wheat price : 800 रुपये की बढ़ौतरी के साथ हाईलेवल पर पहुंचे गेहूं के रेट, जारी रहेगी तेजी
Wheat price hike :गेहूं के दामों में हो रही अप्रत्याशित बढ़ोतरी थमने का नाम नहीं ले रही है। नए साल में 800 रुपये की प्रति क्विंटल बढ़ोतरी के साथ गेहूं के रेट हाईलेवल पर जा पहुंचे हैं। इसका असर आटे के भाव (wheat and flour price) पर भी अब स्पष्ट रूप से पड़ता दिखाई दे रहा है। संभावना जताई जा रही है कि अभी गेहूं के दामों में नरमी आने की कोई गुंजाइश नहीं है।
HR Breaking News - (ब्यूरो)। पिछले कुछ माह से गेहूं के दाम (gehu ka taja bhav) रॉकेट की रफ्तार से दौड़ रहे हैं। अब कई राज्यों में गेहूं का भाव एमएसपी से काफी ऊपर पहुंच गया है। नई फसल आने तक गेहूं के रेट और बढ़ने की संभावनाएं हैं। सरकार इस दिशा में प्रयास तो कर रही है लेकिन गेहूं के दिन-प्रतिदिन बढ़ते भाव (wheat rate today) पर लगाम नहीं लग रही है। गेहूं उत्पादक राज्यों में भी इसके दाम हाईलेवल पर पहुंचना और आटे का महंगा (flour price hike)हाेना, आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। देशभर की मंडियों (mandi bhav today) में गेहूं के भाव बेलगाम होते नजर आ रहे हैं।
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बढ़ती कीमतों ने बिगाड़ा लोगों का बजट-
अब आम उपभोक्ताओं के लिए सबसे बड़ा सवाल तो यह बना हुआ है कि प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश (wheat price in MP), राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में भी गेहूं के रेट बेलगाम होते क्यों जा रहे हैं? गेहूं की कीमत में आखिर इतनी बढ़ोतरी क्यों हो रही है? दक्षिण भारत के राज्यों में उत्तर प्रदेश (wheat price in UP) से ही थोड़ा बहुत गेहूं दक्षिण भारत के राज्यों में सप्लाई हो रहा है। यानी मांग के अनुसार गेहूं की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो रही है और गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों (flour price hike) ने लोगों का बजट बिगाड़कर रख दिया है। अब लगभग हर राज्य में गेहूं के रेट इसके एमएसपी 2275 रुपये (wheat MSP) प्रति क्विंटल से लगभग दोगुना हो गए हैं।
गेहूं की कीमतों में इजाफे का कारण -
त्योहारों के समय में गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी तेजी (gehu me teji ka karn) से शुरू हुई थी, जो अब भी जारी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की गेहूं की बिक्री योजना (gehu ke rate) में कमी आ रही है, जिससे यह स्थिति उत्पन्न हो रही है। जबकि कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि सरकार ने गेहूं उत्पादन और वितरण का सही आकलन नहीं किया, जिसके कारण बाजार में इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। गेहूं की मांग व आपूर्ति में संतुलन नहीं बन पा रहा है। इस वजह से गेहूं की कीमतों (gehu ka bhav) में हर रोज वृद्धि हो रही है, जो उपभोक्ताओं के लिए चिंता का कारण बन सकती है।
MSP से इतने ऊपर पहुंचे गेहूं के दाम -
निरंतर बढ़ रहे गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,275 से भी ऊपर चले गए हैं, जिसके चलते अब बाजार में गेहूं का औसत भाव 2850 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। पिछले माह में गेहूं के रिटेल प्राइस (gehu ka retail price) में करीब 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस कारण अब गेहूं की कीमत करीब 35 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। दक्षिण भारत के राज्यों में कई जगह गेहूं की कीमत इससे भी ज्यादा हो गई है। यहां 3910 रुपये प्रति क्विंटल तक गेहूं के रेट हो चुके हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर और दबाव बढ़ रहा है।
यहां तक पहुंचे आटे के रेट -
केंद्र सरकार ने गेहूं उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि का दावा किया है जो लगभग 113.29 मिलियन (gehu ka ne stock) टन है, लेकिन अनेक व्यापारियों का इस बारे में कहना है कि असल उत्पादन इससे कम है। इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने आम लोगों को राहत देने के लिए सस्ता आटा बेचने की योजना शुरू की है, जिसमें उन्होंने भारत ब्रांड का आटा 30 रुपये प्रति किलोग्राम बेचने का निर्णय लिया है। आमतौर पर सरकारी बिक्री से खुले बाजार में कीमतें घटती हैं, लेकिन आटा के मामले में ऐसा नहीं दिख रहा है। इससे बाजार में गेहूं और आटे की कीमतों में कोई खास गिरावट नहीं आई है। आटा अभी भी कई जगह खुदरा रेट में 50 रुपये (flour retail price) प्रति किलोग्राम तो थोक रेट में 45 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास बिक रहा है।
OMSS के तहत सस्ता गेहूं लाने की मांग-
सरकार ने अब भी सस्ते रेट में गेहूं को बाजार में उतारने पर ध्यान नहीं दिया तो आटा-गेहूं के रेट (wheat flour rate today) और भी बढ़ेंगे। आटा मिल मालिक गेहूं के दामों को नियंत्रित करने के लिए सरकार से गुहार लगा चुके हैं। इस वित्तीय वर्ष के लिए ओपन मार्केट सेल स्कीम (Open Market Sale Scheme) शुरू करने की मांग भी सरकार से की जा चुकी है। ओपन मार्केट सेल स्कीम से यानी (OMSS) से रेट कम हो सकते हैं, या फिर गेहूं की इंपोर्ट ड्यूटी घटाने से रेट कम हो सकता है। जब तक ये दोनों ही प्रयास नहीं होंगे, तब तक रेट गिरने के आसार नहीं हैं।
यह कहना है एक्सपर्ट्स का-
बाजार भाव से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान समय में सरकार गेहूं के दामों पर नियंत्रण के बजाय राजनीतिक रणनीति पर ध्यान दे रही है। चुनावी दृष्टिकोण से पीडीएस के जरिए गेहूं और आटे (gehu aate) की बिक्री बढ़ाई जा रही है, जबकि ओपन मार्केट सेल पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जा रहा। हालांकि, इस कदम से बाजार की कीमतों (wheat and flour price) पर लम्बे समय से कोई असर नहीं दिख रहा है। सरकार का यह कदम सस्ता गेहूं उपलब्ध कराना है, लेकिन इससे बाजार में स्थिरता नहीं आ रही है।
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कारोबारी दोहरा रहे यह बात -
गेहूं के बढ़ते दामों का प्रभाव व्यापार पर भी देखने को मिल रहा है। कारोबारी बार - बार एक बात दोहरा रहे हैं कि आटा-गेहूं के दामों (wheat and flour price) में अभी और वृद्धि देखने को मिलेगी अगर सरकार ने तुरंत बिक्री पर ध्यान नहीं दिया तो स्थिति और गंभीर बन सकती है। किसानों के पास भी गेहूं का पर्याप्त माल नहीं है, जिससे गेहूं के रेट पर लगाम लगना मुश्किल होता जा रहा है। मिलों ने सरकारी बिक्री की उम्मीद में हाल ही में कम माल खरीदा, जिससे उनके पास स्टॉक (wheat stock limit) अब कम हो गया है।