home page

UP News : दुनिया के सबसे अमीरों की लिस्ट में शामिल हुए यूपी के ये 2 शख्स

UP News : हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक आपको बता दें कि ग्लोबल रिच लिस्ट में यूपी के दो उद्योगपतियों को जगह मिली है। कानपुर के रहने वाले घड़ी साबुन के मालिक मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी दुनिया के 1,632वें और 2,279वें रईस हैं। आइए नीचे खबर में जान लेते है इनके बिजनेस के बारे में। 
 | 

HR Breaking News, Digital Desk-  अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन संस्था हुरुन की ग्लोबल रिच लिस्ट में यूपी के दो उद्योगपतियों को जगह मिली है। कानपुर के रहने वाले घड़ी साबुन के मालिक मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी दुनिया के 1,632वें और 2,279वें रईस हैं। दोनों की कुल संपत्ति 3.7 अरब डालर ( लगभग 308 अरब रुपये) है।

एक साल में उनकी कुल संपत्ति करीब दोगुना हो गई। ये रुतबा उन्होंने अपनी मेहनत से महज 36 साल में बनाया है। इस सूची में टेस्ला के एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बने हैं। भारत के मुकेश अंबानी दुनिया के दसवें स्थान पर हैं।

दुनिया की सबसे अमीर शख्सियतों की फेहरिस्त में यूपी के दो उद्योगपतियों ने भी जगह बनाई है। दोनों आरएसपीएल ग्रुप के संस्थापक हैं। घड़ी साबुन वाले मुरली बाबू दुनिया के अमीरों की लिस्ट में 1632वें नंबर पर काबिज हैं। उनकी कुल संपत्ति 2.2 अरब डालर (लगभग 183 अरब रुपये) है। इसी तरह उनके भाई बिमल ज्ञानचंदानी दुनिया के 2279वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। उनकी कुल संपत्ति 1.5 अरब डालर (लगभग 125 अरब रुपये) है।

गौरतलब है कि पिछले वर्ष की ग्लोबल रिचलिस्ट में मुरली बाबू की रैंक 2,451वीं थी। उन्होंने इस बार 819 रैंक की लंबी छलांग मारी है। महज एक साल में उनकी संपत्ति करीब दोगुना हो गई है। इस वर्ष उनकी कुल संपत्ति 183 अरब रुपये है जबकि पिछले यह वर्ष 108 अरब रुपये थी।

दुनिया में इस साल 167 नए अरबपति जुड़े। बिमल ज्ञानचंदानी भी पहली बार दुनिया के रईसों की सूची में सीधे 125 अरब रुपये के साथ शामिल हुए हैं। अब विश्व में कुल अरबपतियों की संख्या 3,279 हो गई है। भारत 271 अरबपतियों के साथ तीसरे स्थान पर है। वहीं, भारत के 94 उद्योगपति इस साल सूची से बाहर भी हो गए।

बता दें कि वर्ष 1987 में कानपुर में मुरलीधर और बिमल ज्ञानचंदानी ने घड़ी साबुन की नींव रखी थी। तब इसका नाम श्री महादेव सोप इंडस्ट्री था। घड़ी साबुन बनाकर दोनों भाई पैदल घरों, मोहल्लों और दुकानों में पहुंचाते और जो पैसा आता उससे अपने परिवार का पेट भरते थे।