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पंजाब के किसानों ने बनाई आंदोलन की रणनीति, महिलाओं को लामबंद करने में जुटे संगठन

किसान आंदोलन की आगे की रणनीति बनाने के लिए कुंडली बॉर्डर पर रविवार को पंजाब के किसान संगठनों की बैठक हुई जिसमें सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन के तरीके पर विचार किया गया। पंजाब के किसान संगठन अपना फैसला अब संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में रखेंगे। इधर, पंजाब में किसान आंदोलन को
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किसान आंदोलन की आगे की रणनीति बनाने के लिए कुंडली बॉर्डर पर रविवार को पंजाब के किसान संगठनों की बैठक हुई जिसमें सरकार पर दबाव बनाने के लिए आंदोलन के तरीके पर विचार किया गया। पंजाब के किसान संगठन अपना फैसला अब संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में रखेंगे।

इधर, पंजाब में किसान आंदोलन को गति देने के लिए अब महिलाओं का समर्थन जुटाने में किसान संगठन जुट गए हैं। भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) ने मोगा में चेतना मार्च निकाल कर समर्थन जुटाया। आठ मार्च को मोगा से दिल्ली के लिए महिलाओं का एक काफिला रवाना किया जाएगा। वहीं कनाडा में भी किसानों के समर्थन में पंजाब मूल के लोगों ने प्रदर्शन किया।

जींद के खटकड़ टोल प्लाजा पर सर्वधर्म सभा आयोजित की गई। इसमें सभी धर्मों के लोगों ने अपने-अपने तरीके से पूजा की और भाईचारे का संदेश दिया। वहीं झज्जर के डीघल गांव में टोल प्लाजा पर भी किसानों का धरना जारी है। इधर, पंजाब से दो रेलगाड़ियों से सैकड़ों किसान रविवार को टीकरी बॉर्डर पर पहुंचे। सभा में दिल्ली की जेल से जमानत पर छूटकर आए पंजाब के पांच किसानों को सम्मानित किया गया। इसके अलावा रेवाड़ी के खेड़ा बॉर्डर पर सैकड़ों महिलाएं पंजाब से पहुंचीं।

कनाडा में भी विरोध, पंजाब मूल के लोगों ने किया प्रदर्शन
चंडीगढ़। मुक्तसर में कृषि कानूनों के विरोध में कनाडा में बसने वाले पंजाबी भी उतर आए हैं। कनाडा के टोरंटो शहर में हरमन कौर गिल के नेतृत्व में पंजाबियों ने प्रदर्शन किया। मूल रूप से मुक्तसर के गांव दोदा निवासी हरमन कौर गिल ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को कुचलने की नीतियां अपना रही है। उन्होंने केंद्र सरकार से इन कानूनों को रद्द करने की मांग दोहराई।

आंदोलन में किसान, बाजार हुए सुनसान
सुनाम ऊधम सिंह वाला (संगरूर) में किसान आंदोलन का असर कारोबार पर पड़ रहा है। हर गांव से सैकड़ों किसान दिल्ली गए हुए हैं। इसके अलावा पंजाब में स्थानीय स्तर पर हो रहे आंदोलनों में भी किसान अपने परिवारों के साथ भाग ले रहे हैं। गांवों में व्यापक स्तर पर होने वाले धार्मिक व साझा आयोजनों का दायरा भी सीमित हो चुका है। अधिकांश किसान परिवार अब जरूरी वस्तुओं की खरीदारी तक ही सीमित हो गए हैं और आंदोलन में लगातार भाग लेने से वह बाजारों से दूर हो गए हैं। इस कारण थोक से लेकर खुदरा कारोबार पर असर पड़ रहा है।