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Toll Tax- सूची हुई फाइनल, इन लोगों से नहीं वसूला जाएगा हाईवे पर टोल टैक्स

वाहन चालकों के लिए जरूरी खबर। अब इन लोगों से हाइवे पर नहीं वसूला जाएगा टोल टैक्स। आइए नीचे खबर में जानते है आखिर फाइनल सूची में किनका नाम। 
 
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Toll Tax- सूची हुई फाइनल, इन लोगों से नहीं वसूला जाएगा हाईवे पर टोल टैक्स

HR Breaking News, Digital Desk- अगर आपने कभी दिल्ली से लखनऊ तक की यात्रा अपनी निजी कार से की हैं तो आपको एक चीज जरूर अखरी होगी. वो यह कि इस करीब 500 किमी की दूरी के लिए वसूला जाने वाला करीब 1100 रुपये का टोल टैक्स. दरअसल, देश में एक्प्रेस वे और बेहतर सड़कों की जाल बिछाए जाने के साथ ही भारी टोल टैक्स का मुद्दा भी काफी अहम हो गया है.

मौजूदा समय में देश के करीब-करीब सभी एक्प्रेस वे और हाईवे पर टोल टैक्स वसूला जा रहा है. दिल्ली से लखनऊ तक के सफर में आपको तीन बार टोल टैक्स भरना होता है. पहला ग्रेटर नोएडा से आगरा के बीच जेपी एक्सप्रेस वे पर, उसके बाद आपको आगरा में एक टोल टैक्स देना होता है. फिर आपको आगरा से लखनऊ के लिए 302 किमी लंबे एक्सप्रेस वे लिए 600 रुपये का टैक्स देना होता है.

विडंबना यह है कि इन तरह के पूरे टोल टैक्स का भार केवल आम आदमी पर डाला जाता है. केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक मौजूदा समय में 25 तरह के वाहनों से कोई टोल टैक्स नहीं वसूला जाता. मजेदार बात यह है कि करीब एक दशक पहले तक केवल 9 श्रेणियों के वाहनों को टोल टैक्स से छूट प्राप्त थी जो आज बढ़कर 25 हो गई है.

इन्हें मिली है छूट-


इस सूची में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों से लेकर सांसद और जज-मजिस्ट्रेट सहित बड़े-बड़े अधिकारियों के नाम शामिल है.

 एक रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारी निजी यात्रा के दौरान भी टोल टैक्स का भुगतान नहीं करते. भारत दुनिया में संभवतः पहला लोकतांत्रित देश है जहां टोल टैक्स छूट पाने वालों की इतनी लंबी सूची है.

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2000 से 2010 के बीच केवल 9 ऐसी श्रेणियां थीं जिसके तहत लोगों को टोल टैक्स से छूट प्राप्त थी. इसमें रक्षा, पुलिस, फायर फाइटिंग, एंबुलेंस, शव वाहन, चुनिंदा राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारी, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद और विधायक शामिल थे. लेकिन आज यह श्रेणी बढ़कर 25 हो गई है. इसमें मजिस्ट्रेटों, सचिवों, विभिन्न विभागों के सचिवों, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों को शामिल किया गया है. इसके अलावा राज्य सरकारों की छूप दिए जाने वाले लोगों की अपनी सूची होती है.

अपारदर्शी है टोल का खेल-


दरअसल, भारत में टोल वसूलने वाली कंपनियों में बही-खाता में पारदर्शिता का अभाव है. पब्लिक को यह पता नहीं है कि उनके खाते कैसे मैंटेन किए जाते हैं. ऐसी तमाम रिपोर्ट आती है कि टोल टैक्स वसूलने वाली कंपनियां वहां से गुजरने वाले वाहनों की संख्या कम बताती हैं जिससे कि वे निर्धारित अवधि से अधिक समय तक टोल वसूल सकें.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आरटीआई के जरिए इकट्ठा किए गए डेटा से पता चलता है कि कई कंपनियों ने टोल कलेक्शन के जरिए सड़क निर्माण की लागत 5 से 7 सालों के भीतर निकाल लीं लेकिन उन्हें 20 वर्षों तक टोल वसूलने की अनुमति दी गई है. ऐसा मामलों को उजागर नहीं किए जाने की वजह से किया गया.

ताकतवर नौकरशाही-


वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक मीटिंग में टोल प्लाजा पर छूट प्राप्त श्रेणियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए ‘जीरो ट्रांजेक्शन’ RFID टैग का प्रस्ताव दिया गया था. इस टैग पर छूट प्राप्त लोगों के वाहनों पर लगाने का प्रस्ताव था, लेकिन इस पर बात आगे नहीं बढ़ी. रिपोर्ट्स में कहा गया कि नौकरशाही के दबाव में ऐसा नहीं किया गया.

टैक्स पर टैक्स का भुगतान करते हैं कार चालक-


भारत में एक कार रखना सरकार की नजर में हमेशा से विलासिता की चीज रही है. तभी तो कार मालिकों से टैक्ट पर टैक्स की वसूली की जाती है. एक समान्य कार मालिक देश में कम से कम चार तरह का टैक्स देता है. इसमें मोटर वाहन टैक्स, पैसेंजर एंड गुड्स टैक्स, वन टाइम रोड टैक्स और पेट्रोल-डीजल पर सेस.