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Success Story : 12वीं में फेल होने के बाद करने लगा मजदूरी, अब बना प्रोफेसर

Success Story : अकसर आपने सुना होगा कि जो लोग बूरे वक्त में हार नही मानते वो एक दिन उच्चाईयां हासिल कर लेते है, कुछ ऐसी ही कहानी आशु सिंह की है जो 12वीं में फेल होने के बाद करने लगा मजदूरी, अब बना प्रोफेसर, आइए खबर में जानते है इनके बारे में विस्तार से।

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HR Breaking News (ब्यूरो)। कहते हैं कि किसी पायदान पर मिली असफलता (failure at the rank) किसी के लिए बाधा, तो किसी के लिए आगे बढ़ने की ऊर्जा देने वाली होती है. ऐसी ही ऊर्जा के साथ चलने वाले एक दिन इतिहास रचते हैं. राजस्‍थान के बाड़मेर में इन दिनों ऐसे ही एक युवक के चर्चे हैं, जो 12वीं कक्षा की परीक्षा में तो एक मर्तबा फेल होने के बाद अपनी पढ़ाई के पथ पर कुछ ऐसे दौड़ा कि बीते दिनों आई हिंदी साहित्य के कॉलेज लेक्चरर परीक्षा में खुद का नाम पूरे राज्य में दूसरे पायदान पर लिख दिया.

निराशा और असफलता ने कदम-कदम पर बाड़मेर जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर खारा गांव निवासी आशु सिंह राठौड़ की परीक्षा ली, लेकिन उन्‍होंने धैर्य और मेहनत का रास्ता नहीं छोड़ा. उन्होंने गलतियों से सीखा और प्रयास जारी रखा. फिर वो दिन भी आया जब सफलता और शोहरत उनके जीवन में खुशियां लेकर आई. आशु सिंह(Ashu Singh) ने हिंदी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का सपना साकार किया है.

 पिता दिव्यांग तो भाई भी रहता है बीमार, लेकिन…


पिता की दिव्यांगता और इकलौते भाई की मानसिक अस्वस्थता (Mental illness of only brother) के चलते कई तरह की मुश्किलों को देखने वाले आशु सिंह स्कूली शिक्षा के शिक्षक बनने के बाद कॉलेज लेक्चरर की तैयारी में जुट गए. उन्‍होंने राजस्थान प्रशासनिक परीक्षा में चार मर्तबा असफल होने के बाद भी अपना हौसला टूटने नहीं दिया. हिंदी साहित्य जैसे कठिन विषय में उन्होंने राज्य भर में दूसरी पायदान हासिल किया है. आशु सिंह की इस सफलता के बाद उनके घर पर बधाई देने वालो का तांता लग गया है. जबकि आशु सिंह का कहना है कि पढ़ाई को ही लक्ष्य मानकर आगे की तैयारी जारी रखी और अब असिस्टेंट प्रोफेसर बना हूं. इससे पहले 2012 में वरिष्ठ अध्यापक, 2013 में पुलिस उप निरीक्षक और 2015 में स्कूल व्याख्याता में चयन हो चुका है.

फेल हुए तो मजदूरी भी करने लगे


आशु सिंह ने साल 2005 में उच्च माध्यमिक परीक्षा साइंस वर्ग में फेल होने के बाद महाराष्ट्र और गुजरात में जाकर मजदूरी करने लगे. इसके बाद परिजनों और दोस्तों की समझाइश के बाद फिर से परीक्षा देकर बारहवीं पास की. इसके बाद स्नातक भी बहुत कम अंक के साथ पास किया. वहीं, असिस्टेंट प्रोफेसर बने आशु सिंह का कहना है कि परिवार का पूरा साथ मिला, जिसकी बदौलत आज इस मुकाम पर पहुंच पाया हूं.