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Railway - ये है देश की सबसे पुरानी ट्रेन, अंग्रेजों ने चलाया, आज भी यात्री करते हैं सफर

आज हम बात कर रहे हैं देश के सबसे पुरानी एक्सप्रेस ट्रेन की। यह ट्रेन है पंजाब मेल। इसकी शुरूआत एक जून 1912 को हुई थी। तब से यह लगातार पटरी (Railway Track) पर दौड़ती रही है। आइए नीचे खबर में जानते है इस ट्रेन के बारे में विस्तार से जानकारी। 
 
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HR Breaking News, Digital Desk- यह देश की सबसे पुरानी ट्रेन (Oldest Train) है। इसकी उम्र इसी सप्ताह 110 साल की हुई है। आप कह सकते हैं कि यह तो बूढ़ी (Old) हो गई होगी। लेकिन इसकी चाल देख लें तो आप अभी भी इस पर फिदा हो जाएंगे। निर्जन, सुनसान रास्तों पर यह ऐसे 110 किलोमीटर की रफ्तार से फर्राटा भरती है कि लोगों के मुंह से बस यही निकलता है..बेमिसाल। आइए, हम बताते हैं इस ट्रेन (Punjab Mail Train) की पूरी कहानी.

एक जून 2012 से चल रही है-


इस ट्रेन की शुरूआत 110 साल पहले एक जून 1912 को हुई थी। उस समय देश में अंग्रेजों का राज था। उस समय यह मुंबई के बंदरगाह पर स्थित बलार्ड पायर मोल स्टेशन (Ballard Pier Mole) से अविभाजित भारत के पेशावर (Peshawar) के बीच चलती थी। तब यह अकेली ट्रेन थी जो कि पेशावर से लोगों को मुंबई तक पहुंचाती थी। तब इस ट्रेन को पंजाब लिमिटेड के नाम से जाना जाता था।


शुरू में सिर्फ अंग्रेज होते थे पैसेंजर-
शुरू में इसे केवल अंग्रेज अफसरों तथा ब्रिटिश शासन के कर्मचारियों के लिए चलाया गया था। लेकिन, सन 1930 में इसमें आम जनता के लिए भी डिब्बे जोड़ दिए गए। देखा जाए तो यह ट्रेन अंग्रेज अफसरों और उनके परिवार वालों के लिए बड़ी सहायक थी। वे इंग्लैंड से पानी के जहाज के जरिए तत्कालीन बंबई बंदरगाह तक आते थे। वहां से पंजाब मेल पर सवार हो कर दिल्ली और ब्रिटिश भारत के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर तक पहुचते थे। हालांकि, साल 1914 में इसे बंबई पोर्ट के स्टेशन से विक्टोरिया टर्मिनस Victoria Terminus स्टेशन शिफ्ट कर दिया गया। तबसे यह ट्रेन वहीं से पेशावर के लिए चलती थी।


1947 में घट गई दूरी-


साल 1947 में जब भारत को आजादी मिली तो साथ ही एक नए राष्ट्र पाकिस्तान का भी उदय हुआ। जब पाकिस्तान बना तो पेशावर पाकिस्तान में चला गया। इसके बाद पंजाब के फिरोजपुर से इसे बंबई के लिए चलाया जाने लगा। तब यह बंबई के Ballard Pier Mole station से पेशावर तक की 2496 किलोमीटर की दूरी 47 घंटे में तय करती थी। इसमें कुल छह डिब्बे थे। इनमें से तीन डिब्बों में 96 पैसेंजर बैठते थे। शेष तीन में एक डाक का डिब्बा जबकि दो में गार्ड और पार्सल होते थे।


कोयले के इंजन से तय होती थी दूरी-


शुरुआती दिनों में पंजाब मेल कोयले के इंजन से चलती थी। इसके डिब्बे लकड़ी से बने होते थे। आजादी से पहले यह पेशावर, लाहौर, अमृतसर, दिल्ली, आगरा, इटारसी के बीच 2496 किलोमीटर का सफर तय करती थी। रास्ते में इसके इंजन में कोयला और पानी भरा जाता था। साथ ही बीच बीच में गार्ड और ड्राइवर भी चेंज होते थे। उस समय यह देश की सबसे तेज चलने वाली गाड़ी मानी जाती थी।


1945 में लगाया गया एसी कोच-


पंजाब मेल ट्रेन में 1945 में पहली बार वातानुकूलित डिब्बे जोड़े गए। अभी इसमें एसी फ‌र्स्ट, एसी सेकेंड, एसी थर्ड के कुल आठ डिब्बे, 12 स्लीपर क्लास तथा चार जनरल क्लास के डिब्बे लगाए जाते हैं। यानि, इस ट्रेन में कुल कोचों की संख्या 24 होती है। अब यह ट्रेन मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल से फिरोजपुर कैंट स्टेशन तक जाती है। यह करीब 1930 किलोमीटर का सफर करीब 34 घंटे में पूरा करती है। पंजाब मेल प्रसिद्ध ट्रेन फ्रंटियर मेल से भी 16 साल पुरानी है।


अब जर्मन डिब्बों में पूरा होता है सफर-


शुरू में तो इस ट्रेन में जो डिब्बे लगे थे, वह इंग्लैंड से बन कर आए थे। जब बाद में रेलवे के डिब्बे यहीं मद्रास के इंटीगरल कोच फैक्ट्री में बनने लगे तो इसमें आईसीएफ कोच लगाए गए। अब इस ट्रेन में जर्मन तकनीक से बने एलएचबी डिब्बे लगा दिए गए हैं। एलएचबी कोच लग जाने से इस ट्रेन की स्पीड बढ़ाने में तो मदद मिली ही, पैसेंजर कंफर्ट के दृष्टिकोण से भी इसमें ज्यादा सुविधा है।