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Indian Railway - VRS लेने के एक दिन बाद ही बदला कर्मचारी का मन, अब कर रहा ये मांग

भारतीय रेलवे में 35 साल तक काम करने के बाद अपने वरिष्ठ अधिकारी से कहासुनी को लेकर 56 वर्षीय एक संभागीय ट्रेन नियंत्रक ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले लिया था। लेकिन, अब वह अपनी नौकरी वापस पाना चाहते हैं और यही अनुरोध लेकर उन्होंने कैट का रुख किया है। 
 
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HR Breaking News, Digital Desk- अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने पिछले साल जुलाई में रेल मंत्री का कार्यभार संभाला था। उसके बाद से रेलवे के कई सीनियर अधिकारी वीआरएस (VRS) ले चुके हैं। साथ ही कई सीनियर अधिकारियों को जबरन रिटायर किया गया है। इस बीच रेलवे से वीआरएस लेने वाले एक अधिकारी ने अपनी नौकरी वापस पाने के लिए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) का रुख किया है।

भारतीय रेलवे में 35 साल तक काम करने के बाद अपने वरिष्ठ अधिकारी से कहासुनी को लेकर 56 वर्षीय एक संभागीय ट्रेन नियंत्रक ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले लिया था। लेकिन, अब वह अपनी नौकरी वापस पाना चाहते हैं और यही अनुरोध लेकर उन्होंने कैट का रुख किया है।

दिनेश कपिल ने अपना वीआरएस आवेदन वापस लेने के लिए अपने विभाग को पत्र लिखा था, लेकिन उससे इनकार कर दिया गया। इसलिए उन्होंने कैट में अर्जी दी है और कहा है कि उनकी जगह लेने वाले अधिकारी को ऐसे महत्वपूर्ण पद पर पदोन्नत किए जाने से पहले और परिपक्व होने की जरूरत है।

उनके वीआरएस आवेदन के बाद नियंत्रण विभाग के प्रमुख का पद संभालने वाले उनके उत्तराधिकारी ज्ञान सिंह ने मार्च, 2021 में दिल्ली आने वाली विशेष सैन्य मालगाड़ी को जयपुर भेज दिया था। यह बेहद दुर्लभ भूल थी और इसे लेकर रेलवे की बहुत किरकिरी हुई थी।

क्यों वापस चाहिए नौकरी-


मौजूदा विवाद तीन नवंबर, 2022 का है जब कपिल की उनके वरिष्ठ अधिकारी वरिष्ठ संभागीय संचालन प्रबंधक कुलदीप मीणा से कहासुनी हो गई थी। कपिल का आरोप है कि मीणा ने उन्हें वीआरएस लेने के लिए उकसाया और उन्होंने तत्काल इसके लिए आवेदन दे दिया। इसके चार दिन बाद सात नवंबर को कपिल को पता चला कि मुख्य नियंत्रक ज्ञान सिंह ने उनकी जगह ले ली है और नियंत्रण विभाग के प्रमुख बन गए हैं।

कपिल ने कहा, ‘अगले ही दिन, आठ नवंबर को मैंने लिखित में अपना वीआरएस वापस लेने की इच्छा जताई क्योंकि सिंह की पदोन्नति मेरे लिए आश्चर्य की बात थी। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि ऐसे महत्वपूर्ण पद पर पदोन्नति से पहले उन्हें नियंत्रक की नौकरी के लिए और परिपक्व होने का समय दिया जाना चाहिए।’

संपर्क करने पर ज्ञान सिंह ने बात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें मीडिया से बातचीत करने का अधिकार नहीं है। रेलवे की तरफ से सिंह के खिलाफ पारित आदेश में कहा गया है कि सेना की विशेष मालगाड़ी को धौलपुर (राजस्थान) से तुगलकाबाद (दिल्ली) पहुंचना था, लेकिन भ्रम की स्थिति में उन्होंने उसे अलवर की ओर भेज दिया और वह मालगाड़ी जयपुर पहुंच गई। हालांकि, सिंह के सहकर्मियों ने उनका बचाव किया और कहा कि यह सिर्फ उनकी गलती नहीं है, बल्कि पूरी टीम की गलती है। उनका कहना है कि दुर्भाग्यवश सिंह उस टीम का हिस्सा थे।

रेलवे की दलील-


आगरा के संभागीय रेल प्रबंधक आनंद स्वरूप ने भी कपिल के आरोपों को खारिज किया और कहा, ‘दिनेश कपिल के खिलाफ गंभीर आरोप है और इसलिए हमने उनकी वीआरएस की अर्जी स्वीकार की है।’ हालांकि आरोपों के संबंध में सवाल करने पर स्वरूप ने जवाब देने से इनकार कर दिया। वहीं, वीआरएस की अर्जी वापस लेने संबंधी कपिल के अनुरोध के विपरीत संभाग ने उसे तत्काल स्वीकार कर लिया और 11 नवंबर को उन्हें लिखित में इसकी सूचना भी दे दी। कपिल ने इस फैसले के लिए 28 नवंबर को कैट का रुख किया।

कपिल के वकील नीलांश गौड़ का कहना है, ‘ट्रिब्यूनल ने 29 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए रेलवे को नोटिस जारी किया था और मामले में यथास्थिति बनाए रखने को कहा था। उन्होंने (रेलवे) अगली सुनवाई के दिन, 19 दिसंबर को कोई जवाब दाखिल नहीं किया। ट्रिब्यूनल ने अब अगली सुनवाई के लिए 14 फरवरी (2023) की तारीख तय की है। रेलवे ने अभी तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया है।’


जेब में वीआरएस-


वहीं, कपिल ने अपने जिन वरिष्ठ अधिकारी के साथ कहासुनी की बात कही है, उन्होंने (कुलदीप मीणा) कहा कि इस मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है। मीणा ने कहा, ‘हमने उनसे कुछ सूचनाएं मांगी थीं और उनका दायित्व बनता है कि वह हमारे आदेश का पालन करें। इसके विपरीत, उन्होंने (कपिल) कहा ‘मैं तो वीआरएस अपनी जेब में रख कर घूमता हूं। हमने उनसे (वीआरएस) लेने को कहा। अब उन्हें पछतावा हो रहा है।’ उन्होंने कहा कि कपिल अपनी अकड़ के कारण इस वक्त परेशानी में हैं।

वीआरएस योजना में कर्मचारी को नौकरी के बचे हुए साल के हिसाब से प्रति वर्ष दो माह के हिसाब से वेतन दिया जाता है।फंडामेंटल रूट (एफआर) के सेक्शन-56 (जे) के तहत सरकार किसी भी अधिकारी को नौकरी से निकाल सकती है। इस प्रक्रिया के तहत रिटायर किए गए अधिकारी को दो से तीन महीने का वेतन दिया जाता है। पेंशन व अन्य देय का लाभ भी दिया जाता है।