वालिग लड़का-लड़की अपनी मर्जी से कर सकते है शादी, माँ-बाप भी नहीं जता सकते आपत्ति

एचआर ब्रेकिंग न्यूज़। देश के संविधान के अनुसार देश हर एक नागरिक को स्वतंत्र रूप से अपने फैसले लेने का अधिकार है। चाहे फिर वो अपना करियर चुनने की बात हो, किसी भी धर्म को अपनाने की बात हो या फिर शादी के लिए जीवनसाथी चुनना हो। किसी भी अन्य व्यक्ति को इस फैसले में बोलने का कोई हक़ नहीं है चाहे फिर वो हमारे माँ-बाप ही क्यों न हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि, दो वालिग लोगों को अपना जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म से हो। कोर्ट इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं और वालिग लोगों को यह अधिकार देता है कि, वह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुन सकता है।
दरअसल, एक महिला शिफा हसन और उसके साथी ने एक याचिका दायर की थी। लड़की मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखती है जबकि लड़का हिंदू है। दायर याचिका में बताया गया कि, दोनों एक दूसरे से प्रेम करते है और साथ में रहते हैं। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट पीठ जस्टिस मनोज गुप्ता और दीपक वर्मा ने इस मामले में फैसला सुनाया है। उन्होंने दोनों लोगों को सुरक्षा देने की बात कही है और साथ ही कहा है कि, इस मामले में माता- पिता कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
माता पिता भी नहीं जता सकते आपत्ति
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि, “अगर कोई भी वालिग लड़का और लड़की एक दूसरे से प्यार करते है और शादी करना चाहते हैं तो इस मामले में उनके माता पिता भी आपत्ति नहीं जता सकते, फिर चाहे वो किसी भी धर्म से तालुक रखता हो।
याचिका में लड़की ने हिन्दू धर्म अपनाने का किया आवेदन
शिफा हसन और उसके साथी द्वारा याचिका दायर की गई थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिफा ने अपने हिन्दू साथी से शादी करने और हिन्दू धर्म अपनाने की बात कही है। साथ ही महिला ने बताया कि, हिन्दू धर्म अपनाने के लिए वह आवेदन भी कर चुकी है। कोर्ट ने आदेश देते हुए यह सुनिश्चित करने को कहा कि माता- पिता और किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा दोनों को परेशान न किया जाए।
सूत्रों से पता चला है कि, लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू। दोनों शादी करना चाहते है। इस बात से लड़के की माँ को कोई दिक्कत नहीं है जबकि पिता जरा भी सहमत नहीं हैं, वे इस शादी को नहीं होने देना चाहते। वहीं दूसरी और लड़की के माँ-बाप इस शादी से नाखुश है और यह शादी नहीं होने देना चाहते। इस सब के चलते दोनों प्रेमियों ने कोर्ट की तरफ रुख किया। उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खट-खटाया और याचिका दायर की जिसमे कहा कि उनके माँ-बाप से उन्हें खतरा है।
इससे पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए है। 2020 में ऐसा ही एक केस सामने आया था, जिसमे एक पिता ने अपनी बेटी के मुस्लिम धर्म अपनाकार शादी करने के चलते कोर्ट में याचिका दायर की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि, वालिग लड़का-लड़की को अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। दोनों वलिगों के फैसले में उनके परिवार वाले या कोई अन्य सदस्य दखल नहीं दे सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य भी इस मामले में कोई आपत्ति नहीं जता सकता।
लड़की के पिता का कहना था की, धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित है। इस तरह की शादी कानून की नज़र में वैध नहीं है। इस बात को खारिज करते हुए कोर्ट ने टिपण्णी की थी कि, कोई भी व्यक्ति जो बालिग़ है अपनी पसंद से शादी कर सकता है और उनकी पसंद पर आपत्ति जताने का हक किसी को नहीं है। यह स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है।