यूक्रेन युद्ध का गेंहू के भाव पर पड़ेगा असर, भाव में आ सकती है तेजी, पढ़िए पूरी रिपोर्ट
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से भारतीय निर्यातकों को फायदा
गेहूं का निर्यात इस साल रिकार्ड तोड़ होने वाला है
युद्ध की वजह से गेहूं के दाम भी बढ़ गए हैं
चीनी की निर्यात भी बढ़ा है
HR Breaking News, नई दिल्ली। विश्व बाजार में गेहूं के भाव में चल रही तेजी से घरेलू मंडियों में भी इसके भाव तेज बने हुए हैं। दिल्ली में मंगलवार को भी गेहूं की कीमतों में 20 से 25 रुपये की तेजी आकर भाव दिल्ली में उत्तर प्रदेश लाईन के गेहूं का भाव 2,425 रुपये, मध्य प्रदेश के गेहूं का भाव 2,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।
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इसी तरह से राजस्थान लाईन के गेहूं के भाव 2,425 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए जबकि इसकी दैनिक आवक 3,000 बोरियों की हुई। मंगलवार को शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड पर बेंचमार्क गेहूं वायदा का भाव बढ़कर 12.95 डॉलर प्रति बुशेल यानी भारतीय रुपये में करीब 3,600 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर निकल चुके हैं। हालांकि गुजरात और मध्य प्रदेश में गेहूं की नई फसल की आवक आरंभ हो चुकी है, तथा होली के बाद राजस्थान की मंडियों में भी नई फसल की आवक बढ़ेगी।
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हरियाणा और पंजाब में नए गेहूं की आवक अप्रैल के पहले सप्ताह में बढ़ेगी। व्यापारियों के अनुसार यूक्रेन के साथ जंग लंबी के चली तो फिर ब्लैक सी रीजन से गेहूं का निर्यात प्रभावित होगा, इसलिए कई आयातक देश भारतीय आयात कर सकते हैं। गेहूं निर्यात के मामले में रूस दुनिया का सबसे बड़ा और यूक्रेन तीसरा गेहूं निर्यातक देश है। फसल सीजन 2021-22 के दौरान रूस से 3.5 करोड़टन तथा यूक्रेन से 2.4 करोड़ टन गेहूं का निर्यात का अनुमान था, लेकिन इन दोनों देशों के बीच युद्ध की वजह से आपूर्ति बाधित हुई है,
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जिस कारण घरेलू बाजार में गेहूं के भाव में नई फसल की आवकों से पहले ही तेजी बन गई है। भारत गेहूं का दूसरा बड़ा उत्पादक है। मौजूदा समय में भारत के पास गेहूं की उपलब्धता भी पर्याप्त है, तथा आने वाली फसल का उत्पादन अनुमान भी ज्यादा है, जोकि निर्यात बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है।
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व्यापारियों के अनुसार इस साल देश से लगभग 70 लाख टन गेहूं का निर्यात होने का अनुमान है जिसमें से दिसंबर तक 50 लाख टन से ज्यादा का निर्यात हो भी चुका है। पहली फरवरी को केंद्रीय पूल में 282.73 लाख टन गेहूं का स्टॉक है जोकि तय मानकों बफर के मुकाबले ज्यादा है। चालू रबी सीजन में देश में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 11.32 करोड़ टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले रबी में इसका उत्पादन 10.95करोड़ टन का उत्पादन हुआ था।
फूड सेक्रेटरी ने बताया
केंद्र सरकार के फूड सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय ने बताया कि यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध के कारण वैश्विक कीमतों में उछाल के बाद भारत से गेहूं के निर्यात में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि देश से होने वाला कुल गेहूं निर्यात चालू वित्त वर्ष में अब तक 66 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर को छू चुका है। यह आंकड़ा बीते फरवरी के अंत में ही छुआ जा चुका है।
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भारत के लिए एक अवसर
उन्होंने कहा कि यह भारतीय निर्यातकों के लिए यह एक ‘अवसर’ है। क्योंकि गेहूं के अन्य वैश्विक उत्पादकों की तुलना में देश में गेहूं की नई फसल 15 मार्च से उपलब्ध हो जाएगी। इसलिए इस समय जो वैश्विक बाजार में गेहूंं की जो रिक्ति हुई है, उसे भारत भर सकता है। उल्लेखनीय है कि रूस और यूक्रेन मिलकर वैश्विक गेहूं आपूर्ति के लगभग एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं। उनकी गेहूं की फसल इस साल अगस्त और सितंबर में पकेगी। नतीजतन, वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी हैं और 24,000-25,000 रुपये प्रति टन के दायरे में चल रही हैं।
70 लाख टन निर्यात की उम्मीद
सुधांशु पांडेय ने बताया कि अब तक गेहूं का निर्यात वित्त वर्ष 2012-13 में हासिल किए गए 65 लाख टन के ऐतिहासिक उच्च स्तर को पार कर चुका है। उन्होंने बताया "अभी भी एक महीना बाकी है, आप इस साल लगभग 70 लाख टन से अधिक निर्यात की उम्मीद कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि यह भारतीय किसानों और निर्यात के लिए अच्छी खबर है।
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इस साल रिकार्ड तोड़ पैदावार
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत का गेहूं उत्पादन फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में 11 करोड़ 13.2 लाख टन के नए रिकॉर्ड को छूने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष में यह उत्पादन 10 करोड़ 95.9 लाख टन था। रबी की मुख्य फसल गेहूं 15 मार्च से बाजार में आने लगेगी। देश भर के सरकारी गोदामों में गेहूं का सरप्लस भंडार भी है।
चीनी का निर्यात भी बढ़ेगा
अन्य वस्तुओं के निर्यात के बारे में पूछे जाने पर, सचिव ने बताया कि मजबूत वैश्विक कीमतों के कारण चीनी निर्यात भी विपणन वर्ष 2021-22 (अक्टूबर-सितंबर) में 75 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष में 20 लाख टन के निर्यात से बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि भारतीय चीनी की मांग रूस-यूक्रेन संकट के कारण नहीं बल्कि वैश्विक बाजार में निर्यात के लिए चीनी की सीमित आपूर्ति होने के कारण बढ़ रही है, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय दरों में वृद्धि हुई है। खाद्य तेलों के मामले में, जिसके लिए भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है, पांडेय ने कहा, "हमारी स्थिति काफी आरामदायक है।"