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Employees Update - नेशनल पेंशन स्कीम से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने दिए अहम आदेश

नेशनल पेंशन स्कीम को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। जिसके तहत ये कहा गया है कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों का वेतन केवल इस आधार पर नहीं रोक सकती कि उन्होंने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत पंजीकरण का विकल्प नहीं चुना है।  

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Employees Update - नेशनल पेंशन स्कीम से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने दिए अहम आदेश

HR Breaking News, Digital Desk- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों (State Employees) का वेतन केवल इस आधार पर नहीं रोक सकती कि उन्होंने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (National Pension System) के तहत पंजीकरण का विकल्प नहीं चुना है.

इस संबंध में शासनादेश 16 दिसंबर, 2022 को जारी किया गया था. साथ ही पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि उसके अगले आदेश तक याचिकाकर्ताओं का वेतन ना रोका जाएगा क्योंकि इस मामले पर विचार करने की जरूरत है.

छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश-


यह आदेश जस्टिस पंकज भाटिया की पीठ ने योगेंद्र कुमार सागर और अन्य द्वारा दायर रिट याचिका पर पारित किया. बहस सुनने के पश्चात पीठ ने राज्य सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग के अधिवक्ताओं रणविजय सिंह और अजय कुमार को छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया.

16 दिसंबर के आदेश को मिली चुनौती-


याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के 16 दिसंबर, 2022 के उस शासनादेश को चुनौती दी है जिसमें एनपीएस नहीं अपनाने वाले शिक्षकों का वेतन रोकने का प्रावधान किया गया है. याचियों की ओर से दलील दी गई है कि शुरुआत में 28 मार्च, 2005 को एक अधिसूचना जारी करते हुए, एनपीएस उन कर्मचारियों के लिए अनिवार्य किया गया था.

 जिन्होंने एक अप्रैल, 2005 के बाद नियुक्ति प्राप्त की है और इसके पूर्व के कर्मचारियों के लिए यह स्वैच्छिक था. कहा जा रहा है कि याचियों ने एनपीएस को नहीं अपनाया है. यह भी कहा गया कि 16 दिसंबर, 2022 को सरकार द्वारा जारी शासनादेश में क्लॉज 3(5) के तहत यह प्रावधान कर दिया गया कि जिन कर्मचारियों ने एनपीएस नहीं अपनाया है और पीआरएएन में भी पंजीकरण नहीं किया है, वे वेतन के हकदार नहीं होंगे.

जानें- क्या दी गई है दलील-

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि इस प्रकार का राज्य सरकार का आदेश मनमाना है और किसी भी परिस्थिति में केवल इस आधार पर सरकार कर्मचारियों का वेतन नहीं रोक सकती है. प्रतिवादी के वकील को सुनने के बाद पीठ ने यह कहते हुए अंतरिम आदेश पारित किया कि इस मुद्दे पर अंतिम रूप से फैसला किया जाना है.

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