मरने से एक दिन पहले सर छोटूराम किसानों को दे गए थे एक बड़ी सौगात

9 जनवरी , 1945 को सुबह 11:15 बजे गार्डन टाउन निवास पर चौधरी छोटूराम का हार्ट अटैक से निधन हो गया । शाम 4 बजे उनके शव को लाहौर से ऐम्ब्युलन्स बस से रोहतक ले जाया गया । अगले दिन 10 जनवरी को सुबह आठ बजे पंजाब के प्रीमियर की ओर से भेंट किए हुए हल और तलवार के निशान वाले यूनियनिस्ट पार्टी के झंडे और रोहतक कांग्रेस की तरफ़ से भेंट किए हुए राष्ट्रीय झंडे से लिपटा हुआ उनका शरीर जुलूस के साथ जाट कॉलेज , रोहतक में पहुँचाया गया , दोपहर दो बजे दाह संस्कार किया गया ।उनके दाग़ पर हज़ारों की संख्या में किसान इकट्ठा हुए , सबकी ज़ुबान पर एक ही बात थी , म्हारा राजा मर गया ।
लाहौर में चौधरी छोटूराम की मृत्यु की ख़बर लगते ही सचिवालय , हाई कोर्ट , ज़िला कोर्ट की एक दिन के लिए छुट्टी कर दी गई । पूरे पंजाब प्रांत में शोक की लहर दौड़ गई ।
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सरदार कपूर सिंह , सचिव कांग्रेस विधानसभा पार्टी ने उन्हें श्रधांजलि देते हुए कहा – सर छोटूराम के निधन से ज़मींदारों ने अपना परम उत्तम मित्र खो दिया । उन्होंने ज़मींदारों को उनके महत्व का अनुभव कराया ।
मौलाना मोहम्मद यासीन , अध्यक्ष , पंजाब कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन ने कहा – आगे पढ़ने के लिए अनेकों नवयुवकों की सर छोटूराम ने सहायता की और विधवाओं के हित के लिए आर्थिक सहायता देकर मूल्यवान सेवा की ।
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नवाब मुज़फ़्फ़र खान , सदस्य , लोकसेवा आयोग , पंजाब तथा पच्छिमोत्तर सीमा प्रांत – सर छोटूराम के निधन से पंजाब ने एक महान पंजाबी खो दिया । सर छोटूराम दृढ़ विश्वास के व्यक्ति थे । वह ग़रीबों व दलितों की सेवा के आदर्श के ईलावा किसी से प्यार न करते थे ।
सी०राजगोपालचार्या – सर छोटूराम के निधन से हमारे बीच से एक गतिशील व्यक्ति चला गया । सर छोटूराम के उद्देश्य ही बड़े नहीं थे बल्कि वे उन्हें प्राप्त करना भी जानते थे । उनके निधन से पंजाब बहुत ग़रीब हो गया ।
सर छोटूराम की याद में जाट कॉलेज , रोहतक में संगमरमर के पत्थर से उनकी समाधि बनाई गई है । जिसके लिए उस समय (जनवरी , 1945 में) 11,500 रु इकट्ठा किए गए थे ।
अपने अंतिम दिनों में सर छोटूराम पंजाब में बढ़ती संप्रदायिकता को रोकने के लिए देहात में ज़मींदारा लीग को मज़बूत करने के लिए दिन में तीन तीन सभाए करते । कट्टरपंथियों के प्रॉपगैंडा को रोकने के लिए उन्होंने एक दैनिक समाचार पत्र शुरू करने की योजना बनाई थी जिसके लिए उन्होंने धन जुटाना शुरू कर दिया था ।और विभाजनकारी साम्प्रदायिक ताक़तों को रोकने की अपनी मुहीम में वो कामयाब भी हो रहे थे पर अफ़सोस कि अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और आख़िर नो जनवरी को वह इस दुनिया से अलविदा हो गए । अख़बारों ने लिखा था कि सर छोटूराम की मृत्यु से विभाजनकारी ताक़तों को नया जीवन मिला है ।
किसान सर छोटूराम के दिल में इतना गहरा बसता था कि इस दुनिया से रुख़्सत होने से एक दिन पहले , 8 जनवरी को पंजाब के किसानों को भाखड़ा बाँध की फ़ाइल पर दस्तखत कर अपनी आख़री सौग़ात दे गए ।
चौधरी छोटूराम ने सन् 1938 में लायलपुर में एक सभा में कहा था , पंजाब के किसानों को जो रास्ता मैंने दिखाया है अगर ये उस पर चलेंगे तो हमेशा उनका राज रहेगा । ऐसी ही बात सन् 1939 में उन्होंने पानीपत में कही थी कि ज़मींदार इस देश के शासक होंगें । यह बात उन्होंने आज से अस्सी साल पहले कही थी और आज उनके जाने के 75 साल बाद दिल्ली और देश में चल रहे किसान आंदोलन से ये उम्मीद जग रही है कि इस देश पर ज़मींदारों अर्थात किसानों का राज होगा । आज किसान दिल्ली को चारों तरफ़ से जिन मंडियों , एपीएमसी ऐक्ट को बचाने के लिए घेरें हैं यह भी सर छोटूराम की देन है । जुलाई, 1938 में सर छोटूराम ने लाहौर असेम्ब्ली में एपीएम बिल पेश किया था तथा इसके ईलावा तीन बिल और पेश किए थे , जिन्हें पंजाब के इतिहास में गोल्डन बिल्ज़ के नाम से जाना जाता है । सर छोटूराम कहते थे कि ए भोले किसान ! मेरी दो बात ले मान , एक बोलना सीख ले , दुजा दुश्मन को ले पहचान । आज सर छोटूराम का चहेता ज़मींदार बोलना सीख गया है और दुश्मन को पहचाना भी सीख गया है , इसीलिए अपने हक़ के लिए सर्द रातों में भी दिल्ली की फिरनी पर डटा हुआ है ।
- लेख: हवासिंह सांगवान
