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किसानों के हित की बात कर सरकार द्वारा लागू की योजनाओं की कृषि वैज्ञानिक ने खोली पोल, तथ्य सहित किया पर्दाफाश

sudhir sheoran अंबाला। हरियाणा सरकार का पहली ही केबिनेट मीटिंग लिया गया फैसला ‘धान की पराल के समाधान के लिए सरकार डिकम्पोजर पर अनुदान देगी। लेकिन वैज्ञानिक इस फैसला को तकनीकी अज्ञानता से भरा फैसला बता रहे हैं। क्योंकि विज्ञानिक तौर पर डिकम्पोजर तकनीक को धान की पराली के समाधान के लिए किसी भी कृषि
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किसानों के हित की बात कर सरकार द्वारा लागू की योजनाओं की कृषि वैज्ञानिक ने खोली पोल, तथ्य सहित किया पर्दाफाश

sudhir sheoran

अंबाला। हरियाणा सरकार का पहली ही केबिनेट मीटिंग लिया गया फैसला ‘धान की पराल के समाधान के लिए सरकार डिकम्पोजर पर अनुदान देगी। लेकिन वैज्ञानिक इस फैसला को तकनीकी अज्ञानता से भरा फैसला बता रहे हैं। क्योंकि विज्ञानिक तौर पर डिकम्पोजर तकनीक को धान की पराली के समाधान के लिए किसी भी कृषि विश्वविधालय या भारतीय कृषि अनुशंधान परिषद ने कभी अनुमोदित नहीं कियाI

डा. वीरेंद्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान विज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संसथान का कहना है कि वैसे भी हरियाणा सरकार और इसका कृषि विभाग विज्ञानिक तौर पर असंभव और आमतौर अव्यवहारिक तकनीकों के प्रचार और प्रसार के लिये पहले से ही बदनाम रहा। जिसमें सरकारी और किसानों के धन और संसाधनों की बर्बादी होती रही हैञ

तकनीकी तौर पर इन अव्यवहारिक योजनाओं में प्रमुख है

गेंहू की खड़ी फसल में मार्च महीने में मूंग की बिजाई करना ये फैसला 2009 में लिया गया था। रेक्षिल से गेंहू की करनाल बट बीमारी का इलाज करना ये फैसला 2011 में लिया गया था। वहीं इस साल ‘धान नहीं बोये – मक्का बोये किसान’ अव्यवहारिक योजना की असफलता तो जगजाहिर है। जिसमें सैंकड़ों करोड़ रूपये सरकारी धन बर्बाद करके 50,000 हेक्टर भूमि पर वर्षा ऋतू में मक्का की बिजाई करवाई गई जो प्रदेश में हुई आधी वर्षा के बावजूद बारिश के पानी से खराब हो गई और प्रदेश के किसानों को लगभग 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ।

तकनीकी तौर वैसे भी बेक्टेरिया आधारित डिकम्पोजर तकनीक, किसान के खेत में धान की पराली को 15 दिनों में कम्पोस्ट में नहीं बदल सकती है। उसके लिए कई महीनों का समय चाहिए। लेकिन किसान के पास धान कटाई से गेंहू की समय पर बिजाई के लिए मात्र 15 दिन का समय होता हैI

सबसे बड़ी बात, डिकम्पोजर तकनीक की एक डोज मात्र 20 रुपये में आती है। जिसे 200 लीटर पानी और दो किलो सस्ते भाव का गुड़ डाल कर किसान भाई अपनी जरूरत के हिसाब से भविष्य में कितना भी बढ़ा सकते हैं। जैसे दूध से दही बनाने के खट्टे की तरह।   इसलिए सस्ती लोकप्रियता छोड़ कर सरकार को चाहिए की सरकारी अमले की भ्रष्ट और अव्यवहारिक योजनाओं को त्याग कर किसान हितेषी योजनाओं पर ध्यान दें।

जिनमे प्रमुख हैं

  • 1 बिचोलियो से किसान को बचाने के लिए फसल समर्थन मूल्य कानून बनाना (जिसकी सिफारिश  कृषि मूल्य आयोग ने खरीफ 2018 रिपोर्ट में की है।
  • 2 भूजल बचाने के लिए क़ानूनी तौर पर सीधी बिजाई धान को प्रोत्साहित करना।
  •  3 6000 रूपये प्रति एकड़ किसान सम्मान योजना देना (तेलंगाना की रायतू योजना की तर्ज पर)।
  • 4 किसानों को उचित मूल्य पर सरकारी माध्यम से फसल के उन्नत बीज, खाद और दवाइया आदि उपलब्ध कराना।
  • 5 समय पर किसानों की फसल बिक्री का भुगतान करवाना।
  • 6 खेत में धान की पराली को मिलाने और गेंहू की सीधी बिजाई के लिए सुपर सीडर उपलब्ध करवाना आदि।

सरकार को ये घटिया स्कीमें छोड़कर किसानों के हित वाली स्कीम लागू करनी चाहिए। साथ ही कोई भी योजना लागू करने से पहले उसे जांच परख लें। तभी कोई योजना लागू की जाए। सरकार सही योजना लागू करने की बजाए बेमतलब की योजना को किसानों पर थौपना चाहती है। सरकारी दफ्तर से घटिया योजना बनाकर लागू कर दी जाती है। ऐसे में बेचारा किसान पिस जाता है। न तो सरकार को कोई फक्र पड़ता न ही इन भ्रष्ट अधिकारियों को कोई फ्रक पड़ता।

डा. वीरेंद्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान विज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संसथान (ICAR-IARI), दिल्ली    

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