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मी टाइम (ME TIME) : खुद को रीचार्ज और स्ट्रेस फ्री करने के लिए मी टाइम है जरूरी, महिलाओं में इसकी सबसे ज्यादा कमी

HR BREAKING NEWS. मी टाइम(ME TIME) : परिवार में पुरुष भले अपने शौक, बचपन के दोस्त और आदतों के लिए समय निकाल लें, महिलाएं इसमें पीछे ही रह जाती हैं। सच पूछिए तो खुद के लिए समय निकालना सैल्फिशनेस का कोई साइन नहीं है। खुद को खुश रखकर ही हम अपनों में खुशी बिखेर सकते
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मी टाइम (ME TIME) : खुद को रीचार्ज और स्ट्रेस फ्री करने के लिए मी टाइम है जरूरी, महिलाओं में इसकी सबसे ज्यादा कमी

HR BREAKING NEWS. मी टाइम(ME TIME) : परिवार में पुरुष भले अपने शौक, बचपन के दोस्त और आदतों के लिए समय निकाल लें, महिलाएं इसमें पीछे ही रह जाती हैं। सच पूछिए तो खुद के लिए समय निकालना सैल्फिशनेस का कोई साइन नहीं है। खुद को खुश रखकर ही हम अपनों में खुशी बिखेर सकते हैं। मां अभी नहीं आ सकती, बच्चों के Exams चल रहे हैं, ऑफिस में टारगेट दिया गया है, अभी तो नॉवेल पढ़ने के अपने शौक को ताक पर रखा हुआ है, सहेलियों के साथ मस्ती का भी समय नहीं है, हसबैंड अभी अपने प्रोजेक्ट में बिजी हैं, उनके लिए घर में मुस्तैद रहना होता है..। इस तरह की बातें आपको अपनी सी ही लग रही होंगी। अपना जॉब, अपना कॅरियर, अपना घर, अपने बच्चे, अपनी जिम्मेदारियां.. सुबह आंख खुलने से लेकर रात बेड पर जाने तक इन्हीं सब में ही तो उलझी रह जाती हैं आप।

डेडलाइन, टारगेट, एचीवमेंट, घर की व्यवस्था, बच्चों की परीक्षाएं, उनका कॅरियर, पेरेंट्स की हेल्थ.. इन सबके बीच कहीं कुछ छूट तो नहीं रहा है आपका? कभी एकांत के पलों में पूछिए अपने दिल से कि इन पलों में क्या है, जो केवल आपका है यानी आपका मी टाइम(ME TIME)। जवाब में ईमानदारी झलके… इसलिए कुछ पलों के लिए समर्पण का चश्मा जरूर उतार लीजिएगा।

अपने लिए खुशी के पल जुटाने की चाह सभी की होती है, वो चाहे पुरुष हो या फिर महिला। लेकिन कई बार महिलाओं को घर-परिवार, करियर की तमाम जिम्मेदारियों के चलते खुद के लिए फुर्सत नहीं मिल पाती। हो सकता है कि आप शायद इसकी अहमियत न समझती हों। पर विज्ञान भी मानता है कि अगर आप खुद के लिए वक्त नहीं निकालती हैं, तो निगेटिव सोच बढ़ती जाती है।

ऐसे में बेहतर मेंटल हेल्थ, एनर्जी और स्ट्रेस फ्री होने के लिए ‘मी-टाइम (ME TIME)‘ यानी खुद के साथ समय बिताना बेहद फायदेमंद है। वेरिजोन मीडिया के एक शोध के मुताबिक युवा भारतीय महिलाएं हर दिन अपने स्मार्टफोन पर करीब 145 मिनट बिताती हैं। यह वक्त उनके खुद के लिए होता है।

मनोवैज्ञानिक भी मी टाइम को मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों के लिए लाभदायक मानते हैं। इससे न सिर्फ हम खुद को लेकर किसी उधेड़बुन से अपने आप को मुक्त रखते हैं, बल्कि यह हमारे दिमाग को तरोताजा भी करता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इससे एकाग्रता बढ़ती है। हम अधिक तार्किक बनते हैं। घर-बाहर बेहतर तरीके से समायोजित हो पाते हैं, हम खुश रहते हैं और मन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।

मी टाइम (ME TIME) : खुद को रीचार्ज और स्ट्रेस फ्री करने के लिए मी टाइम है जरूरी, महिलाओं में इसकी सबसे ज्यादा कमी

क्यों जरूरी है मी टाइम (ME TIME)?
साइकोलॉजिस्ट डॉ. योगिता बताती हैं कि उनके पास काउंसलिंग के लिए कई ऐसी महिलाएं आती हैं, जो अपने जीवन और रोजमर्रा के काम और झगड़ों को लेकर इतनी परेशान रहती हैं कि तनाव की शिकार हो जाती हैं। नतीजतन, उनमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा काफी ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए मी-टाइम (ME TIME) या शी-टाइम (SHE TIME) की अहमियत समझना जरूरी है।

जैसे एक महिला अपनी नन्ही सी जान से लेकर फैमिली मेंबर्स का ख्याल रखती है, उसी तरह खुद का भी उतना ही ख्याल रखना चाहिए। इसलिए जिम्मेदारियों से बाहर निकलकर खुद से मुलाकात करें। यह मेंटल हेल्थ और रिश्तों के लिए बेहद अहम है। इससे न सिर्फ दिमाग तरोताजा होता है, बल्कि, एकाग्रता भी बढ़ती है। खुश होने के साथ ही इससे मन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। ऐसा करना आपके मन और शरीर को तो रिलैक्स करता ही है, साथ ही अगले दिन पूरी ऊर्जा के साथ फिर से काम करने का भी प्रोत्साहन मिलता है।

ये कहती है मिशिगन यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट :
मिशिगन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक 29% महिलाओं ने कहा कि पार्टनर की ओर से उन्हें पर्याप्त मी टाइम या प्राइवेसी नहीं दी जाती। हर सप्ताह फैमिली में मदर को जहां महज 25 घंटे ‘मी टाइम’ मिलता हैं, वहीं पिता के हिस्से 28 घंटे आते हैं। इससे साबित होता है कि मैरिड लाइफ की असफलता में मी टाइम या प्राइवेसी में कमी की भूमिका पर्सनल रिलेशनशिप से भी बड़ी है।

जिस तरह आपको खुद से कनेक्ट होने के लिए मी टाइम चाहिए, उसी तरह बच्चे को मी टाइम देना चाहिए। इससे बच्चे दूसरों से इमोशनली कनेक्ट होंगे। अगर बच्चा सारा दिन सिर्फ आपके साथ समय बिताता है तो वो पूरी तरह से आप पर इमोशनली डिपेंडेट हो जाएगा, जोकि सही नहीं। इसलिए खुद के लिए मी टाइम निकालें और बच्चे को कुछ वक्त के लिए खुद से दूर रखें। ये वक्त आपको खुद को ‘चार्ज’ करने का बेहतर मौका दे सकता है।

मी टाइम (ME TIME) : खुद को रीचार्ज और स्ट्रेस फ्री करने के लिए मी टाइम है जरूरी, महिलाओं में इसकी सबसे ज्यादा कमी

लेखकों की भी मी टाइम को लेकर ये है राय :

कुछ राइटर्स ने भी मी टाइम के बारे में अपनी किताबों में लिखा है। मी टाइम पर अपनी किताब टाइम फॉर मी: 365 डेली स्ट्रेटजीज फॉर ए मदर्स सेल्फ केयर में राइटर मिया रेडरिक ने कई सुझाव दिए हैं। रेडरिक के मुताबिक जब आप अपने बच्चों के लिए हेल्दी नाश्ता तैयार करती हैं तब खुद के लिए भी कुछ हेल्दी स्नैक्स तैयार करना या पैक करना आपका मी टाइम है। बेटी को क्लासिकल डांस सिखाने ले जा रही हैं तो क्लास खत्म होने के इंतजार की बजाय खुद भी अपने पसंदीदा सालसा डांस के स्टेप सीख लें तो यह आपका खुद का पल होगा। बेशक आपका पसंदीदा कुछ भी हो सकता है.. यह पहचान तो आपको ही करनी होगी। वही होगा आपका मी टाइम।वक्त निकालने के लिए जरूरी है कि क्यों न नियत समय से आधे घंटे पहले उठ जाएं और काम से पहले मी टाइम जीकर रिचार्ज हो जाएं। मी टाइम के लिए किसी तरह की हिचक या अपराध भाव न पालें। जरूरत पड़े तो इस दौरान बेहिचक दरवाजे पर लिख दें- डोंट डिस्टर्ब। मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप जैसे गैजेट्स को कुछ समय के लिए ऑफ कर देना भी मी टाइम के लिए जरूरी है।