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Success Story : सीनियर ऑफिसर ने मारा था ताना फिर इस लेडी अफसर ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनकर ही लिया दम

आज के समय में महिलाओं को पुरूषो के बराबर अधिकार मिल रहे हैं लेकिन फिर भी कई जगहों पर महिलाओं को पुरूषों वाले काम करने से रोका जाता है। ऐसा ही हुआ है DSP शाहिदा परवीन के साथ। जिन्हें अपने सीनियर ऑफिसर ने बोला ये लड़कियों वाला काम नहीं है और फिर जो हुआ गर्व से भर देने वाला था।

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Success Story : सीनियर ऑफिसर ने मारा था ताना फिर इस लेडी अफसर ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनकर ही लिया दम

HR Breaking News, Digital Desk- एक ही पद पर तैनात महिला और पुरुष को देखकर लगता है दोनों के पास ओहदा बराबर है. लेकिन हर शख्स का सफर अलग है. पुरुष जितनी पीछे से आकर उस मुकाम पर होता है, महिला उससे कई गुना ज्यादा लंबा और मुश्किल सफर तय कर के वहां आई होती है. वहां आने के बाद भी उसे पुरुष से कम आंका जाता है. एक ही ड्यूटी पर तैनात महिला और पुरुष का काम अलग होगा. ऐसा ही लंबा, बड़ी दूर का सफर तय किया है DSP शाहिदा परवीन ने.


शाहिदा जम्मू से हैं. वे अपने परिवार के 6 बच्चों में सबसे छोटी बेटी हैं. शाहिदा के सिर से पिता का साया तब उठ गया, जब वे 4 बरस की बच्ची थी. मां ने बहुत प्यार से पाला. शाहिदा की मां ने उन्हें, उनके भाइयों की तरह पढ़ाया. पढ़ाई के बाद उन्होंने प्राइवेट स्कूल में टीचर की जॉब की. अपने घर की सबसे छोटी बच्ची शाहिदा बड़ी हो गईं. नौकरी करने लगीं. लेकिन उनका मन टीचिंग में नहीं लगा. 

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शाहिदा पुलिस एग्‍जाम क्‍वालिफाई करने के लिए फिजिकल ट्रेनिंग की खातिर सुबह 4 बजे उठ जाया करती थीं. सुबह सुबह रनिंग के लिए घर से जाना, हर दिन बाहर निकलना, लोगों की बातें सुनना मुश्किल होता. फोर्स ज्‍वाइन करने के बाद लोगों का नजरिया बदला. वक्त कट गया. शाहिदा का फोकस अपनी ड्यूटी पर हो गया. 


शाहिदा ने 1995 में सर्विस ज्‍वाइन की, तब उनकी भर्ती सब इंस्‍पेक्‍टर के तौर पर हुई थी. इसके बाद वह पुलिस में भर्ती हुईं. स्‍पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) की कमांडो रहते हुए 1997 से 2002 के बीच राजौरी और पुंछ जिलों में बहुत से आतंकवादियों से टक्कर ली. मीडिया रिपोर्टस बताती हैं कि शाहिदा ने कई आतंकियों को मार गिराया, जिसके बाद उनकी पहचान एनकाउंटर स्‍पेशलिस्‍ट के तौर पर बनी. 

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शाहिदा पुरुषों के दबदबे वाला क्षेत्र में काम करती थी. वहां तब फील्‍ड ड्यूटी में महिलाओं को तैनात नहीं किया जाता है. उनके साथ बहुत बार ऐसा हुआ सीनियर ऑफिसर उन्‍हें ऑपरेशनों में जाने के लिए नहीं कहते. लेकिन ऑपरेशन से पहले एक्शन के लिए मुश्किल से मिलने वाली सारी जानकारी जुटाने का काम वे करतीं. उनसे कहा जाता था, 'तुम इनफॉरमेशन लाओ उस पर एक्‍ट करेंगे. तुम्‍हें कोई खतरा नहीं है


शाहिदा जब पहली बार दो-तीन महीने में इनफॉरमेशन लाने में सफल हुईं तो उन्होंने सीनियर को इसे पास नहीं किया. वे अपनी टीम के साथ चल दीं.' उनका पहला एनकाउंटर नाकाम साबित हुआ था. जिसकी वजह समर्पित टीम नहीं होना रही. कुछ सीनियर ऑफिसर गौरवांवित हुए. किसी और सीनियर ऑफिसर ने बोला- ये क्‍या लड़कियों का काम है? मर्दों के काम में हाथ डालोगी तो ऐसा ही होगा. सीनियर ऑफिसर की बातें शाहिदा को खलीं. इसके बाद वे जब भी मैदान में उतरीं, पूरी तैयारी के साथ. उन्होंने बहुत से आतंकवादियों का खात्मा किया, उनके काम करने की लगन का नतीजा ये है कि आज वे अनकाउंटर स्पेशलिस्ट के नाम से जानी जाती हैं.