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Sahara Group : स्कूटर पर नमकीन बेचने वाले ने अरबों-खरबों का कारोबार, जानिए सुब्रत रॉय की पूरी कहानी

Sahara Group : आज हम आपको अपनी इस खबर में सुब्रत रॉय के सहारा ग्रुप को खड़ा करने की कहानी बताने जा रहे है कि आखिर कैसे स्कूटर पर नमकीन बेचने वाले इस शख्स ने अरबों-खरबों का कारोबार शुरू कर दिया है। आइए नीचे खबर में जानते है इनके जीवन की पूरा कहानी...
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Sahara Group : स्कूटर पर नमकीन बेचने वाले ने अरबों-खरबों का कारोबार, जानिए सुब्रत रॉय की पूरी कहानी

HR Breaking News, Digital Desk- सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय का 75 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. सुब्रत रॉय के सहारा ग्रुप को खड़ा करने की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. सुब्रत रॉय कभी स्कूटर पर नमकीन बेचने का काम करते थे. गली-गली सामान बेचने से शुरू हुआ उनका ये सफर सहारा ग्रुप में तब्दील हुआ.

एक समय ये ग्रुप देश की सबसे बड़ी प्राइवेट एयरलाइंस कंपनी से लेकर हॉकी और क्रिकेट की टीम का मुख्य स्पॉन्सर होता था. सहारा ग्रुप का कारोबार को-ऑपरेटिव फाइनेंस कंपनी से लेकर रीयल एस्टेट, डी2सी एफएमसीजी और मीडिया सेक्टर तक फैला है. इस ग्रुप के इतिहास में एक ऐसा दौर भी आया जब देश के करोड़ों लोगों ने 10-20 रुपए रोजाना जमा करके सहारा में अपना खाता खोला.

सहारा ऐसे बना देश का दूसरा सबसे बड़ा एम्प्लॉयर-

सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय ने साल 1978 में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर स्कूटर पर नमकीन बेचने का काम शुरु किया. लेकिन किसे पता था कि एक दिन यही शख्स सहारा नाम को दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का एंपायर बना देगा. लोगों से 10-20 रुपए रोज जमा करवाकर सुब्रत रॉय ने भारत के फाइनेंस सेक्टर के लिए एकदम नई मिसाल पेश की. लोगों को उनकी छोटी-छोटी बचत पर अच्छा रिटर्न मिला. लोगों से जुटाए पैसों से दूसरे कारोबार खड़े किए.

सहारा के इतिहास में वो दौर भी आया जब सहारा ग्रुप रेलवे के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा एम्प्लॉयर बन गया. ऑफिस और फील्ड को मिलाकर सहारा के अंब्रेला तले काम करने वाले एम्प्लॉइज की संख्या 12 लाख तक पहुंच गई. कोई भी प्राइवेट कंपनी आज तक देश में ये आंकड़ा नहीं छू पाई है.

1978 में चिटफंड कंपनी से बनाई पहचान-

सुब्रत रॉय ने नमकीन बेचने के बाद 1978 में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर चिटफंड कंपनी शुरू की. यही कंपनी बाद में सहारा का अनोखा को-ऑपरेटिव फाइनेंस बिजनेस बना. एक कमरे में दो कुर्सी और एक मेज के साथ शुरू हुई ये कंपनी देखते ही देखते पूरे देश में पॉपुलर हो गई. ये शहर दर शहर और गांव दर गांव पहुंच बढ़ाती गई. मध्यम वर्ग से लेकर निचले तबके लोगों ने सहारा पर पूरा भरोसा जताया और सहारा के पास पैसों का एक बड़ा पूल जमा होता गया.

नो लिमिट बिजनेस मॉडल बना USP-

सुब्रत रॉय के सहारा फाइनेंस मॉडल को गरीब और मध्यम वर्ग ने हाथों हाथ लेना शुरु किया. कंपनी की सबसे बड़ी यूएसपी थी कि जिसके पास जितना भी पैसा है वो अपने खाते में जमा कर सकता है. उनके इस मॉडल ने फाइनेंशियल इंक्लूजन की एक नई परिभाषा तय की. इस ‘नो मिनिमम लिमिट’ डिपॉजिट की वजह से गरीब से गरीब आदमी भी सहारा में खाता खुलवाने लगा.

इन सेक्टर्स में फैला था सहारा का कारोबार-

सहारा ग्रुप की शुरुआत भले को-ऑपरेटिव फाइनेंस से हुई, लेकिन सुब्रत रॉय का विजन काफी बड़ा था. सहारा ग्रुप ने स्पोर्ट्स टीम को स्पॉन्सर करना शुरू किया. साथ में ही सहारा ग्रुप ने एयरलाइंस सेक्टर में भी हाथ आजमाया, हालांकि बाद में उस बिजनेस को बेच दिया. इसके अलावा सहारा ग्रुप का बिजनेस रीयल एस्टेट सेक्टर, टाउनशिप बनाने, मीडिया और एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, एजुकेशन, होटल इंडस्ट्री, इलेक्ट्रिक व्हीकल, डी2सी एफएमसीजी और टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टर तक फैला हुआ है.

सेबी के साथ विवाद ने पहुंचाया नुकसान-

सहारा ग्रुप की समस्या तब शुरू हुई, जब सेबी ने उसे धन की हेर-फेर के मामले में दबोच लिया. इसके चलते सुब्रत रॉय को सुप्रीम कोर्ट में कार्रवाई का सामना करना पड़ा और 2 साल से भी ज्यादा वक्त जेल में काटना पड़ा. इसी के साथ सहारा के पतन की दास्तान लिखनी शुरू हो गई.