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lifestyle : बुढ़ापे में जिद पर अड़ जाएं बुजुर्ग, ऐसे करें बुढ़ापे की जिद को प्यार से ‘डिकोड'

आज के समय में बुज़ुर्गों को समझने की बजाय उन्हें वृद्ध आश्रमों में भेज दिया जाता है, पर क्या ये सही है, बुज़ुर्गों का ऐसा व्यवहार करने के पीछे एक आध नहीं बल्कि बहुत सारे कारण होते हैं, उनकी इस हालत से कैसे निपटें, इसके बारे में आज चर्चा करते हैं 

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बुढ़ापे में जिद पर अड़ जाएं बुजुर्ग

HR Breaking News, New Delhi : बुजुर्गों की देखरेख करना, कई बार एक चुनौतीपूर्ण काम हो जाता है। समय के साथ हमारी उम्र बढ़ती है, लेकिन हर कोई इस स्थिति का सामना शांति और धैैर्य के साथ नहीं करता। उम्र बढ़ने के साथ बुजुर्गों को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। इस उम्र में वे छोटे बच्चों की तरह संवेदनशील हो जाते हैं। बात-बात पर रूठना,  गुस्सा और जिद करना उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हो जाता है।

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अक्सर देखा जाता है कि वह बच्चों की जरा-सी भी अनदेखी सहन नहीं कर पाते। कभी वे बहुत खुश रहते हैं, तो कभी छोटी-सी बात का बुरा मान जाते हैं। तो कभी अपनी मन की बात न होने पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं। ऐसे में एक वयस्क बच्चे के लिए उनकी देखभाल करने का काम कठिन हो जाता है। 

मुंबई की 35 वर्षीय प्रिया (बदला हुआ नाम) ऐसी ही कठिनाई से गुजर रही हैं। प्रिया अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान हैं। प्रिया के अलावा उनकी दो बहनें और हैं। शादी के बाद प्रिया मुंबई में रहने लगीं। संयोग से जिस साल प्रिया की शादी हुई, उसी साल उनकी दोनों छोटी बहनें भी पढ़ाई के लिए घर से दूर दूसरे शहर आ गईं। ऐसे में उनके माता-पिता अकेले रह गए। अकेलेपन से जूझते माता-पिता को धीरे-धीरे कई तरह की बीमारियों ने घेरना शुरू कर दिया। बढ़ते हुए दिनों के साथ उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है। 

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प्रिया की समस्या यह है कि उनके वृद्ध माता-पिता उनके या उनकी बहनों के साथ रहने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, वे हर रोज फोन पर अपनी तमाम समस्याओं की लंबी लिस्ट सुनाते हैं। वे बताती हैं कि कैसे घर के काम से लेकर बाहर तक, हर जगह माता-पिता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए वह कभी समय को कोसते हैं, तो कभी अपनी किस्मत को। लेकिन साथ आकर रहने को तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं कि उनका मन वहां नहीं लगता। प्रिया के लिए उन्हें संभालना बहुत मुश्किल है। बार-बार माता-पिता के पास जाकर रहना संभव नहीं है। और वे साथ रहने को तैयार नहीं। इस कारण प्रिया काफी तनाव में रहती हैं। 

 

प्रिया अकेली ऐसी महिला नहीं, जो ऐसी परेशानी से जूझ रही हैं। प्रिया जैसे हजारों लोग हैं, जो इस समस्या का सामना कर रहे हैं। बुजुर्गों के इस व्यवहार की वजह से वह नहीं समझ पा रही हैं कि उन्हें किस प्रकार संभाला जाए, ताकि माता-पिता को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और बच्चे भी सुकून से रह सकें।

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विशेषज्ञों की मानें, तो बुजुर्गों के चिड़चिड़े होने का एक बड़ा कारण अकेलापन भी है। अकेलेपन से अवसाद, तनाव, व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी जैसी मानसिक समस्याएं होती हैं। ये समस्याएं केवल उन तक ही सीमित नहीं रहती हैं, बल्कि उनकी देखरेख करने वालों को भी उतना ही प्रभावित करती हैं।

सुनैना (बदला हुआ नाम) पुणे में रहती हैं और एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती हैं। कुछ साल पहले ही उनके पिता की मृत्यु हुई। पिता के जाने के बाद सुनैना की मां उनके साथ ही रहती हैं। जब सुनैना ऑफिस जाती हैं, तो उनके जाने के बाद उनकी मां को घर में अकेले ही रहना पड़ता है। नौ से पांच तक का समय, तो उनकी मां किसी तरह निकाल लेती हैं। लेकिन घड़ी में पांच बजते ही सुनैना के फोन की घंटी बजने लगती है।

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उनकी मां उन्हें जल्दी घर आने के लिए जोर देने लगती हैं। ऑफिस के काम से अगर देर हो जाए, तो सुनैना की मां के गुस्से का ठिकाना नहीं रहता। कई बार तो वे उनसे बात करना बंद कर देती हैं। कई-कई दिनों तक चुप रहती हैं। कुछ पूछने पर रोने लगती हैं। सुनैना का काम ऐसा है कि ऑफिस में देर-सबेर हो ही जाती है, जिसका खामियाजा उन्हें घर वापस जाकर भुगतना पड़ता है। 

बढ़ती उम्र के साथ चलने-फिरने, देखने-सुनने और याददाश्त की समस्या होना आम बात है। यह सब किसी भी व्यक्ति के लिए पीड़ा का कारण बन सकती हैं। जब व्यक्ति की उम्र बढ़ रही हो, वह शारीरिक रूप से कमजोर हो रहा हो और जब उसे कोई बेहतर समाधान नहीं दिखता, तो उसके अंदर की यह सि्थतियां क्रोध और गुस्से के रूप में बाहर आती हैं। दिल्ली की रूपाली की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। रूपाली की शादी काफी आधुनिक परिवार में हुई। कुछ साल सब ठीक चला। किसी चीज की रोक-टोक नहीं थी। 

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सास-ससुर भी अपनी जिंदगी में खुश थे। उन्हें घूमने-फिरने का काफी शौक था और वे दो-चार महीने में कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते। लेकिन कुछ साल पहले रूपाली के ससुर को दिल का दौरा पड़ा और सब कुछ बदल गया। रूपाली के ससुर ने बिस्तर पकड़ लिया। चलने-फिरने तक के लिए दूसरों पर निर्भर हो गए। सास की जिंदगी भी अब ससुर तक ही सीमित होकर रह गई। अब उनके शांत स्वभाव वाले सास-ससुर न केवल बात-बात पर गुस्सा करते हैं, बल्कि अब उन्हें रूपाली के कहीं आने-जाने पर भी आपत्ति होती है। 

रूपाली के बाहर जाते ही वह गुस्सा करने का कोई न कोई बहाना निकाल लेते हैं। रूपाली के लिए यह सब संभालना काफी मुश्किल हो रहा है। माता-पिता को ढलती उम्र में होने वाली तकलीफों को देखकर हर किसी को दुख होता है। उनकी देखभाल करने वाले बच्चे यह देखकर कभी-कभी उदास, तो कभी परेशान हो जाते हैं। कभी खुद को दोषी महसूस करने लगते हैं। कभी उनकी चिंता सताती है, तो कभी गुस्सा आता है। यहां तक कि कई बार, तो वे अपने दिल में नाराजगी भी पालने लगते हैं। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो कोशिश कीजिए कि आप उनकी बातों को दिल पर न लें।

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विशेषज्ञों का कहना है, ऐसी स्थिति से निपटने का मूलमंत्र स्थिति को स्वीकार करना है। आपको यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि उन्हें आपकी जरूरत है और आपको पूरी सहनशीलता के साथ उनकी देखभाल करनी है। जैसे-जैसे माता-पिता की उम्र ढलती है, उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारियां निभाना बहुत पेचीदा साबित हो सकता है। हर किसी की एक अलग समस्या हो सकती है। और इन समस्याओं से निपटने का तरीका भी अलग ही होगा। जहां तक वृद्ध माता-पिता की देखभाल की बात है, तो कोई एक ऐसा निश्चित तरीका नहीं है, जो सभी के लिए प्रभावकारी हो। लेकिन कुछ बुनियादी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। 

नियमित हो संवाद 
बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या है, उपेक्षा और अकेलापन। कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि घर में बुजुर्गों के लिए सुविधाओं की तो कोई कमी नहीं होती, लेकिन घर के लोगों के पास वृद्ध माता-पिता के लिए वक्त नहीं होता। विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप अपने घर के बड़े-बुजुर्गों के लिए समय निकालें। घर के बड़े-बुजुर्ग जब भी कोई बात कहें, उनकी बात की उपेक्षा करने की बजाय, उसे ध्यानपूर्वक सुनें और उत्तर दें। उनके साथ नियमित संवाद जरूर करें। इससे उन्हें आपके करीब होने का अहसास होगा।

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सक्रियता और सोच
बुजुर्गों को घर की चारदीवारी तक सीमित रखने के बजाए, उन्हें सक्रिय और फिट बनाए रखने में सहायता करनी चाहिए। उनकी दिनचर्या में व्यायाम और योग शामिल करना चाहिए। इससे न केवल शारीरिक बीमारियां दूर होंगी, बल्कि अकेलापन और अवसाद भी कम होगा। डॉक्टर 60 से ज्यादा उम्र के लोगों को रोजाना 30 मिनट व्यायाम करने की सलाह देते हैं। इसमें टहलना, जॉगिंग, योग और कसरत शामिल हैं। 

घर में दें जिम्मेदारी 
अगर घर के कामों में आप बड़े-बुजुर्गों को शामिल करेंगे, तो उनके अंदर एक अलग प्रकार का आत्मविश्वास देखने को मिलेगा। बच्चों को स्कूल छोड़ने या लाने की जिम्मेदारी या सब्जी लाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाए, तो उनमें सहभागिता और लोगों से जुड़े होने का अहसास पैदा होगा है। 

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सेहत भी जरूरी
वृद्ध माता-पिता की सेहत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसमें कोई लापरवाही न बरतें। कमजोरी महसूस होना, भूलने की शिकायत, रास्ता भूल जाना और चलने-बैठने में संतुलन खो देना, जैसे कुछ जरूरी शारीरिक और मानसिक बदलाव के लिए उन पर नजर बनाए रखें। केवल शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक बीमारी पर भी ध्यान रखने की जरूरत है। खासकर अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारी होने पर उन्हें पल-पल एक गाइड और केयरटेकर की जरूरत होती है।

उनसे लें सलाह
आप जिनसे प्यार करते हैं, उनसे उनकी वित्तीय जरूरत और बीमा संबंधी मामलों में खुलकर बातचीत करें। अगर आप भी कोई निवेश करना चाहते हैं, तो बुजुर्गों का दिया अनुभव काफी काम आएगा। इससे उनको लगेगा कि आप उनकी अहमियत समझते हैं। 

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डॉ राजेश पांडे
मनोचिकित्सक कहते हैं कि किसी तरह की बीमारी या फिर चेंज ऑफ पावर यानी अपने हाथों से सत्ता किसी और को देना भी अकेलापन से संबंधित हो सकता है। इन सबसे निपटने के लिए सबसे पहले हमारा मौजूदा चीजों और समस्यों को स्वीकार करना जरूरी है, फिर ही हम आगे समाधान निकाल पाएंगे। अकेलापन दूर करने के लिए बुजुर्गों के साथ संवाद करना बेहद जरूरी है।

भले ही आप उन्हें दिन में 10 से 30 मिनट का समय ही क्यों न दें, लेकिन नियमित रूप से दें। और साथ ही पीयर स्पोर्ट यानी कि अपने ही उम्र के लोगों के साथ ही मिलना-जुलना बेहद जरूरी है। कई बार वे हमसे जो नहीं कह पाते, वे अपने हम उम्र लोगों के साथ बांट सकते हैं। बुजुर्गों की बीमारी से निपटने के लिए हमें पहले से तैयार रहना चाहिए। जैसे परिवार के सदस्यों को बीमारी के संबंध में पता हो। डॉक्टर का नंबर सही जगह पर लिखा हो। इससे अफरा-तफरी और तनाव से बचा जा सकता है। चेंज ऑफ पावर से निपटने के लिए बुजुर्गों को घर की बातों और काम में शामिल करें। इससे उनमें किसी चीज को खोने का डर कम होता है। 

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सम्मान है सार 
-बुजुर्गों का सम्मान करें। उन्हें कभी भी किसी बात या व्यवहार से ठेस नहीं पहुंचाएं।
-उनके अकेलेपन को दूर करने के लिए नए दोस्त बनाने दें और उनकी सामाजिक सक्रियता को बढ़ाने में मदद करें।
-उन्हें स्वेच्छा से काम करने के लिए प्रेरित करें। शोध से पता चला है कि जो बुजुर्ग अपने मन और स्वेच्छा से काम करते हैं, वे ज्यादा खुश और सेहतमंद रहते हैं।
-उनके अनुभव और कहानी को ध्यान से सुनें। हो सकता है, उनके द्वारा सुनाई गई कहानी से आपको अपने जीवन की परेशानी को हल करने का सही जवाब मिल जाए। 
-उनके गुस्से और विरोध को सहने की क्षमता रखें। कभी भी असहमति में बोले गए आपके स्वर इतने कड़े न हों कि उनके दिल को ठेस पहुंच जाए।

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