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Success Story - फेलियर से मिले सबक ने बदल दी पूरी जिंदगी, आज है आईएएस

आज हम आपको अपनी सक्सेस स्टोरी में ऐसे आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कहानी बताने जा रहे है। जो अपनी स्कूल शिक्षा के दौरान काफी बार फेल हुए है। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी मेहनत और लगन के चलते आज उन्होंने हासिल की है बड़ी कुर्सी। 
 
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फेलियर से मिले सबक ने बदल दी पूरी जिंदगी, आज है आईएएस

HR Breaking News, Digital Desk- जो 19 बार फेल हुआ, उसी ने RAS एग्जाम में 55वीं रैंक हासिल की। 2 बार में दसवीं पास करने वाला महज 23 साल की उम्र में IPS बन गया। जो लड़की हाफ ईयरली एग्जाम में फेल हो गई थी, वही आज श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की प्रिंसिपल सेक्रेटरी है और जिस लड़के को स्कूल ने 11वीं में एडमिशन देने से इनकार कर दिया था, वो आज पुलिस में DIG है।


आइए पढ़ते हैं 5 फेलियर स्टोरी-

RAS दलपत सिंह : 12वीं में 2 बार फेल हुए-


RAS दलपत सिंह मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में वित्त नियंत्रक अधिकारी के पद पर पोस्टेड हैं। दलपत सिंह से बेहतर शायद ही कोई जानता होगा कि फेलियर का मतलब फुल स्टॉप नहीं है। अलग-अलग एग्जाम में वे 19 बार फेल हुए।

जब भी एग्जाम देते पड़ोसी, दोस्त-रिश्तेदार मजाक उड़ाते। दलपत सिंह राठौड़ ने 1991 में 10वीं महज एवरेज नंबर से पास की। 12वीं में 1993 से 1994 तक फेल हुए। 1995 में ग्रेस मार्क से पास हुए। फर्स्ट ईयर में 1996 से 99 तक चार बार फेल हुए और वर्ष 2000 में BA पूरी किया। इस दौरान PMT, BSTC, PET, कृषि विभाग, STE और नर्सिंग की कई परीक्षाएं दीं, सबमें असफल हुए।

साल 2003 में उनके बचपन के दोस्त अविनाश चंपावत को IAS में ऑल इंडिया में दूसरी रैंक मिली। दलपत ने तय किया कि वो भी IAS का एग्जाम देंगे, लेकिन दूसरे ही अटेम्प्ट में ओवरएज हो गए। इसके बाद भी हार नहीं मानी।


RAS परीक्षा का विकल्प खुला था। उसी में जुट गए और तीसरे चांस में RAS परीक्षा-2008 में 55वीं रैंक लाने में कामयाब हुए। इसका रिजल्ट 2011 में आया और उन्हें लेखा सेवा का कैडर मिला।

जगदीश बांगड़वा : दसवीं में फेल, 23 की उम्र में IPS बने-


जगदीश 2018 में 23 साल की उम्र में IPS बन गए। 26 साल की उम्र में दीक्षांत समारोह के बाद उन्होंने गुजरात कैडर जॉइन किया और फिलहाल गुजरात के दाहोद ASP के पद पर पोस्टेड हैं। उनकी गिनती तेज तर्रार पुलिस अफसरों में होती है।

इतने काबिल ऑफिसर भी 10वीं में फेल हो गए थे। राजस्थान के बाड़मेर जिले के छोटे से गांव बायतु कस्बे के रहने वाले जगदीश बांगड़वा ने दूसरे अटेम्प्ट में दसवीं का एग्जाम क्लियर किया। 12वीं में गणित में महज 38 अंक मिले थे, लेकिन मार्कशीट जगदीश का हौसला डिगा नहीं पाई। उन्होंने कड़ी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई जारी रखी। 2018 में भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा दी और उन्हें 486वीं रैंक हासिल की।

IPS आकाश कुलहरि : कम नंबर आए तो स्कूल ने निकाल दिया-


बीकानेर के रहने वाले IPS आकाश कुलहरि UP पुलिस के फायर डिपार्टमेंट के DIG हैं। इससे पहले वे कानपुर के एडिशनल पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं।

आकाश बीकानेर के केंद्रीय विद्यालय में पढ़ते थे। साल 1996 में उन्होंने 10वीं का एग्जाम दिया, 57% नंबर आए। कम नंबर आने के बाद स्कूल ने निकाल दिया।

आकाश ने हार नहीं मानी और इसके बाद कड़ी मेहनत की और 12वीं के बोर्ड एग्जाम में 85 प्रतिशत नंबर हासिल किए। इसके बाद 2001 में दुग्गल कॉलेज बीकानेर से BCom और दिल्ली की JNU यूनिवर्सिटी से MCom किया। 2005 में MPhil और साल 2006 में पहले प्रयास में ही आकाश ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर ली।

IAS अंजू शर्मा : हाफ ईयरली एग्जाम में फेल हो गई थीं-


जयपुर की रहने वाली IAS अंजू शर्मा गुजरात के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की प्रिंसिपल सेक्रेटरी हैं। अंजू लेखिका भी हैं। उन्होंने एक किताब लिखी है 'आई ऑफ द स्टॉर्म- डिस्कवर योर ट्रू सेल्फ' जो काफी चर्चित रही। अंजू बताती हैं फेलियर आपको जो सिखाता है, वो सक्सेस नहीं सीखा सकती। मैं 1993 में दसवीं क्लास में थी। हाफ ईयरली एग्जाम में फेल हो गई। फेल होने से तनाव में आई, लेकिन ये जरूर सीखा कि किसी भी काम को करने के लिए प्लानिंग कितनी जरूरी होती थी। मैंने संकल्प ले लिया कि जो भी एग्जाम होगा, पहले से मजबूत तैयारी करूंगी। उस फेलियर से मिले सबक ने मेरी पूरी जिंदगी बदल दी।

IAS: तुषार सुमेरा: टीचर कहते थे हाथ में गणित की लाइन नहीं-


तुषार सुमेरा अभी भरूच (गुजरात) के कलेक्टर है। कलेक्टर बनने का सफर बड़ा कठिन भरा था। राजकोट में 10वीं एसएससी बोर्ड की परीक्षा दी थी। अंग्रेजी में 35 अंक, गणित में 36 अंक और विज्ञान में 38 अंक मिले। उन्होंने बताया कि टीचर कहते थे हाथ में गणित की लाइन नहीं है। 10वीं में कम नंबर आए तो लोग मजाक उड़ाया गया। इसके बाद बीए की डिग्री ली। अंग्रेजी कमजोर थी। बीएड करने के बाद एक स्कूल में नौकरी मिली। 2500 रुपए मिलते थे। फिर कलेक्टर बनने की सोचा। यूपीएससी प्री में 4 बार फेल होने के बाद पांचवीं बार तैयारी की। आखिर 2012 में कलेक्टर बने। हाल ही में पीएम मोदी की ओर से कलेक्टर तुषार सुमेरा के किए गए कार्यों की सराहना की गई।


सुमेरा बताते हैं कि सफलता का कोई सूत्र नहीं होता, केवल आपका आत्मविश्वास, मनोबल, समर्पण और लक्ष्य को प्राप्त करने की कड़ी मेहनत ही सफलता का पर्याय है और दूसरों के लिए आदर्श है। माता-पिता और छात्र कक्षा 10 और 12 की बोर्ड परीक्षा के साथ-साथ परिणाम को लेकर बहुत गंभीर हैं। बोर्ड की मार्कशीट ही भविष्य को दिशा देने का एक मात्र उपाय है। वह तुम्हारा भविष्य नहीं है।