RBI ने 2 बार छापा 10 हजार रुपये का नोट, इस कारण कर दिया बंद
RBI Update - 2016 की नोटबंदी में एक हजार रुपये का नोट बंद कर दिया गया और दो हजार रुपये का नोट जारी हुआ. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के इतिहास में 10 हजार रुपये का नोट (note) भी था..? उसे कब और किसने जारी किया, कितने समय चला और फिर क्यों बंद कर दिया गया. आइए इन्हीं सवालों के जवाब जान लेते है इस खबर में-

HR Breaking News, Digital Desk- भारत में आपने 1 से 2,000 रुपये तक के कई नोट देखे होंगे. ₹10, ₹20 और ₹100 के नोट आम हैं. 2016 की नोटबंदी में ₹1,000 का नोट बंद कर दिया गया और ₹2,000 का नोट जारी हुआ. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के इतिहास में ₹10,000 का नोट (note) भी था? उस समय ₹10,000 की कीमत आज के ₹10 लाख से भी ज़्यादा थी. यह कहानी उसी नोट की है - उसे कब और किसने जारी किया, कितने समय चला और फिर क्यों बंद कर दिया गया. (Indian currency)
1938 में भारत जब ब्रिटिश शासन के अधीन था, तब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पहली बार 10,000 रुपये का नोट जारी किया. उस समय ये नोट आम जनता के लिए नहीं, बल्कि व्यापारियों, बड़े उद्योगपतियों और सरकारी लेन-देन के लिए था. इसका इस्तेमाल उन लोगों तक सीमित था, जिनकी आर्थिक पहुंच बहुत ऊंची थी. सोचिए, जब एक आम आदमी पूरे महीने 100 रुपये में गुज़ारा कर लेता था, तब 10,000 रुपये की कितनी अधिक वैल्यू रही होगी. ये नोट ब्रिटिश काल के डिज़ाइन के साथ आया था, जिसमें किंग जॉर्ज VI की तस्वीर और अन्य अंग्रेज़ी प्रतीक बने होते थे. 1946 में अंग्रेजी हुकूमत ने इसे बंद कर दिया था. 1947 में भारत एक आजाद देश बन चुका था. (Indian currency latest update)
आजादी के बाद 10,000 के नया नोट-
आजादी के बाद, 1954 में भारतीय पहचान वाले बड़े मूल्य के नोट फिर से जारी किए गए. इन पर संभवतः अशोक स्तंभ या कृषि संबंधी चिह्न थे. इनका मुख्य उद्देश्य बैंकों और बड़ी संस्थाओं के बीच बड़ी रकम का लेन-देन आसान बनाना था. उस समय डिजिटल (Digital) लेन-देन नहीं था, इसलिए लाखों रुपये के भुगतान के लिए भारी गड्डियों की बजाय एक या दो नोट ही पर्याप्त होते थे, जिससे सुविधा होती थी.
लेकिन यह नोट जितना बड़ा था, उतना ही बड़ा इसके दुरुपयोग का खतरा भी था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद और फिर 1970 के दशक में जब काले धन की चर्चा जोरों पर थी, तब सरकारों को लगा कि इतने बड़े नोट का इस्तेमाल गलत हाथों में ज्यादा हो रहा है. 1978 में मोरारजी देसाई की अगुआई वाली जनता पार्टी की सरकार ने 1,000, 5,000 और 10,000 के नोटों को एक साथ बंद कर दिया था, क्योंकि इससे ब्लैक मनी को खपाने और छिपाने में मदद मिल रही थी.
सरकार का कहना था कि इतने बड़े नोट आम आदमी की ज़रूरत नहीं हैं, बल्कि इन्हें अमीर लोग अपनी काली कमाई छुपाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने कानून लाकर इन नोटों को अमान्य घोषित कर दिया. अगर किसी के पास ये नोट थे, तो उसे बैंक में जमा कराने के लिए कुछ ही दिनों की मोहलत दी गई.
आम जनता को नहीं पड़ा कोई फर्क-
साल 1978 में 10,000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. यह फैसला चौंकाने वाला हो सकता है, लेकिन इसका आम जनता पर खास असर नहीं पड़ा क्योंकि ये नोट पहले से ही बहुत कम चलन में थे. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, कुल मुद्रा का बहुत छोटा हिस्सा ही इन बड़े नोटों में था. इस कदम को लेकर काफी बहस हुई: कुछ लोगों ने इसे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाला बताया, तो कुछ ने इसे सिर्फ दिखावा माना.
आज 10,000 रुपये का नोट हमारे लिए एक ऐतिहासिक याद्दाश्त बन चुका है. ये नोट अब सिर्फ संग्रहकर्ताओं की चीज बन चुका है. अगर आज भी किसी के पास 10,000 रुपये का नोट होगा तो नीलामी में उसकी कीमत ही लाखों में होगी.
1978 के बाद क्या हुआ-
1978 के बाद से 10,000 रुपये के नोट प्रचलन में नहीं हैं, क्योंकि RBI ने छोटे नोटों को प्राथमिकता दी. 2016 में, मोदी सरकार ने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया, जिससे बड़े पैमाने पर लोग उन्हें बदलने के लिए कतारों में लगे. इसके बाद 10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2,000 रुपये के नए नोट जारी किए गए. यह कदम नकदी रहित लेनदेन को बढ़ावा देने और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए उठाया गया था.