home page

Success Story : बाल्टी में रसगुल्ले बेचने वाले ने 5 हजार रुपये में खड़ा किया 2500 करोड़ का साम्राज्य

Lala Kedarnath Agarwal Success Story : आज हम आपको बताने जा रहे है बीकानेर के संस्थापक लाला केदारनाथ अग्रवाल के बारे में जो कभी बाल्टी में डालकर रसगुल्ले बेचने का काम करते थे, फिर 5 हजार रुपये में खड़ा किया 2500 करोड़ का साम्राज्य, आइए खबर में जानते है उनके बारे में विस्तार से।

 | 

HR Breaking News, Digital Desk - शुरुआत में काकाजी बाल्टी में रसगुल्ले भरकर और कागज की पुड़िया में बीकानेरी भुजिया और नमकीन बांधकर बेचते थे। दिन भर में करीब पांच रुपये की कमाई होती थी। जिसमें वह बहुत खुश हो जाते थे।


लगता है जैसे कल की ही बात हो... जब मैं पांच-छह साल पहले देश-विदेश में मशहूर 'बीकानेरवाला' ब्रांड के संस्थापक लाला केदारनाथ अग्रवाल (Lala Kedarnath Agarwal) उर्फ काकाजी (86) से उनके करोल बाग वाले घर पर मिला था। मुझे भूख नहीं थी फिर भी 'अतिथि देवो भव:' को साकार करते हुए खुद काकाजी ने मुझे एक-एक बाइट तोड़कर खाना खिलाया था। डाइनिंग टेबल पर ही उनसे बाल्टी में पांच रुपये के रसगुल्ले बेचने से लेकर 'बीकानेरवाला' के 2500 करोड़ रुपये से अधिक के सफर के बारे में बातचीत हुई थी।


 

बेहद सरल और मृदुल था स्वभाव

अब जबकि सोमवार को काकाजी का शरीर पूरा होने के बाद वह हमारे बीच नहीं हैं, तब उनकी एक-एक बात ऐसे याद आ रही है जैसे यह कल की ही बात हो। इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वह बेहद सरल और मृदुल स्वभाव(simple and mild nature person) के थे। डाइनिंग टेबल पर खाने के साथ-साथ काकाजी से हलके-फुलके अंदाज में हुई बातचीत में उन्होंने बीकानेरवाला के पूरे सफर के बारे में बताया था।

बीकानेर से कोलकाता और मुंबई होते हुए दिल्ली आए

बतौर काकाजी 1955 में वह राजस्थान के बीकानेर से अपने बड़े भाई सत्यनारायण अग्रवाल (Satyanarayan Agarwal) के साथ कोलकाता और मुंबई से होते हुए दिल्ली आए थे। यहां उनका कोई ठौर-ठिकाना नहीं था। किसी जानकार के माध्यम से पुरानी दिल्ली में संतलाल खेमका धर्मशाला में दोनों भाई ठहरे थे। शुरू में परांठे वाली गली में फिर 1956 में नई सड़क पर एक अलमारी किराए पर मिली।

दिल्ली में सबसे पहली दुकान 1962 में मोती बाजार में हुई। इसके बाद 1972 में करोल बाग में दुकान खरीदी जो अभी तक चल रही है। आज 'बीकानेरवाला' और 'बीकानो' के देश-विदेश में 200 से अधिक आउटलेट हैं।

बाल्टी में भरकर बेचते थे रसगुल्ले

काकाजी ने बताया था कि शुरुआत में वह बाल्टी में रसगुल्ले भरकर और कागज की पुड़िया में बीकानेरी भुजिया और नमकीन बांधकर बेचते थे। दिन भर में करीब पांच रुपये की कमाई होती थी। जिसमें वह बहुत खुश हो जाते थे। पांच रुपये की यह कमाई आज 2500 करोड़ रुपये से भी अधिक की टर्नओवर के रूप में पहुंच गई है। उनके इतनी जल्दी हिट होने के पीछे का भी एक बड़ा कारण दिवाली रही।

1955 में जब दोनों भाई दिल्ली आए थे, तब कुछ दिन बाद ही दिवाली थी। पुरानी दिल्ली में उनके रसगुल्ले पहले से ही पसंद किए जाने लगे थे, लेकिन दिवाली की बिक्री ने उन्हें सुपरहिट कर दिया।

रसगुल्लों की बिक्री पर करनी पड़ी राशनिंग

हाल यह हो गया कि रसगुल्लों की बिक्री (sale of rasgullas) पर राशनिंग करनी पड़ी। एक ग्राहक को एक बार में 10 से अधिक रसगुल्ले नहीं बेचते थे, नहीं तो और ग्राहकों को रसगुल्ले नहीं मिल पा रहे थे। यह भी बता दें कि आज के बीकानेरवाला ब्रांड का नाम 1955 में BBB रखा गया था। जिसे अगले साल ही बड़े भाई और स्थानीय लोगों की सलाह पर बदलकर बीकानेरवाला कर दिया गया। फिर तब से आज तक यही ब्रांड चल रहा है।

काफी बड़ा है परिवार

परिवार में तीन बेटे और तीन बेटियां हैं। सभी शादीशुदा हैं। बेटों में सबसे बड़े राधे मोहन अग्रवाल (63), नवरत्न अग्रवाल (59) और सबसे छोटे रमेश अग्रवाल (56) हैं। नवरत्न अग्रवाल और काकाजी के पोते रोहित अग्रवाल बताते हैं कि कोरोना काल में भी काकाजी एकदम स्वस्थ रहे थे। उनका ऑक्सीजन लेवल हम सबसे अच्छा रहता था। वह कभी भी तनाव में नहीं रहते थे। यही नहीं जब वह करीब 65 साल के थे तब वह लोग दुबई, सिंगापुर और थाइलैंड टूर पर गए थे।

जहां उन्होंने पैराग्लाइडिंग के लिए भी कहा था। वह पूरे परिवार को एक ही धागे में बांधने वाले जादूगर थे। उनके जाने से हमारे लिए तो एक युग का अंत हो गया। पूरा परिवार पिता काकाजी और मां नौरती देवी के संस्कारों पर ही चलता है।