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सुप्रीम कोर्ट फैसला : बिना तलाक किसी भी शादीशुदा के साथ रहना है क्राइम, Living Relationship को लेकर SC ने बताया ये नियम

एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये एलान किया है के के बिना तलाक लिए किसी शादी शुदा के साथ रहना क्राइम की कैटगरी में आएगा ओर इसके साथ ही SC ने लिव इन को लेकर ये भी कह दिया है 

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बिना शादी ऐसे रहना है क्राइम

HR Breaking News, New Delhi : इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि बिना तलाक के किसी अन्य पुरुष या स्त्री के साथ रहना लिव इन रिलेशनश‍िप नहीं क्राइम की कैटेगरी में आएगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसे मामलों में संबंध वैधानिक नहीं हो सकते हैं. आइए जानते हैं भारत में लिव-इन रिलेशनश‍िप को लेकर क्‍या कानून हैं. इन रि‍श्‍तों में कपल के बच्‍चों के क्‍या कानूनी अध‍िकार होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में अध‍िवक्‍ता अशोक अग्रवाल कहते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक युग में कामयाब साबित हो रहे हैं. बड़े शहरों और मेट्रो सिटीज में लिव-इन आम चलन में आ चुका है. इस रिश्‍ते में दो एडल्‍ट यानी 18 साल से ज्‍यादा की उम्र के वयस्‍क कानूनी तौर साथ में रह सकते हैं. देश में लाखों की तादाद में ऐसे जोड़े हैं जो बिना शादी के साथ में रह रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट स्‍पष्‍ट कर चुका है कि देश की विधायिका भी लिव इन रिलेशनशिप को वैध मानती है. सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने साल 2013 में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक गाइडलाइंस जारी की थी. इसमें कहा गया था कि लंबे समय से अपनी मर्जी से खुशहाल तरीके से रह रहे दो युवा लिवइन में रहने के लिए स्‍वतंत्र हैं. दोनों पार्टनर आर्थिक व अन्‍य संसाधन बांटने और शारीरिक संबंध बनाते हुए भी साथ रह सकते हैं. ये रिश्ता भी लिव इन ही कहलाएगा.
लिव इन र‍िश्‍तों में संपत्‍त‍ि के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में यह भी कहा कि अगर दो लोग लंबे समय से एक दूसरे के साथ रह रहे हैं और उनमें संबंध हैं, तो ऐसे में एक साथी की मौत के बाद दूसरे का उसकी संपत्ति पर पूरा हक होगा. यह फैसला जस्टिस एमवाय इकबाल और जस्टिस अमितावा रॉय की बेंच ने सुनाया था.


बेंच का कहना था कि लंबे समय तक साथ रहने पर यह मान लिया जाएगा कि दंपति शादीशुदा ही है. इसका विरोध करने वाले को यह साबित करना होगा कि जोड़ा कानूनी रूप से वैवाहित नहीं है. बेंच ने कहा कि जब एक पुरुष और स्त्री लंबे समय तक सहवास कर चुके हैं, तो यह बात साफ है कि कानून शादी के हक में है और उपपत्नीत्व के खिलाफ. हालांकि इसके खिलाफ स्पष्ट प्रमाण दे कर इसका खंडन किया जा सकता है. ऐसे में रिश्ते को कानूनी मान्यता से वंचित कराने की मंशा रखने वाले पर काफी बोझ होगा.
बता दें क‍ि भारत के कानून लिव-इन रिश्‍तों में पैदा हुए बच्‍चों के हक में हैं. कोर्ट इन रिश्‍तों में पैदा हुए बच्‍चों को लेकर स्‍पष्‍ट कह चुकी है कि लिव इन के कारण पैदा हुए बच्चों को नाजायज करार नहीं किया जाएगा. साथ ही इन बच्‍चों को बायोलिजकल फादर की संपत्‍त‍ि पर वैसा ही हक मिलेगा जो उसकी शादी से पैदा हुए बच्‍चों को मिलता है.