉ एडवोकेट एंड सॉलिसिटर की एडवोकेट पार्टनर प्रीति सिंह से बात की। उन्होंने हमें विस्तार से प्रॉपर्टी राइट्स के बारे में बताया।
प्रीति का कहना है कि अगर किसी व्यक्ति को प्रॉपर्टी पर अधिकार चाहिए, तो वह अपने मूलभूत अधिकारों के तहत प्रॉपर्टी पर पार्टीशन मांग सकता है या फिर प्रॉपर्टी को लेकर डिक्लेरेशन दिया जा सकता है।
अगर किसी पर करना है प्रॉपर्टी को लेकर केस, तो क्या करें?
प्रीति के मुताबिक, "प्रॉपर्टी को लेकर केस फाइल करने से पहले आपको यह समझना होगा कि प्रॉपर्टी पर आपका अधिकार कितना है। जिस रिलेशन के आधार पर आप प्रॉपर्टी की मांग कर रहे हैं, वह लीगली आपकी है भी या नहीं और अगर है, तो उस पर कितने विवाद हैं। भारत में दो कानूनों के आधार पर प्रॉपर्टी राइट्स दिए जाते हैं जिसमें हिंदू सक्सेशन एक्ट और भारतीय सक्सेशन एक्ट शामिल है।
अगर आपको मुकदमा फाइल करना है, तो डिस्ट्रिक्ट या हाई कोर्ट दोनों में ही इसे दर्ज करवाया जा सकता है। जो भी मुकदमा होगा उसमें प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के आधार पर ही दायर किया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति मार्केट वैल्यू पर प्रॉपर्टी केस फाइल करता है और उस प्रॉपर्टी में उस व्यक्ति का कोई हिस्सा लीगली साबित नहीं होता है, तो उसे एड वेलोरम कोर्ट फीस (ad valorem court fees) भी देनी होगी।
यह कोर्ट फीस उस राशि के आधार पर मांगी जाती है जिसके आधार पर कंपनसेशन या डैमेज मांगा गया था। यानी कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए आपसे फीस मांगी जा सकती है।
क्या है हिंदू सक्सेशन एक्ट?
यह हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है। हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 के आधार पर यह बताया जाता है कि किस तरह से प्रॉपर्टी को लेकर अपील की जा सकती है, किन मामलों में प्रॉपर्टी घर के किस सदस्य को ट्रांसफर की जा सकती है, ऐसे मामलों का क्या किया जाए जिनमें प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया गया हो, मेल और फीमेल के प्रॉपर्टी सक्सेशन नियम क्या-क्या हैं? अगर प्रॉपर्टी पर विवाद है, तो उस मामले को कैसे डील किया जाएगा?
इस एक्ट के तहत इसकी जानकारी भी दी जाती है कि किन लोगों को हिंदू होने के बाद भी प्रॉपर्टी राइट्स का हिस्सा नहीं माना जाएगा और किस तरह की प्रॉपर्टी पर अधिकार नहीं जताया जा सकता है। इस एक्ट के अनुसार शादीशुदा बेटी और बहू के भी अलग अधिकार बताए गए हैं।
क्या है इंडियन सक्सेशन एक्ट?
इंडियन सक्सेशन एक्ट मुस्लिम, पारसी, यहूदी और अन्य धर्मों के भारतीय नागरिकों पर लागू होता है जो हिंदू सक्सेशन एक्ट के तहत नहीं आते हैं। भारतीय सक्सेशन एक्ट में भी हर तरह के नियम और कानून बताए गए हैं जिनके तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
प्रीति के अनुसार, किसी भी मामले में जज केस के विवादों के आधार पर फैसला सुना सकता है। ऐसा हो सकता है कि नियमों के आधार पर किसी एक व्यक्ति को प्रॉपर्टी राइट्स दिए जाएं और दूसरे को नहीं। जज पारिवारिक कलह के हिसाब से भी मामले की सुनवाई करता है। ऐसा हो सकता है कि एक व्यक्ति को प्रॉपर्टी में हिस्सा मिले और दूसरे को उसके एवज में आर्थिक मदद दी जाए।
कोर्ट में केस दाखिल करने से पहले इन बातों का पता होना चाहिए
अगर आप कोर्ट में प्रॉपर्टी को लेकर केस दाखिल करने की बात कर रहे हैं, तो आपको प्रॉपर्टी के बारे में कुछ बातें विस्तार में अपने एफिडेविट में बतानी होंगी-
- प्रॉपर्टी का पूरा लेखा-जोखा
- परिवार का लेखा-जोखा जिसके हिसाब से आपको प्रॉपर्टी मिल सकती है। इसमें प्रॉपर्टी मुख्य तौर पर किसकी है और जिसकी प्रॉपर्टी है उससे आपका सगा रिश्ता कैसा है इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी।
- प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू क्या है।
- प्रॉपर्टी के एवज में अगर कोई आर्थिक मदद मांगी गई है या फिर बंटवारे की बात की गई है उसका पूरा ब्यौरा
- कहने को तो प्रॉपर्टी के मामलों में केस करना बहुत आसान है, लेकिन आपको यह भी पता है कि इन सभी मामलों में कितने साल लग सकते हैं।